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सुनो कहानी: प्रेमचंद की 'दुर्गा का मन्दिर'

उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानी 'दुर्गा का मन्दिर' 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचंद की प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शन्नो अग्रवाल की आवाज़ में प्रेमचंद की रचना ' 'आत्माराम' ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रेमचंद की अमर कहानी "दुर्गा का मन्दिर" , जिसको स्वर दिया है लन्दन निवासी कवयित्री शन्नो अग्रवाल ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 26 मिनट और 45 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। मैं एक निर्धन अध्यापक हूँ...मेरे जीवन मैं ऐसा क्या ख़ास है जो मैं किसी से कहूं ~ मुंशी प्रेमचंद (१८३१-१९३६) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए प्रेमचंद की एक नयी कहानी उठा तो न जाएगा; बैठी-बैठी वहीं से कानून बघारोगी! अभी एक-आध को पटक दूंगा, तो वहीं से गरजती ह

मल्लिका-ए-गजल - बेगम अख्तर

सुना है तानसेन जब दीपक राग गाते थे तो दीप जल उठते थे और जब मेघ मल्हार की तान छेड़ते थे तो मेघ अपनी गठरी खोलने को मजबूर हो जाते थे। पीछे मुड़ कर देखें तो न जाने कितने ही ऐसे फ़नकार वक्त की चादर में लिपटे मिल जाते हैं जो इतिहास का हिस्सा बन कर भी आज भी हमारे दिलो जान पर छाये हुए हैं, आज भी उनका संगीत आदमी तो आदमी, पशु पक्षियों, वृक्षों और सारी कायनात को अपने जादू से बांधे हुए है। आइए ऐसी ही एक जादूगरनी से आप को मिलवाते हैं जो बेगम अख्तर के नाम से मशहूर हैं। आज से लगभग एक सदी पहले जब रंगीन मिजाज, संगीत पुजारी अवधी नवाबों का जमाना था, लखनऊ से कोई 80 किलोमीटर दूर फ़ैजाबाद में एक प्रेम कहानी जन्मी। पेशे से वकील, युवा असगर हुसैन को मुश्तरी से इश्क हो गया। हुसैन साहब पहले से शादी शुदा थे पर इश्क का जादू ऐसा चढ़ा कि उन्हों ने मुश्तरी को अपनी दूसरी बेगम का दर्जा दे दिया। लेकिन हर प्रेम कहानी का अंत सुखद नहीं होता, दूसरे की आहों पर परवान चढ़े इश्क का अंत तो बुरा होना ही था। मुशतरी के दो बेटियों के मां बनते बनते हुसैन साहब के सर से इश्क का भूत उतर गया और उन्हों ने न सिर्फ़ मुश्तरी से सब रिश्ते तोड़ लिए बल

जब ओ पी नैयर के गीतों को आल इंडिया रेडियो ने प्रतिबंधित कर दिया....

नैयर साहब की जयंती पर विशेष ओ.पी.नैयर नाम सुनते ही एक पतली काया और टोपी पहने हुए इंसान की छवि सामने आती है ।नैयर साहब का जन्म 16जनवरी १९२६ में लाहोर जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा है,हुआ। दबंग, निरंकुश और हमेशा नये प्रयोग करने वाले इस सितारे का नाम माता पिता ने ओंकार प्रसाद रखा। पाकिस्तान के विभाजन के बाद वो लाहोर से अमृतसर आ गये। ओंकार प्रसाद ने संगीत की सेवा करने के लिए अपनी पढ़ाई बीच में छोड़ दी । अपने संगीत के सफ़र की शुरुआत इन्होंने आल इंडिया रेडियो से की ।इनकी पत्नी सरोज मोहनी नैयर एक बहुत ही अच्छी गीतकारा थी. सरोज के द्वारा लिखा गया ‘प्रीतम आन मिलो...’.ने ओपी को सिने जगत में नयी उँचाइयों तक पहुँचा दिया. सिने जगत में ओ. पी. नैयर का नाम ओपी प्रसिद्ध हुआ ।थोड़े ही दिनो के बाद एक रिकॉर्डिंग कंपनी ने इनके गाने ‘प्रीतम आन मिलो’ और ‘कौन नगर तेरा दूर ठिकाना’ को लेकर एक संगीत का एल्बम निकाला, जो लोगों के द्वारा बहुत पसंद किया गया और नैयर साहब के काम को लोगों ने पहचाना । कुछ ही दिनों बाद हिन्दी फिल्मों में अपने नसीब को आज़माने ये मुंबई आ गये । १९४९ में "कनीज़" से इन्हें सिने जगत