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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'गुल्ली डंडा'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'गुल्ली डंडा' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'दुर्गा का मन्दिर' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "दुर्गा का मन्दिर" , जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 20 मिनट और 30 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी पिताजी चौके पर बैठे वेग से रोटियों पर अपना क्रोध उतार रहे हैं, अम्माँ की दौड़ केवल द्वार

यादें जी उठी....मन्ना डे के संग

"दिल का हाल सुने दिलवाला..." की मस्ती हो, या "एक चतुर नार..." में किशोर से नटखट अंदाज़ में मुकाबला करती आवाज़ हो, "ऐ भाई ज़रा देख के चलो.." के अट्टहास में छुपी संजीदगी हो, या "पूछो न कैसे मैंने रैन बितायी...", "लागा चुनरी में दाग...", "केतकी गुलाब जूही..." और "आयो कहाँ से घनश्याम..." जैसे राग आधारित गीतों को लोकप्रिय अंदाज़ में प्रस्तुत करना हो, एक मुक्कमल गायक है जो हमेशा एक "परफेक्ट रेंडरिंग" देता है. जी हाँ आपने सही अंदाजा लगाया. हम बात कर रहे हैं, एक और एकलौते मन्ना डे की. मन्ना डे का जन्म १ मई १९१९ को पूर्णचंद्र और महामाया डे के यहाँ हुआ। अपने माता-पिता के अलावा वे अपने चाचा संगीताचार्य के.सी. डे से बहुत अधिक प्रभावित थे और वे ही उनके प्रेरणास्रोत भी थे। मन्ना ने अपने छुटपन की पढ़ाई एक छोटे से स्कूल "इंदु बाबुर पाठशाला" से हुई। स्कॉटिश चर्च कालिजियेट स्कूल व स्कॉटिश चर्च कॉलेज से पढ़ाई करने के बाद उन्होंने विद्यासागर कॉलेज से स्नातक की शिक्षा पूरी की। अपने बचपन से ही मन्ना को कुश्ती और मुक्क

किशोर दा के संगीत का आखिरी दशक और १० सदाबहार प्रेम गीतों का गुलदस्ता

साथियो, किशोर कुमार के जीवन के आख़िरी दशक (१९८०-१९८७)की कुछ झलकियों के साथ इस बार का किशोर नामा प्रस्तुत है | उस दशक में किशोर कुमार गायकों में एक अनुभवी और सबसे मशहूर नाम था| लगभग हर गीतकार और संगीतकार के साथ उन्होंने काम किया| उनकी इस विभिन्नता (diversity)के कुछ नमूने - १९८० - गीत - ओम शान्ति ओम - फ़िल्म - क़र्ज़, संगीत - लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, गीतकार - आनंद बख्शी १९८२ - गीत - पग घुँघरू बाँध - फ़िल्म - नमक हलाल, संगीत - बप्पी लाहिरी, गीतकार - अनजान १९८३ - गीत - हमें और जीने की अगर तुम न होते, संगीत - राहुल देव बर्मन, गीतकार - गुलशन बावरा १९८५ - गीत - सागर किनारे सागर, संगीत - राहुल देव बर्मन, गीतकार - जावेद अख्तर अभिनेता के रूप में जिन मुख्य फिल्मों में काम किया वे कुछ ऐसे हैं - चलती का नाम ज़िंदगी(१९८१) दूर वादियों में कहीं (१९८२) अपमान (१९८२) सुन सजना (१९८२) कौन जीता कौन हारा (१९८७) संगीतकार के रूप में इन फिल्मों में छाप छोड़ी - चलती का नाम ज़िंदगी (१९८१) ममता की छाँव में (१९९०) हरफनमौला की आख़िरी कोशिश- १९९० में आयी फ़िल्म -"ममता की छाँव में" दादा की आख़िरी कोशिश

सुनिए और बूझिये कि आखिर कौन है दिल्ली ६ की ये मसकली

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (9) स्लमडॉग विशेषांक स्लम डॉग ने रचा इतिहास इस सप्ताह की ही नही इस माह की सबसे बड़ी संगीत ख़बर है ऐ आर रहमान का गोल्डन ग्लोब जीतना. आज का ये एपिसोड हम इसी बड़ी ख़बर को समर्पित कर रहे हैं. जिस फ़िल्म के लिए ऐ आर को ये सम्मान मिला है उसका नाम है स्लम डॉग मिलेनिअर. मुंबई के एक झोंपड़ बस्ती में रहने वाले एक साधारण से लड़के की असाधारण सी कहानी है ये फ़िल्म, जो की आधारित है विकास स्वरुप के बहुचर्चित उपन्यास "कोश्चन एंड आंसर्स" पर. फ़िल्म का अधिकतर हिस्सा मुंबई के जुहू और वर्सोवा की झुग्गी बस्तियों में शूट हुआ है. और कुछ कलाकार भी यहीं से लिए गए हैं. नवम्बर २००८ में अमेरिका में प्रर्दशित होने के बाद फ़िल्म अब तक ६४ सम्मान हासिल कर चुकी है जिसमें चार गोल्डन ग्लोब भी शामिल हैं. फ़िल्म दुनिया भर में धूम मचा रही है,और मुंबई के माध्यम से बदलते हिंदुस्तान को और अधिक जानने समझने की विदेशियों की ललक भी अपने चरम पर दिख रही है. पर कुछ लोग हिंदुस्तान को इस तरह "थर्ड वर्ल्ड" बनाकर दुनिया के सामने प्रस्तुत करने को सही भी नही मानते. अमिताभ बच्चन ने अपने ब्लॉग

