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जो प्यार तुने मुझको दिया था....मुकेश की आवाज़ और कल्याणजी आनंदजी का स्वर संसार

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 422/2010/122 'दि ल लूटने वाले जादूगर' - कल्याणजी-आनंदजी के सुरों से सजे दिलकश गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला की दूसरी कड़ी में उस गायक की आवाज़ आज गूंज रही है दोस्तों, जिस गायक ने इस जोड़ी के संगीत निर्देशन में अपने करीयर के सब से ज़्यादा गीत गाए हैं। बिल्कुल ठीक समझे आप। मुकेश। आम तौर पर जनता यह समझ बैठती है कि शंकर जयकिशन के लिए मुकेश ने सब से अधिक गीत गाए, लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है। कल्याणजी आनंदजी के दर्द भरे नग़मों में मुकेश की आवाज़ का कुछ इस क़दर इस्तेमाल हुआ है कि ये गानें आज भी जैसे कलेजा चीर के रख देता है। मुकेश के गायन में सिर्फ़ सहेजता ही नहीं बल्कि आत्मीयता भी है। उनका गाया हर दर्द भरा गीत जैसे अपने ही दिल की आवाज़ लगती है। और इन्हे गुनगुनाकर आदमी ज़िंदगी के सारे ग़मों को बांट लेता है। कल्याणजी-आनंदजी के पुरअसर धुनों में पिरो कर, गीतकार आनंद बक्शी के बोलों से सज कर, और मुकेश की जादूई आवाज़ में ढल कर जब फ़िल्म 'दुल्हा दुल्हन' का गीत "जो प्यार तुमने मुझको दिया था, वो प्यार तेरा मैं लौटा रहा हूँ" बा

दिल लूटने वाले जादूगर....संगीतकार जोड़ी जिसने बीन की धुन पर दुनिया को दीवाना बनाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 421/2010/121 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के एक नए सप्ताह के साथ हम फिर एक बार हाज़िर हैं। दोस्तों, फ़िल्म जगत में संगीतकार जोड़ियों की ख़ास परम्परा रही है। इस परम्परा की सही रूप से शुरुआत हुई थी पण्डित हुस्नलाल भगतराम की जोड़ी से, और उनके बाद आए शंकर जयकिशन। तीसरे नंबर पर वो संगीतकार जोड़ी इस फ़िल्म संगीत संसार में पधारे जिन्होने ना केवल अपने उल्लेखनीय योगदान से फ़िल्म संगीत का कल्याण किया बल्कि संगीत प्रेमियों को भरपूर आनंद भी दिया। जी हाँ, संगीत का कल्याण करने वाली और श्रोताओं को आनंद देने वाली इस बेहद लोकप्रिय व कामयाब जोड़ी को हम कल्याणजी-आनंदजी के नाम से जानते हैं। ३० जून को कल्याणजी भाई का जनमदिवस है। इसी उपलक्ष्य पर आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर हम शुरु कर रहे हैं इस बेमिसाल संगीतकार जोड़ी की दिलकश संगीत रचनाओं से सजी लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर'। सच ही तो है, सुरीले जादूगर की तरह कल्याणजी-आनंदजी ने लोगों के दिलों पर राज ही तो करते आए हैं। आज इस शृंखला की पहली कड़ी में सब से पहले आपको कल्याणजी-आनंदजी के सफ़र के शुरुआती दिनों का हाल संक्षिप

हास्य गीतों की परंपरा को भी बखूबी निभाया है पीढ़ी दर पीढ़ी संगीतकारों -गीतकारों ने

ओल्ड इस गोल्ड /रिवाइवल # २५ आ ज कल्याणजी-आनंदजी के गीत की बारी। फ़िल्म 'कसौटी' में प्राण साहब पर फ़िल्माया गया था किशोर कुमार का नेपाली अंदाज़ में गाया हुआ एक बेहद लोकप्रिय हास्य गीत "हम बोलेगा तो बोलोगे के बोलता है"। क्योंकि बात हास्य गीत की हो रही है और आप यह भी जानते होंगे कि कल्याणजी भाई का कैसा ज़बरदस्त 'सेन्स ऒफ़ ह्युमर' हुआ करता था। तो चलिए यह गीत सुनने से पहले कल्याणजी के कहे कुछ शब्द हो जाए, जिनसे उनके इस सेन्स ऒफ़ ह्युमर का एक छोटा सा नमूना आपके सामने प्रस्तुत हो जाएगा। कल्याणजी भाई कहते हैं (सौजन्य: विविध भारती): "यह ह्युमर का सबजेक्ट निकल आया है तो मैं कहूँगा कि ह्युमर को मैं बहुत महत्व देता हूँ। क्या है कि जहाँ हम जाएँ लोग हँसते नहीं, तो इसमें सब से ज़्यादा अगर किसी ने मुझे इन्स्पायर किया तो वो हैं आचार्य रजनीश जी, यानी कि ओशो। उन्होने मुझे बोला था कि 'कल्याणजी, आप का जो आर्ट है, उसको आप डेवेलप कीजिए, वह कमाल का आर्ट है। तो उन्होने मुझे बहुत इन्स्पायर किया। जब फ़िल्म बनी थी 'नन्हा फ़रिश्ता', तो वह मद्रास की पहली फ़िल्म थी हमारी।

