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बुल्ला की जाणां मैं कौन ? - बुल्ले शाह पर विशेष प्रस्तुति

बुल्ला की जाणां मैं कौन ? सवाल जो ज़ेहन को भी सोचने के लिए मजबूर कर दें कि ज़ेहन तू कौन है? कैसा दंभ? कौन सी चतुराई? किसकी अक्ल? जो बुल्ला खुद कहता है मैं की जाना मैं कौन उसके बारे में रत्ती भर भी जान सकें या समझ सकें ये दावा करना भी बुल्ले की सोच से दगा करने जैसा है। अगर बुल्ले का इतिहास लिखूं तो कहना होगा, बुल्ला सैय्यद था, उच्च जाति मुलसमान, मोहम्मद साहब का वंशज, पर खुद बुल्ला कहता है - न मैं मोमन विच मसीतां, ना मैं विच कुफर दियां रीतां तो कैसे कहूं कि वो मोमिन (मुसलमान) था। बुल्ला तो अल्हा की माशूक था, जो अपने नाराज़ मुरशद को मनाने पैरों में घुंघरू बांध कर गलियों में कंजरी (वैश्य) की तरह नाचती फिरती है, गाती फिरती है, कंजरी बनेया मेरी इज्जत घटदी नाहीं मैंनू नच के यार मनावण दे बुल्ला की जाणां - (रब्बी शेरगिल) बुल्ले के जन्म के बारे में इतिहासकार एक राय नहीं है, बुल्ले को इससे कोई फर्क भी नहीं पड़ता। कहते हैं मीर अब्दुला शाह कादरी शतारी का जन्म 1680 इसवी में बहावलपुर सिंध के गांव उच गैलानीयां में शाह मुहमंद दरवेश के घर हुआ, जो मुसलमानों में मानी जाती ऊंची जाति सैय्यद थे। वह मसजिदों

नौशाद की तीन सर्वश्रेष्ठ फिल्मों के संगीत पर एक चर्चा

( पिछले अंक से आगे ...) नौशाद अली का संगीत सभी के दिलों पर राज़ करता है। यदि अब तक सभी संगीतकारों का जिक्र होगा तो नौशाद का नाम आर.डी.बर्मन,रहमान आदि के साथ लिया जायेगा। उनका संगीत हमेशा अमर रहेग और ऐसे ही चमकता रहेगा। आज की तारीख का कोई भी संगीतकार मुगल-ए-आज़म जैसी एल्बम तैयार नहीं कर सकता और शायद ऐसा अमर गीत भी कभी नही- नौशाद ने तमाम फिल्मों में काम किया लेकिन यदि उनकी किन्हीं तीन फिल्मों का जिक्र करना चाहें तो वो शायद ये होंगी: १. मुगल-ए-आज़म : शायद ही किसी को इस बारे में शक हो कि फिल्मी इतिहास में इस फिल्म का संगीत नौशाद का सर्वोत्तम संगीत रहा है। इस फिल्म के ज्यादातर गाने लता मंगेशकर द्वारा गाये गये हैं। हालाँकि ओर्केस्ट्रा आज के समय की तरह तकनीकी और आधुनिकता से लैस नहीं है लेकिन फिर भी उन गानों की मेलोडी की किसी भी अन्य गीत से तुलना नहीं की जा सकती। लता का गाया हुआ राग गारा में 'मोहे पनघट पे नंद लाल' एक तरह से कव्वाली भी है और उस गाने में हर बात सर्वोत्तम है... उसका ट्रैक..जबर्दस्त उर्दू शब्द...से लेकर लता मंगेशकर के साथ साथ कोरस भी कोई कमी नहीं छोड़ रहा था। नौशाद का संग

मछलियाँ पकड़ने का शौकीन भी था वो सुरों का चितेरा

( पिछले अंक से आगे ...) चाहें कोई पिछली पीढ़ी का श्रोता हो या आज की पीढ़ी का युवा वर्ग हर कोई नौशाद के संगीत पर झूमता है। ज़रा कुछ गीतों पर नजर डालिये... मधुबाला का 'प्यार किया तो डरना क्या' जिस पर आज के दौर में रीमिक्स बनाया जाता है... और जब दिलीप कुमार का "नैन लड़ जई हैं तो मनवा मा.." सुन ले तो कदम अपने आप थिरकने लगते हैं। आज ज्यादातर लोग उस दौर से ताल्लुक नहीं रखते पर फिर भी लगता है कि नौशाद फिल्मों में संगीत नहीं देते थे...बल्कि जादू बिखेरते थे। उनके संगीत में लोक संगीत की झलक मिलती है। लखनऊ में जन्में १८ वर्षीय बालक से जब उसके पिता ने घर और संगीत में से एक को चुनने को कहा तब उसने संगीत को चुना और खूबसूरत सपने और कड़वी सच्चाइयों वाले मुम्बई शहर जा पहुँचा। आँखों में हजारों सपने लिये फुटपाथ को घर बनाये इस शानदार संगीतकार ने सैकड़ों धुनें तैयार कर दी। यदि फिल्मों पर गौर करें तो महल, बैजू बावरा, मदर इंडिया, मुगल-ए-आज़म, दर्द, मेला, संघर्ष, राम और श्याम, मेरे महबूब-जैसी न जाने कितनी ही फिल्में हैं। नौशाद की बात करें और लता व रफी की बात न हो तो क्या फायदा। मुगल-ए-आज़म