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ग़ालिब का कलाम और लता का अंदाज़ - क़यामत

लता संगीत उत्सव की एक और पेशकश - लता सुगम समारोह, पढ़ें और सुनें संजय पटेल की कलम का और लता की आवाज़ का जादू 28 सितम्बर तक लता मंगेशकर की ग़ैर-फ़िल्मी रचनाओं के इस सुगम समारोह में. लता मंगेशकर इस बरस पूरे ८० बरस की हो जाएंगी.सुरों की इस जीती-जागती किंवदंती का हमारे बीच होना हम पर क़ुदरत का एक अहसान है.आवाज़ के आग्रह पर हमारे चिर-परिचित संगीत समीक्षक श्री संजय पटेल ने हमारे लिये लताजी की कुछ ग़ैर-फ़िल्मी रचनाएँ,जिनमें ज़्यादातर उर्दू महाकवि ग़ालिब की ग़ज़लें शुमार हैं पर विशेष समीक्षाएँ की हैं .लताजी की इन रचनाओं पर संजय भाई २८ सितम्बर तक नियमित लिखेंगे. लता मंगेशकर द्वारा स्वरबध्द और पं.ह्र्दयनाथ मंगेशकर द्वारा संगीतबध्द ग़ालिब की रचनाओं को सुनना एक चमत्कारिक अनुभव है. आज संगीत में जिस तरह का शोर बढ़ता जा रहा है उस समय में इन क्लासिकी ग़ज़लों को सुनना किसी रूहानी अहसास से गुज़रना है. चूँकि यह प्रस्तुतियाँ सुगम संगीत की अनमोल अमानत हैं; हमने इसे लता सुगम समारोह नाम दिया है...... आइये आज से प्रारंभ करते हैं लता सुगम समारोह. उम्मीद है आवाज़ की ये सुरीली पेशकश आपको पंसद आएगी. दुर्लभ रचनाओं

सुनो कहानीः प्रेमचंद की कहानी अमृत का पॉडकास्ट

प्रेमचंद की उर्दू कहानी 'अमृत' का प्रसारण 'सुनो कहानी' के स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियों का पॉडकास्ट। अभी पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की कहानी 'अपनी करनी' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं अनुराग शर्मा की ही आवाज़ में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की कहानी 'अमृत' का पॉडकास्ट। मूलतः उर्दू में लिखी गयी यह कहानी ‘प्रेम पचीसी’ से ली गयी है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाउनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें) VBR MP3 64Kbps MP3 Ogg Vorbis आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिकों, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं, तो यहाँ देखें। #Fifth Story, Amrit: Munsi Premchand/

हर एक घर में दिया भी जले- नीलम मिश्रा की गुजारिश

आलेख प्राप्ति समय- 18 Sep 2008 12:33 "आज सुबह एक माँ की गुजारिश थी, अखबार में कि मेरा बेटा बेक़सूर है, अगर उसका गुनाह साबित हो जाय, तो सरेबाजार उसे फांसी दे दीजिये " वक्त आ गया है, हमे सोचने का कि हम किस राह चल दिए हैं? सभी मुसलमान परिवारों का कैसा रमजान है? और कैसी ईद?कितने मासूम,बेक़सूर और कितने वेवजह इस घटना के शिकार होंगे|कितनी बहने अपने भाई की रिहाई के लिया नमाज अदा कर रही होंगी, रोज एक- एक दिन बड़े होते देख अपनी औलादों को माँ बाप फूले न समाते थे, उनके घरों में कितने दिनों से दिया न जला होगा | अब वक्त आ गया है,हम अपने सभी हिंदू व् मुसलमान भाई को कि एक हो जाय,यह दिखा दे दुनिया वालों को कि कोई लाख चाहे तो भी हमारा कुछ नही बिगाड़ सकता है हम सब एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे | इस दुआ के साथ - हर एक घर में दिया भी जले, अनाज भी हो , अगर न हो कोई ऐसा तो एहतजाज* भी हो। हुकूमतों को बदलना तो कुछ मुहाल नहीं, हुकूमतें जो बदलता है, वो समाज भी हो। रहेगी कब तलक वादों में कैद खुशहाली, हर एक बार ही कल क्यों, कभी तो आज भी हो। न करते शोर-शराबा तो और क्या करते , तुम्हारे शहर में कुछ कामकाज