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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'ठाकुर का कुआँ''

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'ठाकुर का कुआँ' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'पुत्र-प्रेम' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "ठाकुर का कुआँ" , जिसको स्वर दिया है डॉक्टर मृदुल कीर्ति ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 7 मिनट 42 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८८०-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी ‘हाथ-पांव तुड़वा आएगी और कुछ न होगा। बैठ चुपके से। ब्राह्मण देवता आशीर्वाद देंगे, ठाकुर लाठी मारेगें, साहूजी एक पा

खुदाया खैर...एक बार फ़िर शाहरुख़ की आवाज़ बने अभिजीत

"बड़ी मुश्किल है, खोया मेरा दिल है..." शाहरुख़ खान के उपर फिल्माए गए इस गीत में आवाज़ थी अभिजीत भट्टाचार्य की. जब ये गीत आया तो श्रोताओं को लगा कि यही वो आवाज़ है जो शाहरुख़ के ऑन स्क्रीन व्यक्तित्व को सहज रूप से उभरता है. पर शायद वो ज़माने लद चुके थे जब नायक अपनी फिल्मों के लिए किसी ख़ास आवाज़ की फरमाईश करता था. जहाँ शाहरुख़ के शुरूआती दिनों में कुमार सानु ने उनके गीतों को आवाज़ दी (कोई न कोई चाहिए..., और काली काली ऑंखें...), वहीँ बाद में उनकी रोमांटिक हीरो की छवि पर उदित नारायण की आवाज़ कुछ ऐसे जमी की सुनने वाले बस वाह वाह कर उठे, "डर" और "दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगें" के गीत आज तक सुने और याद किए जाते हैं. फ़िर हीरो की छवि बदली, पहले जिस नायक का लक्ष्य नायिका को पाना मात्र होता था, वह अब अपने कैरिअर के प्रति भी सजग हो चुका था. वो चाँद तारे तोड़ने के ख्वाब सजाने लगा और ऐसे नायक को परदे पर साकार किया शाहरुख़ ने एक बार फ़िर अपनी फ़िल्म "येस् बॉस" में और यहाँ फ़िर से मिला उन्हें अभिजीत की आवाज़ का साथ और इस फ़िल्म के गीतों ने इस नायक-गायक की जोड़

मिलिए उभरती हुई पार्श्व गायिका तरन्नुम मालिक से

लगभग एक महीने पहले आवाज़ पर हमने एक नए गीत " एक धक्का दो ..." का विश्वव्यापी उदघाटन किया था, जिसे जबरदस्त सराहना मिली थी. उभरते हुए निर्देशक/गीतकार अभिषेक भोला (जिनकी आने वाली फ़िल्म "कॉफी" को हिंद युग्म मीडिया सहयोग प्रदान करने जा रहा है) ने इस गीत के बोल लिखे थे, धुन और आवाज़ थी, फ़िल्म इंडस्ट्री में तेज़ी से कमियाबी की सीढियां चढ़ती गायिका तरन्नुम मालिक की. इस गीत का विडियो भी बेहद चर्चित हुआ था जिसे ख़ुद अभिषेक ने निर्देशित किया था. आज हम आपकी मुलाकात इस गीत की गायिका तरन्नुम मालिक से करवा रहे हैं. मात्र २१ वर्षीया इस युवा गायिका ने बहुत कम समय में ही इंडस्ट्री के बड़े नामों को अपनी प्रतिभा से प्रभावित किया है. इससे पहले कि हम बातचीत शुरू करें, संगीतकार शंकर एहसान और लॉय के निर्देशन में उनका गाया फ़िल्म "जोंनी गद्दार" का ये दमदार गीत सुनिए - दिल्ली में जन्मी तरन्नुम को संगीत विरासत में मिला, उनके पिता रमेश मालिक ने बचपन से ही उनके हुनर को पहचाना और उनके दिशा निर्देश में में तरन्नुम ने पार्श्व गायन को अपना कैरिअर चुना. निरंतर रियाज़ और स्टेज कार्यक्रमों

मेरी प्यास हो न हो जग को...मैं प्यासा निर्झर हूँ...- कवि गीतकार पंडित नरेंद्र शर्मा जी की याद में

महान कवि और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद कर रही है सुपुत्री लावण्य शाह - काव्य सँग्रह "प्यासा ~ निर्झर" की शीर्ष कविता मेँ कवि नरेँद्र कहते हैँ- "मेरे सिवा और भी कुछ है, जिस पर मैँ निर्भर हूँ मेरी प्यास हो ना हो जग को, मैँ,प्यासा निर्झर हूँ" हमारे परिवार के "ज्योति -कलश" मेरे पापा और फिल्म "भाभी की चूडीयाँ " फिल्म के गीत मेँ,"ज्योति कलश छलके" शब्द भी उन्हीँ के लिखे हुए हैँ जिसे स्वर साम्राज्ञी लता दीदी ने भूपाली राग मेँ गा कर फिल्मोँ के सँगीत मेँ साहित्य का,सुवर्ण सा चमकता पृष्ठ जोड दिया !"यही हैँ मेरे लिये पापा"! हमारे परिवार के सूर्य ! जिनसे हमेँ ज्ञान, भारतीय वाँग्मय, साहित्य,कला,संगीत,कविता तथा शिष्टाचार के साथ इन्सानियत का बोध पाठ भी सहजता से मिला- ये उन के व्यक्तित्त्व का सूर्य ही था जिसका प्रभामँडल "ज्योति कलश" की भाँति, उर्जा स्त्रोत बना हमेँ सीँचता रहा - मेरे पापा उत्तर भारत, खुर्जा ,जिल्ला बुलँद शहर के जहाँगीरपुर गाँव के पटवारी घराने मेँ जन्मे थे.प्राँरभिक शिक्षा खुर्जा मेँ हुई

रहमान के बाद अब बाज़ी मारी उस्ताद जाकिर हुसैन ने भी...