एक था गुल और एक थी बुलबुल...एक मधुर प्रेम कहानी आनंद बक्षी की जुबानी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 381/2010/81 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी सुननेवालों व पाठकों का हम फिर एक बार इस महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। दोस्तों, इन दिनों आप जम कर आनंद ले रहे होंगे IPL Cricket matches के सीज़न का। अपने अपने शहर के टीम को सपोर्ट भी कर रहे होंगे। क्रिकेट खिलाड़ियो की बात करें तो उनमें से कुछ बल्लेबाज़ हैं, कुछ गेंदबाज़, और कुछ हैं ऐसे जिन्हे हम 'ऒल राउंडर' कहते हैं। यानी कि जो क्रिकेट के मैदान पर दोनों विधाओं में पारंगत है, गेंदबाज़ी मे भी और बल्लेबाज़ी में भी। कुछ इसी तरह से फ़िल्म संगीत के मैदान में भी कई खिलाड़ी ऐसे हुए हैं, जो अपने अपने क्षेत्र के 'ऒल-राउंडर' रहे हैं। ये वो खिलाड़ी हैं जो ज़रूरत के मुताबिक़, बदलते वक़्त के मुताबिक़, तथा व्यावसायिक्ता के साथ साथ अपने स्तर को गिराए बिना एक लम्बी पारी खेली हैं। ऐसे 'ऒलराउंडर' खिलाड़ियों में एक नाम आता है गीतकार आनंद बक्शी का। जी हाँ, आनंद बक्शी साहब, जिन्होने फ़िल्मी गीत लेखन में एक नई क्रांति ही ला दी थी। बक्शी साहब को फ़िल्मी गीतों का 'ऒल-राउंडर' कहना किसी भी तरह की अतिशयोक्ति

पुरवा सुहानी आई रे...थिरक उठते है बरबस ही कदम इस गीत की थाप सुनकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 369/2010/69 'गी त रंगीले' शृंखला की नौवीं कड़ी के लिए आज हमने जिस गीत को चुना है, उसमें त्योहार की धूम भी है, गाँव वालों की मस्ती भी है, लेकिन साथ ही साथ देश भक्ति की भावना भी छुपी हुई है। और क्यों ना हो जब भारत कुमार, यानी कि हमारे मनोज कुमार जी की फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' का गाना हो, तो देश भक्ति के भाव तो आने ही थे! आइए आज सुनें इसी फ़िल्म से "पूर्वा सुहानी आई रे"। लता मंगेशकर, महेन्द्र कपूर, मनहर और साथियों की आवाज़ें हैं, गीत लिखा है संतोष आनंद ने और संगीतकार हैं कल्याणजी-आनंदजी। गीत फ़िल्माया गया है मनोज कुमार, विनोद खन्ना, भारती और सायरा बानो पर। आइए आज गीतकार व कवि संतोष आनंद जी की कुछ बातें की जाए! दोस्तों, कभी कभी सफलता दबे पाँव आने के बजाए दरवाज़े पर दस्तक देकर आती है। मूलत: हिंदी के जाने माने कवि संतोष आनंद को फ़िल्मी गीतकार बनने पर ऐसा ही अनुभव हुआ होगा! कम से कम गीत लिख कर ज़्यादा नाम और इनाम पाने वाले गीतकारों में शुमार होता है संतोष आनंद का। मनोज कुमार ने 'पूरब और पश्चिम' में उनसे सब से पहले फ़िल्मी गीत लिखवाया थ

