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वो हमसे चुप हैं...हम उनसे चुप हैं...मनाने वाले मना रहे हैं...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 09 "तुम्हारी महफ़िल में आ गये हैं, तो क्यूँ ना हम यह भी काम कर लें, सलाम करने की आरज़ू है, इधर जो देखो सलाम कर लें". दोस्तों, सन 2006 में फिल्म "उमरावजान" की 'रीमेक' बनी थी, जिसका यह गीत काफ़ी लोकप्रिय हुआ था. अनु मलिक ने इसे संगीतबद्ध किया था, याद है ना आपको यह गीत? अच्छा एक और गीत की याद हम आपको दिलाना चाहेंगे, क्या आपको सन् 2002 में बनी फिल्म "अंश" का वो गीत याद है जिसके बोल थे "मची है धूम हमारे घर में" जिसके संगीतकार थे नदीम श्रवण? चलिए एक और गीत की याद आपको दिलवाया जाए. संगीतकार जोडी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के संगीत निर्देशन में लता मंगेशकर और साथियों ने राज कपूर की 'हिट फिल्म' सत्यम शिवम सुंदरम में एक गीत गाया था जिसके बोल थे "सुनी जो उनके आने की आहट, गरीब खाना सजाया हमने". इन तीनो गीतों पर अगर आप गौर फरमाएँ तो पाएँगे की इन तीनो गीतों के मुख्डे की धुन करीब करीब एक जैसी है. अब आप सोच रहे होंगे कि इनमें से किस गीत को हमने चुना है आज के 'ओल्ड इस गोल्ड' के लिए. जी नहीं, इनमें से कोई भी गी

सुनो कहानी: कुर्रत-उल-ऐन हैदर की 'फोटोग्राफर'

उर्दू लेखिका कुर्रत-उल-ऐन हैदर की कहानी 'फोटोग्राफर' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत आज हम आपको सुनवा रहे हैं कुर्रत-उल-ऐन हैदर की कहानी 'फोटोग्राफर'। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'पत्नी से पति'' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं कुर्रत-उल-ऐन हैदर की 'फोटोग्राफर', जिसको स्वर दिया है श्रीमती नीलम मिश्रा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 14 मिनट। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। कुर्रत-उल-ऐन हैदर (१९२६ - २००७) कुर्रत-उल-ऐन हैदर का जन्म २० जनवरी १९२६ में उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ नगर में हुआ था. विभाजन के समय वे पाकिस्तान चली गयी थीं परन्तु बाद में वापस भारत आ गयीं और मृत्युपर्यंत (२१ अगस्त २००७) यहीं रहीं. ऐनी आपा के नाम से प्रसिद्ध हैदर, इम्प्रिंट की प्रबंध-संपादिका रहीं और इ

टिम टिम टिम तारों के दीप जले...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 08 'ओल्ड इस गोल्ड' में आज बारी है एक सदाबहार युगल गीत को सुनने की. दोस्तों, फिल्मकार वी शांताराम और संगीतकार वसंत देसाई प्रभात स्टूडियो के दिनो से एक दूसरे से जुडे हुए थे, जब वसंत देसाई वी शांताराम के सहायक हुआ करते थे. वी शांताराम को वसंत देसाई के प्रतिभा का भली भाँति ज्ञान था. इसलिए जब उन्होंने प्रभात छोड्कर अपने 'बैनर' राजकमल कलामंदिर की नीव रखी तो वो अपने साथ वसंत देसाई को भी ले आए. "दहेज", "झनक झनक पायल बाजे", "तूफान और दीया", और "दो आँखें बारह हाथ" जैसी चर्चित फिल्मों में संगीत देने के बाद वसंत देसाई ने राजकमल कलामंदिर की फिल्म "मौसी" में संगीत दिया था सन 1958 में. इस फिल्म में एक बडा ही प्यारा सा गीत गाया था तलत महमूद और लता मंगेशकर ने. यही गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इस गोल्ड' में. हालाँकि वी शांताराम प्रभात स्टूडियो छोड चुके थे, लेकिन उसे अपने दिल से दूर नहीं होने दिया. उन्होने अपने बेटे का नाम इसी 'स्टूडियो' के नाम पर प्रभात कुमार रखा. और उनके इसी बेटे ने फिल्म

बांसुरी के स्वर में डूबा नीला आसमां...

मुरली से उनका प्रेम अब जग जाहिर होने लगा, भारत ही नही विदेशो में भी उनकी मुरली के सुर लोगो को आनंदित करने लगे । पंडित हरीप्रसाद चौरसिया जी की बांसुरी वादन की शिक्षा और कटक के मुंबई आकाशवाणी केन्द्र पर उनकी नियुक्ति के बारे में हमने आलेख के पिछले अंक में जाना, अब आगे... पंडित हरिप्रसाद जी के मुरली के स्वर अब श्रोताओ पर कुछ ऐसा जादू करने लगे कि उनके राग वादन को सुनकर श्रोता नाद ब्रह्म के सागर में डूब जाने लगे,उनका बांसुरी वादन श्रोताओ को बांसुरी के सुरों में खो जाने पर विवश करने लगा । संपूर्ण देश भर में उनके बांसुरी के कार्यक्रम होने लगे,भारत के साथ साथ यूरोप, फ्रांस, अमेरिका, जापान आदि देशो में उनकी बांसुरी के स्वर गुंजायमान होने लगे। बड़ी बांसुरी पर शास्त्रीय संगीत बजाने के बाद छोटी बांसुरी पर जब पंडित हरिप्रसाद जी धुन बजाते तो श्रोता बरबस ही वाह वाह करते,सबसे बड़ी बात यह की बड़ी बांसुरी के तुंरत बाद छोटी बांसुरी को बजाना बहुत कठिन कार्य हैं, बड़ी बांसुरी की फूंक अलग और छोटी बांसुरी की फूंक अलग,दोनों बांसुरीयों पर उंगलिया रखने के स्थान अलग । ऐसा होते हुए भी जब वे धुन बजाते, सुनने वाले सब

शोख नज़र की बिजिलियाँ...दिल पे मेरे गिराए जा..

