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मिट्टी के गीत ( ३), कश्मीर की वादियों में महकता सूफी संगीत

उस्ताद गुलाम मोहमद साज़नवाज़ का जादूई संगीत असाम के मिटटी की महक लेने के बाद आईये चलते हैं, हिमालय की गोद में बसे धरती के स्वर्ग कश्मीर की खूबसूरत वादियों में. यहाँ तो चप्पे चप्पे में संगीत है, बहते झरनों में कहीं संतूर की स्वरलहरियाँ मिलेंगीं तो कहीं चनारों के बीच बहती हवाओं में बजते सितारों के स्वर मिलेंगे आपको, कहीं रबाब तो कहीं नगाडा, कहीं "रौफ" पर थिरकती कश्मीरी सुंदरियाँ तो कहीं पानी का भरा प्याला सर पर रख कर "नगमा" पर नाचते लड़के. कश्मीर के संगीत में सूफियाना संगीत रचा बसा है.सूफियाना कलाम कश्मीरी संगीत की आत्मा है. गुलाम मोहमद साज़नवाज़ कश्मीरी सूफी संगीत के एक "लिविंग लीजेंड" कहे जा सकते हैं. आईये उन्ही की आवाज़ और मौसिकी का आनंद लें इस विडियो में, जो हम तक पहुँचा कश्मीर निवासी और कश्मीरी सूफी संगीत के बहुत बड़े प्रेमी साजिद हमदानी की बदौलत, तो सुनते हैं उस्ताद को और घूम आते हैं संगीत के पंखों पर बैठकर दिलकश कश्मीर की मस्त फ़िज़ाओं में. Indian Folk Music Series, Kashmeeri Sudiyana Sangeet, Ustad Ghulam Md. Saaznawaaz

प्रेमचंद की कहानी 'अपनी करनी' का पॉडकास्ट

सुनो कहानीः प्रेमचंद की कहानी 'अपनी करनी' का पॉडकास्ट आवाज़ पर 'सुनो कहानी' के इस नियमित स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियों का पॉडकास्ट। अभी पिछले सप्ताह शिक्षक दिवस के अवसर पर आपने सुना था शोभा महेन्द्रू, शिवानी सिंह एवं अनुराग शर्मा की आवाज़ में प्रेमचंद की कहानी ' प्रेरणा' का पॉडकास्ट। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं अनुराग शर्मा की आवाज़ में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद की कहानी 'अपनी करनी' का पॉडकास्ट। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) (Broadband कनैक्शन वालों के लिए) (Dial-Up कनैक्शन वालों के लिए) यदि आप इस पॉडकास्ट को नहीं सुन पा रहे हैं तो नीचे दिये गये लिंकों से डाऊनलोड कर लें (ऑडियो फ़ाइल तीन अलग-अलग फ़ॉरमेट में है, अपनी सुविधानुसार कोई एक फ़ॉरमेट चुनें) VBR MP3 64Kbps MP3 Ogg Vorbis आज भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवा

दोस्तों ने निभा दी दुश्मनी प्यार से...

दूसरे सत्र के ग्यारहवें गीत का विश्वव्यापी उदघाटन आज. ग्यारहवें गीत के साथ हम दुनिया के सामने ला रहे हैं एक और नौजवान संगीतकार कृष्ण राज कुमार को, जो मात्र २२ वर्ष के हैं, और जिन्होंने अभी-अभी अपने B.Tech की पढ़ाई पूरी की है, पिछले १४ सालों से कर्नाटक गायन की दीक्षा ले रहे हैं. कृष्ण का परिचय हिंद युग्म से, "पहला सुर" के संगीतकार निरन कुमार ने कराया, कृष्ण कुमार जिस दिन हिंद युग्म के कविता पृष्ट पर आए, उसी दिन युग्म के वरिष्ट कवि मोहिंदर कुमार की ताजी कविता प्रकाशित हुई थी, कृष्ण ने उसी कविता / गीत को स्वरबद्ध करने का हमसे आग्रह किया. लगभग डेढ़ महीने तक इस पर काम करने के बाद उन्होंने इस गीत को मुक्कमल कर अपनी आवाज़ में हमें भेजा, जिसे हम आज आपके समक्ष लेकर हाज़िर हुए हैं, हम चाहेंगे कि आप इस नए, प्रतिभावान संगीतकार/गायक को अपना प्रोत्साहन और मार्गदर्शन अवश्य दें. गीत को सुनने के लिए प्लेयर पर क्लिक करें - With this new song, we are introducing another new singer / composer from Cochi, Krishna Raj Kumar, lyrics are provided by another Vattern poet from Hind Yugm, Mohinder Kumar