आई झूम के बसंत....आज झूमिए बसंत की इन संगीतमयी बयारों में सब गम भूल कर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 368/2010/68 ब संत ऋतु की धूम जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर और इन दिनों आप सुन रहे हैं इस स्तंभ के अन्तर्गत लघु शृंखला 'गीत रंगीले'। आज जिस गीत की बारी है वह एक ऐसा गीत है जिसे बजाए बिना अगर हम इस शृंखला को समाप्त कर देंगे तो यह शृंखला एक तरह से अधूरी ही रह जाएगी। बसंत के आने की ख़ुशी को जिस धूम धाम से इस गीत में सजाया गया है, यह गीत जैसे बसंत पंचमी के दिन बजने वाला सब से ख़ास गीत बना हुआ है आज तक। "आई झूम के बसंत झूमो संग संग में"। फ़िल्म 'उपकार' के लिए इस गीत की रचना की थी गीतकार इंदीवर और संगीतकार कल्याणजी-आनंदजी ने। युं तो ऐसे गीतों में दो मुख्य गायकों के साथ साथ गुमनाम कोरस का सहारा लिया जाता है, लेकिन इस गीत की खासियत है कि बहुत सारी मुख्य आवाज़ें हैं और कुछ अभिनेताओं की आवाज़ें भी ली गई हैं। इस गीत में आप आवाज़ें सुन पाएँगे मन्ना डे, आशा भोसले, शमशाद बेग़म, मोहम्मद रफ़ी, महेन्द्र कपूर, सुंदर, शम्मी की। कल्याणजी-आनंदजी ने कई अभिनेताओं को गवाया है, यही बात जब विविध भारती पर आनंदजी से पूछा गया था तब उनका जवाब था - " इत्ते

मेरे दिल में है एक बात....लता- मन्ना के युगल स्वरों में एक चुलबुला नगमा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 328/2010/28 ओ -ल्ड इज़ गोल्ड' में जारी है सुरीले गीतों की परंपरा, और इन दिनों हम आनंद ले रहे हैं इंदु जी और शरद जी के पसंद के गीतों का। आप दोनों ने ही इतने अच्छे अच्छे गीतों की फ़रमाइश हम से की है कि इन्हे सुनवाते हुए भी हम फ़क्र महसूस कर रहे हैं। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' को जैसे कुछ और ही मुकाम तक पहुँचा दिया है आप दोनों ने। बहुत शुक्रिया आपका। आज शरद जी की पसंद का जो गीत हमने चुना है वह एक युगल गीत है लता मंगेशकर और मन्ना डे का गाया हुआ। एक हल्का फुल्का युगल गीत, लेकिन उतना ही सुरीला उतना ही बेहतर। फ़िल्म 'पोस्ट बॊक्स नंबर ९९९' का यह गीत है "मेरे दिल में है एक बात कह दो तो ज़रा क्या है"। इसी फ़िल्म का लता और हेमन्त दा का गाया "नींद ना मुझको आए" भी एक बेहतरीन गीत है जिसे भी आप 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर भविष्य में ज़रूर सुनेंगे। 'पोस्ट बॊक्स नंबर ९९९' बनकर बाहर आई सन् १९५८ में। रवीन्द्र दवे निर्मित व निर्देशित यह फ़िल्म दरअसल एक मर्डर मिस्ट्री थी जिसे सुलझाया सुनिल दत्त और शक़ीला ने। मेरा मतलब है कि कहानी कुछ इस तरह की

तेरी राहों में खड़े हैं दिल थाम के...गीतकार कमर जलालाबादी को याद कीजिये स्वराजन्ली लता के स्वरों की देकर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 319/2010/19 ९ जनवरी २००३ को हम से बिछड़ गए थे फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध गीतकार क़मर जलालाबादी और जैसे हर तरफ़ से उन्ही का लिखा हुआ गीत गूंज उठा कि "फिर तुम्हारी याद आई ऐ सनम, हम ना भूलेंगे तुम्हे अल्लाह क़सम"। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में क़मर साहब को हमारी 'स्वरांजली'। क़मर जलालाबादी की ख़ूबी सिर्फ़ गीत लेखन तक ही सीमीत नहीं रही। वो एक आदरणीय शायर और इंसान थे। फ़िल्म जगत की चकाचौंध में रह कर भी वो एक सच्चे कर्मयोगी का जीवन जीते रहे। १९५० के दशक में कामयाबी की शिखर पर पहुँचने के बाद भी उनकी सादगी पर उसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा। उनकी संजीदगी उनके गीतों से छलक पड़ी। दोस्तो, क़मर साहब के साथ हुस्नलाल भगतराम और ओ. पी. नय्यर की अच्छी ट्युनिंग् जमी थी। बाद मे संगीतकार जोड़ी कल्याणजी आनंदजी के साथ तो एक लम्बी पारी उन्होने खेली और कई महत्वपूर्ण गानें इस जोड़ी के नाम किए। सन् १९६० में जिस फ़िल्म से क़मर साहब और कल्याणजी-आनंदजी की तिकड़ी बनी थी, वह फ़िल्म थी 'छलिया'। इस फ़िल्म के सभी गानें सुपर डुपर हिट हुए। उस समय शंकर जयकिशन और शैलेन्द्र-हसरत