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 07 'ओल्ड इस गोल्ड' में आज गिरनेवाली है बिजली, यह बिजली आपके दिल पर गिरेगी और यह बिजली है किसी के शोख नज़र की. जी हाँ, "शोख नज़र की बिजलियाँ दिल पे मेरे गिराए जा". आशा भोसले की आवाज़ फिल्म "वो कौन थी" में. यूँ तो मदन मोहन की चेहेती रही हैं लता मंगेशकर, लेकिन समय समय पर उन्होने आशा भोसले से कुछ ऐसे गीत गवाए हैं जो केवल आशा भोंसले ही गा सकती थी, और यह गीत भी ऐसा ही एक गीत है. क्योंकि यह गीत फिल्म के 'हेरोईन' साधना पर नहीं, बल्कि 'वेंप' हेलेन पर फिल्माया जाना था, इसलिए आशा भोंसले की आवाज़ चुनी गयी जिसमें ज़रूरत थी एक मादकता की, एक नशीलेपन की, जो नायक को अपनी ओर सम्मोहित करे. और ऐसे गीतों में आशा-जी की आवाज़ किस क़दर निखरकर सामने आती है यह किसी को बताने की ज़रूरत नहीं. बस, फिर क्या था, आशा भोंसले ने इस गीत को इस खूबसूरती से गाया कि इस फिल्म के दूसरे 'हिट' गीतों के साथ साथ इस गीत ने भी सुन्नेवालों के दिलों में एक अलग ही जगह बना ली. राज खोंसला निर्देशित फिल्म "वो कौन थी" बनी थी सन 1964 में. राजा महेंदी अली

बाजे मुरलिया बाजे (पंडित हरिपसाद चौरसिया जी पर विशेष आलेख)

बाँसुरी ......वंसी ,वेणु ,वंशिका कई सुंदर नामो से सुसज्जित हैं बाँसुरी का इतिहास, प्राचीनकाल में लोक संगीत का प्रमुख वाद्य था बाँसुरी । अधर धरे मोहन मुरली पर, होंठ पे माया विराजे, बाजे मुरलियां बाजे .................. मुरली और श्री कृष्ण एक दुसरे के पर्याय रहे हैं । मुरली के बिना श्री कृष्ण की कल्पना भी नही की जा सकती । उनकी मुरली के नाद रूपी ब्रह्म ने सम्पूर्ण चराचर सृष्टि को आलोकित और सम्मोहित किया । कृष्ण के बाद भी भारत में बाँसुरी रही, पर कुछ खोयी खोयी सी, मौन सी. मानो श्री कृष्ण की याद में उसने स्वयं को भुला दिया हो, उसका अस्तित्व तो भारत वर्ष में सदैव रहा. हो भी कैसे न ? आख़िर वह कृष्ण प्रिया थी. किंतु श्री हरी के विरह में जो हाल उनके गोप गोपिकाओ का हुआ कुछ वैसा ही बाँसुरी का भी हुआ, कुछ भूली -बिसरी, कुछ उपेक्षित सी बाँसुरी किसी विरहन की तरह तलाश रही थी अपने मुरलीधर को, अपने हरी को । युग बदल गए, बाँसुरी की अवस्था जस की तस् रही, युगों बाद कलियुग में पंडित पन्नालाल घोष जी ने अपने अथक परिश्रम से बांसुरी वाद्य में अनेक परिवर्तन कर, उसकी वादन शैली में परिवर्तन कर बाँसुरी को पुनः भारत

रुलाके गया सपना मेरा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 06 दोस्तों, हम उम्मीद करते हैं कि आवाज़ पर 'ओल्ड इस गोल्ड' का यह जो सिलसिला हमने शुरू किया है, वो आपको पसंद आ रहा होगा, और आप इन गीतों और बातों का लुत्फ़ उठा रहे होंगे. आपको यह स्तंभ कैसा लग रहा है, आपकी क्या प्रतिक्रिया है, आपके क्या सुझाव हैं, हमें ज़रूर बताईएगा. आज 'ओल्ड इस गोल्ड' में प्रस्तुत है एक बहुत ही मशहूर फिल्म का एक गीत. इस फिल्म के सभी के सभी गीत 'सूपर-डूपर हिट' रहे, और फिल्म भी बेहद कामयाब रही. हम बात कर रहे हैं सन 1967 में बनी फिल्म "जुवेल थीफ" की. नवकेतन के 'बॅनर' तले बनी इस फिल्म को निर्देशित किया था विजय आनंद ने, और मुख्य भूमिकाओं में थे अशोक कुमार, देव आनंद, वैजन्ती माला और तनूजा. एक तरफ 'सस्पेनस' से भरी रोमांचक कहानी, तो दूसरी तरफ मधुर गीत संगीत इस फिल्म के आकर्षण रहे. अगर हम यूँ कहे कि यह फिल्म संगीतकार सचिन देव बर्मन के सफलतम फिल्मों में से एक है तो शायद ग़लत नहीं होगा. इस फिल्म का हर एक गीत अपने आप में सदा बहार है जो आज भी अक्सर कहीं ना कहीं से गूंजते हुए सुनाई देते हैं. यूँ तो इस फिल्म के