जिन्होंने सजाये यहाँ मेले...कुछ यादें अमर संगीतकार सलिल दा की

आज आवाज़ पर, हमारे स्थायी श्रोता, और गजब के संगीत प्रेमी, इंदौर के दिलीप दिलीप कवठेकर लेकर आए हैं महान संगीतकार सलिल चौधरी के दो अदभुत गीतों से जुड़ी कुछ अनमोल यादें. अपनी कहानी छोड़ जा, कुछ तो निशानी छोड़ जा.. सलिल चौधरी- इस क्रान्तिकारी और प्रयोगवादी संगीतकार को जब हम पुण्यतिथि पर याद करते हैं तो अनायास ही ये बोल जेहन में उभरते है, और साथ में कई यादें ताज़ा होती हैं. अपने विविध रंगों में रचे गानों के रूप में जो निशानी वो छोड गये हैं, उन्हें याद करने का और कराने का जो उपक्रम हम सुर-जगत के साथी कर लेते हैं, वह उनके प्रति हमारी छोटी सी श्रद्धांजली ही तो है. गीतकार योगेश लिख गये है- जिन्होंने सजाये यहां मेले, सुख-दुख संग-संग झेले, वही चुन कर खामोशी, यूँ चले जाये अकेले कहां? आनंद के इस गीत के आशय को सार्थक करते हुए यह प्रतिभाशाली गुलुकार महज चालीस साल की अपने संगीतयात्रा को सजाकर अकेले कहीं दूर निकल गया. गीतकार योगेश की बात चल पड़ी है तो आयें, कुछ उनके संस्मरण सुनें, जो हमें शायद सलिलदा के और करीब ले जाये. आनंद फ़िल्म में योगेश को पहले सिर्फ़ एक ही गीत दिया गया था, सलिलदा के आग्रह पर- कही

सितम्बर माह के कवि सम्मेलन के लिए अपनी रिकॉर्डिंग भेजें

पिछले दो महीनों से हम पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का आयोजन कर रहे हैं। दूसरे अंक से मृदुल कीर्ति ने संयोजन की जिम्मेदारी सम्हाली है। हम उत्साह से लबरेज़ हैं और तीसरे पॉडकास्ट सम्मेलन के लिए कवियों से कविताओं की रिकॉर्डिंग आमंत्रित करते हैं। कृपया अपनी आवाज़ में अपनी १ या १ से अधिक रचनाओं का पाठ करके २४ सितम्बर २००८ तक podcast.hindyugm@gmail.com पर भेज दें। यदि रिकॉर्डिंग करने में परेशानी आये तो हमारा मुफ़्त ट्यूटोरियल देखें। हमें उम्मीद है कि इस बार बहुत से कवि इस ऑनलाइन कवि सम्मेलन में भाग लेंगे। पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का दूसरा अंक पॉडकास्ट कवि सम्मेलन का पहला अंक

कुछ बातें गौरव सोलंकी से

आवाज़ पर हमारे इस हफ्ते के सितारे गौरव सोलंकी का सपना है - "ऑस्कर" 7 जुलाई, 1986 को उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले के 'जिवाना गुलियान' गाँव में जन्मे गौरव के मन में इंजीनियर बनने की लगन के साथ-साथ एक नन्हे से कवि की कोमल कल्पनायें भी बचपन से पलती रहीं। एक दिन हाथों ने लेखनी को थाम ही लिया और लेखन शुरू हो गया। 15 वर्ष की आयु में काव्य-लेखन आरंभ किया। आई.आई.टी. रुड़की में प्रवेश के बाद शौक अधिक गति से बढ़ने लगा और कवि के शब्दों में अब वे अधिक 'परिपक्व' कविताएँ लिखने लगे हैं। साहित्य पढ़ते समय रुचि अब भी गद्य में ही रही और एक कहानीकार भी भीतर करवट लेने लगा। कहानियाँ लिखनी शुरू की और फिर उपन्यास भी। युग्म के ताज़ा गीत " खुशमिज़ाज मिटटी " के गीतकार गौरव से हमने की एक संक्षिप्त सी बातचीत - हिंद युग्म- गौरव सोलंकी, पहले एक इंजीनियर या एक कवि? गौरव- पहले कवि और बाद में भी :) हिंद युग्म - माँ का स्वेटर, पिता के साथ चाँद तक जाने की तमन्ना, प्रियसी के लिए एक तरफा प्यार, किस कविता ने सबसे ज्यादा संतोष दिया? गौरव- सभी ने अपने अपने वक़्त पर लगभग उतना ही संतोष दिया। शाय

लता संगीत उत्सव ( २ ) - लावण्या शाह

आज भी कहीं कुरमुरा देख लेतीं हैं उसे मुठ्ठी भर खाए बिना वे आगे नहीं बढ़ पातीं.. लता संगीत उत्सव की दूसरी कड़ी के रूप में हम आज लेकर आए हैं, लता जी की मुंहबोली छोटी बहन और मशहूर कवि गीतकार, स्वर्गीय श्री पंडित नरेन्द्र शर्मा (जिन्होंने नैना दीवाने, ज्योति कलश छलके, और सत्यम शिवम् सुन्दरम जैसे अमर गीत रचे हैं) की सुपुत्री, लावण्या शाह का यह आलेख - पापाजी और दीदी, २ ऐसे इंसान हैं जिनसे मिलने के बाद मुझे ज़िंदगी के रास्तों पे आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा मिली है - सँघर्ष का नाम ही जीवन है। कोई भी इसका अपवाद नहीं- सत्चरित्र का संबल, अपने भीतर की चेतना को प्रखर रखे हुए किस तरह अंधेरों से लड़ना और पथ में कांटे बिछे हों या फूल, उनपर पग धरते हुए, आगे ही बढ़ते जाना ये शायद मैंने इन २ व्यक्तियों से सीखा। उनका सानिध्य मुझे ये सिखला गया कि अपने में रही कमजोरियों से किस तरह स्वयं लड़ना जरुरी है- उनके उदाहरण से हमें इंसान के अच्छे गुणों में विश्वास पैदा करवाता है। पापा जी का लेखन,गीत, साहित्य और कला के प्रति उनका समर्पण और दीदी का संगीत, कला और परिश्रम करने का उत्साह, मुझे बहुत बड़ी शिक्षा दे गया। उन दो