जीवन से भरी तेरी आँखें....काव्यात्मक शैली में लिखा था इन्दीवर ने इस गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 204 ल ता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, और आशा भोंसले के बाद, अदा जी की अगली फ़रमाइश में है किशोर कुमार की आवाज़। वैसे तो इन चारों गायकों ने इतने सारे मशहूर गानें गाए हैं कि किसी एक गीत को चुनना नामुमकिन सी बात हो जाती है। फिर भी अदा जी ने इनके एक एक गीत ऐसे चुन कर हमें भेजे हैं कि भई वाह! आप के पसंद की दाद देनी पड़ेगी। हर एक गीत लाजवाब है अपने अपने अंदाज़ का। तो आज जैसा कि हम ने कहा, किशोर दा की आवाज़ की बारी है, जो आवाज़ ज़िंदगी से हारे हुए लोगों को वापस जीने के लिए मजबूर कर देती है। जी हाँ, आज का गीत है फ़िल्म 'सफ़र' का, "जीवन से भरी तेरी आँखें मजबूर करे जीने के लिए, सागर भी तरसते रहते हैं तेरे रूप का रस पीने के लिए"। आँखों की ख़ूबसूरती पर असंख्य गीत बने हैं और आज भी बन रहे हैं। लेकिन इस गीत में जो काव्य है, जो जीवन दर्शन है, शॄंगार रस और जीवन दर्शन का ऐसा समावेश हर गीत में सुनाई नहीं देता। गीतकार इंदीवर का शुमार उन गीतकारों में होता है जिनके अनमोल गीत निराशा भरे मन में आशा का संचार करते हैं, उदास ज़िंदगी को जीवंत कर देते है, और इस दुनिया को समझने

कोई जब तुम्हारा ह्रदय तोड़ दे....इन्दीवर साहब के शब्दों और मुकेश के स्वरों ने इस गीत अमर बना डाला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 189 मु केश के साथ राज कपूर और शंकर जयकिशन के नाम इस तरह से जुड़े हुए हैं कि ऐसा लगता है जैसे इन्ही के लिए मुकेश ने सब से ज़्यादा गानें गाये होंगे। लेकिन हक़ीक़त कुछ और ही है। मुकेश जी ने सब से ज़्यादा गानें संगीतकार जोड़ी कल्याणजी-आनंदजी के लिए गाये हैं। ख़ास कर जब दर्द भरे मशहूर गीतों की बात चलती है तो कल्याणजी-आनंदजी के लिए गाए उनके गीतों की एक लम्बी सी फ़ेहरिस्त बन जाती है। आज एक ऐसा ही गीत आपको सुनवा रहे हैं जो मुकेश जी को बेहद पसंद था। मनोज कुमार की सुपर हिट देश भक्ति फ़िल्म 'पूरब और पश्चिम' का यह गीत है "कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे, तड़पता हुआ जब कोई छोड़ दे, तब तुम मेरे पास आना प्रिये, मेरा दर खुला है खुला ही रहेगा तुम्हारे लिए"। इंदीवर जी ने इस गीत में प्यार करने का एक अलग ही तरीका इख्तियार किया है कि नायक का प्यार इतना गहरा है कि वह नायिका को जीवन के किसी भी मोड़ पर, किसी भी वक़त, किसी भी हालत में अपना लेगा, नायिका कभी भी उसके पास वापस लौट सकती है। "अभी तुमको मेरी ज़रूरत नहीं, बहुत चाहनेवाले मिल जाएँगे, अभी रूप का एक सागर हो तुम

मुझको इस रात की तन्हाई में आवाज़ न दो....दर्द और मुकेश की आवाज़ का था एक गहरा नाता