भारतीय संगीत की थाप विश्व पटल पर सुनाई दे रही है, लॉस एन्जेलेंस और लन्दन में भारत के दो संगीत महारथियों ने अपने अन्य प्रतियोगियों पर विजय पाते हुए शीर्ष पुरस्कारों पर कब्जा जमाया. जहाँ चार अन्य प्रतिभागियों को पीछे छोड़ते हुए रहमान ने एक बार फ़िर "स्लम डोग मिलिनिअर" के लिए बाफ्टा (ब्रिटिश एकेडमी ऑफ़ फ़िल्म एंड टेलिविज़न आर्ट) जीता तो वहीँ तबला उस्ताद जाकिर हुसैन ने दूसरी बार ग्रैमी पुरस्कार जिसे संगीत का सबसे बड़ा सम्मान माना जाता है, पर अपनी विजयी मोहर लगायी.जाकिर ने अपनी एल्बम "ग्लोबल ड्रम प्रोजेक्ट" के लिए कंटेम्पररी वर्ल्ड म्यूजिक अल्बम श्रेणी में ये पुरस्कार जीता. गोल्डन ड्रम प्रोजेक्ट में हुसैन ने रॉक बैंड "ग्रेटफुल डेड" के मिकी हार्ट के साथ जुगलबंदी की है और उनका साथ दिया नईजीरियन पर्काशानिस्ट सिकिरू एडेपोजू और जैज़ पर्काशानिस्ट प्युरेटो रिकोन ने. ये इस समूह का और ख़ुद हुसैन का दूसरा ग्रैमी है. पहली बार भी १९९१ में उन्होंने मिकी हार्ट ही के साथ टीम अप कर "प्लेनट ड्रम" नाम का एल्बम किया था जिसे १९९२ में ग्रैमी सम्मान हासिल हुआ था. दूसरी तरफ़

मेरी आवाज ही पहचान है : पंचम दा पर विशेष, (दूसरा भाग)

सत्तर के दशक के बारे में कहते हैं, लोग चार लोगों के दीवाने थे : सुनील गावस्कर,अमिताभ बच्चन, किशोर कुमार और आर डी बर्मन | गावस्कर का खेल के मैदान में जाना, अमिताभ का परदे पर आना और किशोर कुमार का गाना सबके लिए उतना ही मायने रखता था जितना आर डी का संगीत | भारत में लोग संगीत के साथ जीते हैं,आखिरी दम तक संगीत किसी न किसी तरह से हमसे जुड़ा होता है और इस लिहाज से आर डी बर्मन ने हमारे जीवन को कभी न कभी, किसी न किसी तरह छुआ जरुर है | यह अपने आप में आर डी के संगीत की सादगी और श्रेष्ठता दोनों का परिचायक है | किशोर, आर डी और अमिताभ ने क्या खूब रंग जमाया था फ़िल्म "सत्ते पे सत्ता" के सदाबहार गाने में, सुनिए और याद कीजिये - उनके गाने अब तक कितनी बार रिमिक्स,'इंस्पिरेशन' आदि आदि के नाम पर बने हैं, इसके आंकड़े भी मिलना मुश्किल है |आख़िर उनका संगीत पुराना होकर भी उतना ही नया कैसे लगता है, इस बात पर भी गौर करना जरुरी है |आर डी ने कभी भी प्रयोग करने में हिचकिचाहट नहीं दिखाई |वह हमेशा नौजवानों को दिमाग में रख कर धुनें तैयार करते थे, और एक एक धुन पर काफ़ी कड़ी मेहनत करते थे| जब भी उचित लग

सुनिए "इमोशनल अत्याचार" की ये कहानी

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (11) शास्त्रीय संगीत का किसी अन्य संगीत विधा से कोई मुकाबला नही है - पंडित शिव कुमार शर्मा "येहुदी मेनुहिन कितने महान फनकार थे पर मेडोना या माइकल जेक्सन को हमेशा मीडिया ने अधिक तरजीह दी. ये ट्रेंड पूरी दुनिया का है अकेले भारत का नही. भारतीय शास्त्रीय संगीत को पॉप संस्कृति या फ़िल्म संगीत से भिड़ने की आवश्यकता नही है."- ये कथन थे ५४ वर्षों से भारतीय शास्त्रीय संगीत का परचम अपने संतूर वादन से दुनिया भर में फहराने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा जी के. दिल्ली के पुराना किला में अपनी एक और लाइव प्रस्तुति देने आए पंडित जी ने संगीतकार ऐ आर रहमान को बधाई देते हुए कहा कि वो रहमान ही थे जिन्होंने फिल्मों में इलेक्ट्रॉनिक संगीत का ट्रेंड शुरू किया. उनसे पहले के संगीतकार धुन और prelude बनाते थे और बाकी कामों के लिए उन्हें साजिंदों पर निर्भर रहना पड़ता था. यश राज की बहुत सी सफल फिल्मों में साथी पंडित हरी प्रसाद चौरसिया के साथ जोड़ी बनाकर संगीत देने वाले पंडित शिव कुमार शर्मा ने ये पूछने पर कि वो फ़िर से कब फिल्मों में संगीत देंगे, पंडित जी का जवाब था - "फिल्मों