'कथापाठ- एक विमर्श' कार्यक्रम की रिकॉर्डिंग

सुनिए गौरव सोलंकी, तेजेन्द्र शर्मा, असग़र वजाहत और श्याम सखा का कहानीपाठ १५ जनवरी २००९ को हिन्द-युग्म ने गाँधी शांति प्रतिष्ठान, नई दिल्ली में 'कथापाठ-एक विमर्श' कार्यक्रम का आयोजन किया था, जिसमें लंदन के वरिष्ठ हिन्दी कहानीकार तेजेन्द्र शर्मा और भारत के युवा कथाकार गौरव सोलंकी का कहानीपाठ हुआ। संचालन हरियाणा के वरिष्ठ हिन्दी साहित्यकार डॉ॰ श्याम सखा 'श्याम' ने किया। प्रसिद्ध कहानीकार असग़र वजाहत मुख्य वक्ता के तौर पर उपस्थित थे। युवा कहानीकार अजय नावरिया और अभिषेक कश्यप ने कहानी और कहानीपाठ पर अपने विचार रखे। जैसाकि हिन्द-युग्म टीम ने उदय प्रकाश की कहानीपाठ और उसपर नामवर सिंह के वक्तव्य के कार्यक्रम को रिकॉर्ड करके सुनवाया था और यह वादा किया था कि इस तरह के कार्यक्रमों को लेकर उपस्थित होता रहेगा, ताकि वे हिन्दी प्रेमी भी लाभांवित हो सकें, जो किन्हीं कारणों से ऐसे कार्यक्रमों में सम्मिलित नहीं हो पाते। तो सुनिए और खुद तय करिए कि हिन्द-युग्म द्वारा आयोजित यह कार्यक्रम कैसा रहा?

दादी जी की चिड़िया- हरिवंश राय बच्चन

आपने हरिवंश राय बच्चन की ६वीं पुण्य तिथि पर हमारी दो प्रस्तुतियाँ पढ़ी-सुनीं। एक प्रविष्टि में जहाँ अमिताभ बच्चन की आवाज़ में बच्चन जी की कविताएँ थीं, वहीं एक पोस्ट में डॉ॰ प्रीति प्रकाश प्रजापति द्वारा कविता 'क्या भुलूँ क्या याद करूँ' । हरिवंश राय बच्चन ने बाल-साहित्य पर भी उल्लेखनीय कार्य किया था। नीलम मिश्रा अपनी आवाज़ में उन्हीं की एक बाल कविता लाई हैं, आप सब के लिए, सुनें-

दीवाना बनाना है तो दीवाना बना दे.... बेगम अख्तर

( पहले अंक से आगे..) अख्तर बेगम जितनी अच्छी फ़नकार थीं उतनी ही खूबसूरत भी थीं। कई राजे महाराजे उनका साथ पाने के लिए उनके आगे पीछे घूमते थे लेकिन वो टस से मस न होतीं। अकेलेपन के साथी थे- कोकीन,सिगरेट, शराब और गायकी। इन सब के बावजूद उनकी आवाज पर कभी कोई असर नहीं दीखा। अल्लाह की नेमत कौन छीन सकता था। 1945 में जब उनकी शौहरत अपनी चरम सीमा पर थी उन्हें शायद सच्चा प्यार मिला और उन्हों ने इश्तिआक अहमद अब्बासी, जो पेशे से वकील थे, से निकाह कर लिया और अख्तरी बाई फ़ैजाबादी से बेगम अख्तर बन गयीं। गायकी छोड़ दी और पर्दानशीं हो गयीं। बहुत से लोगों ने उनके गायकी छोड़ देने पर छींटाकशी की,"सौ चूहे खा के बिल्ली हज को चली" लेकिन उन्हों ने अपना घर ऐसे बसाया मानों यही उनकी इबादत हो। पांच साल तक उन्हों ने बाहर की दुनिया में झांक कर भी न देखा। लेकिन जो तकदीर वो लिखा कर लायी थीं उससे कैसे लड़ सकती थीं। वो बिमार रहने लगीं और डाक्टरों ने बताया कि उनकी बिमारी की एक ही वजह है कि वो अपने पहले प्यार, यानी की गायकी से दूर हैं। मानो कहती हों - इतना तो ज़िन्दगी में किसी के खलल पड़े... उनके शौहर की शह पर 1949 में