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 183 '१० गीत जो थे मुकेश को प्रिय' लघु शृंखला के अंतर्गत आप सुन रहे हैं मुकेश की गाए हुए उन गीतों को जो उनके दिल के बहुत करीब थे। इसमे कोई दोराय नहीं कि ये गानें सिर्फ़ उन्ही को नहीं, हम सभी को अत्यंत प्रिय हैं, और तभी तो इतने दशकों बाद भी लोगों की ज़ुबाँ पर अक्सर चढ़े हुए मिलते हैं। विविध भारती के वरिष्ठ उद्‍घोषक कमल शर्मा के शब्दों में, "मुकेश के स्वर में नैस्वर्गिक मिठास थी, सोज़ और मधुरता तो थी ही, साधना और लगन से उन्होने उसमें और निखार ले आए थे। चाहे शृंगार रस हो या मस्ती भरा कोई गीत, या फिर टूटे हुए दिल की सिसकियाँ, हर मूड को बख़ूबी पेश करने की क्षमता रखते थे मुकेश। लेकिन सच तो यही है कि मुकेश ने प्रेम से ज़्यादा विरह और वेदना के गीत गाए हैं। एक ज़माना था जब प्रेम निवेदन मे एक शालीनता हुआ करती थी। और प्यार में नाकामी में भी कुछ ऐसी ही बात थी। ऐसे ही टूटे हुए किसी दिल की दुनिया में ले जाते हैं मुकेश की आवाज़। रात के गभीर सन्नाटे मे जब ये आवाज़ हौले हौले गूँजती है तो बेचैन कर देती है मन को।" एक ऐसा ही बेचैन कर देने वाला गीत अज पेश-ए-ख़िदमत

मेरे देश की धरती सोना उगले उगले हीरे मोती...गुलशन बावरा ने लिखा इस असाधारण गीत से इतिहास

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 174 औ र आज है तिरंगे के तीसरे रंग, यानी कि हरे रंग की बारी। हरा रंग है संपन्नता का, ख़ुशहाली का। "ख़ुशहाली का राज है, सर पे तिरंगा ताज है, ये आज का भारत है ओ साथी आज का भारत है"। जी हाँ दोस्तों, इस बात में कोई शक़ नहीं कि देश प्रगति के पथ पर क्रमश: अग्रसर होता जा रहा है। हरित क्रांति से देश में खाद्यान्न की समस्या बड़े हद तक समाप्त हुई है। लेकिन अब भी देश की आबादी का एक ऐसा हिस्सा भी है जिसे दो वक़्त की रोटी नसीब नहीं। इस तिरंगे का हरा रंग उस दिन सार्थक होगा जिस दिन देश में कोई भी आदमी भूखा न होगा। आज तिरंगे के हरे रंग को सलामी देते हुए हमने जिस गीत को चुना है उस गीत से बेहतर शायद ही कोई और गीत होगा इस मौके के लिए। फ़िल्म 'उपकार' का सदाबहार देश भक्ति गीत "मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती" आप ने हज़ारों बार सुना होगा, आज भी सुनिए, रोज़ सुनिए, क्योंकि इस तरह के गीत रोज़ रोज़ नहीं बनते। यह एक ऐसा देश भक्ति गीत है जिसने एक इतिहास रचा है। शायद ही कोई स्वतंत्रता दिवस या गणतंत्र दिवस का पर्व होगा जो इस गाने के बग़ैर मनाया गया होगा

कन्हैया किसको कहेगा तू मैया....इन्दीवर साहब को सलाम करें इस जन्माष्ठमी पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 171 श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन उपलक्ष्य पर हम सभी श्रोतायों और पाठकों का हार्दिक अभिनंदन करते हैं। दोस्तों, पिछले दस दिनों से आप किशोर दा के गाये गीतों का आनंद उठा रहे थे। उनके गाये उन गीतों को सुनते हुए हम इस क़दर उनकी आवाज़ में खो गये थे कि आज के इस विशेष पर्व पर प्रसारण योग्य गीत भी हम उन्ही की आवाज़ में चुन बैठे। और हमें पूरा विश्वास है कि प्रस्तुत गीत आप को भी बहुत पसंद आयेगा। श्रीकृष्ण के जन्म की कहानी तो आप को मालूम ही होगी, लेकिन आज के इस गीत के महत्व को बेहतर तरीके से समझने के लिए हम उस पौराणिक कहानी को संक्षेप में आप को बता रहे हैं। देवकी और रोहिणी को मिलाकर राजा वासुदेव की ६ पत्नियाँ थीं। देवकी से विवाह के बाद, देवकी के भाई कंस को यह भविष्यवाणी मिली थी कि देवकी के आठवें पुत्र के हाथों उनका वध होगा। वासुदेव के अनुरोध पर कंस ने देवकी को नहीं मारा, लेकिन देवकी के पहले ६ पुत्रों की जीवन लीला ज़रूर समाप्त कर दी। जब देवकी साँतवीं बार माँ बनने जा रही थीं, तो भगवान विष्णु ने देवकी का गर्भ रोहिणी के कोख में स्थानांतरित कर दिया ताकि उस बच्चे का कंस के हाथों

समाँ है सुहाना सुहाना नशे में जहाँ है....जहाँ किशोर की आवाज़ गूंजे वहां ऐसा क्यों न हो

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 165 पि छ्ले तीन दिनों से आप किशोर दा की आवाज़ में सुन रहे हैं जीवन के कुछ ज़रूरी और थोड़े संजीदे किस्म के विषयों पर आधारित गानें। आज माहौल को थोड़ा सा हल्का बनाते हैं और आज चुनते हैं ज़िंदगी का एक ऐसा रूप जिसमें है मस्ती, रोमांस और नशा। ऐसे गीतों में भी किशोर दा की आवाज़ ने वो अदाकारी दिखायी है कि ये गानें हर प्रेमी के दिल की आवाज़ बन कर रह गये हैं। आनंद बक्शी का लिखा और कल्याणजी-आनंदजी का स्वरबद्ध किया एक ऐसा ही गीत आज पेश है फ़िल्म 'घर घर की कहानी' से। जी हाँ, "समा है सुहाना, नशे में जहाँ है, किसी को किसी की ख़बर ही कहाँ है, हर दिल में देखो मोहब्बत जवाँ है"। कभी जवाँ दिलों की धड़कन बन कर गूँजा करता था यह नग़मा। इसमें कोई शक़ नहीं कि यह गीत समा को सुहाना बना देता है, इसकी मंद मंद रीदम से मन नशे में डूबता सा चला जाता है, और हर दिल में मोहब्बत की लौ जगा देती है। १९७० की फ़िल्म 'घर घर की कहानी' के मुख्य कलाकार थे राकेश रोशन और भारती। यह एक लो बजट फ़िल्म थी जिसकी बाकी सभी चीज़ों को लोग क्रमश: भूलने लगे हैं सिवाय एक चीज़ के, और वह है फ़िल्

चाँद आहें भरेगा, फूल दिल थाम लेंगें, हुस्न की बात चली तो सब तेरा नाम लेंगें

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 118 ना यिका की सुंदरता का बयाँ करने वाले गीतों की कोई कमी नहीं है हमारे फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने में। हर दौर मे, हर युग मे, हमारे गीतकारों ने ऐसे ऐसे ख़ूबसूरत से ख़ूबसूरत गीत हमें दिये हैं जिन्होने नायिका की ख़ूबसूरती को चार चाँद लगा दिये हैं। फ़िल्म सगीत के समुंदर में डुबकी लगाकर आज हम ऐसा ही मोती बाहर निकाल लाये हैं इस महफ़िल को रोशन करने के लिए। १९६३ की फ़िल्म 'फूल बने अंगारे' में मुकेश ने एक ऐसा ही गीत गाया था जिसमें फ़िल्म की नायिका माला सिंहा की ख़ूबसूरती का ज़िक्र हो रहा है। गीतकार आनंद बक्शी के शब्दों ने चाँद को आहें भरने पर मजबूर कर दिया था इस गीत में दोस्तों। जी हाँ, "चाँद आहें भरेगा, फूल दिल थाम लेंगे, हुस्न की बात चली तो, सब तेरा नाम लेंगे"। इससे बेहतर और कैसे करे कोई अपनी महबूबा की सुंदरता की तारीफ़! आनंद बख्शी साहब को अगर फ़िल्मी गीतों का 'ऑल राउंडर' कहा जाये तो कोई अतिशयोक्ती नहीं होगी। ज़िंदगी की ज़ुबान का इस्तेमाल करते हुए उन्होने अपने गीतों को सरल, सुंदर और कर्णप्रिय बनाया। उनके गीतों की अपार सफलता और लोकप्रियता इस बात

"ज़िंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी - प्रकाश मेहरा को हिंद युग्म की श्रद्धांजली

एक नौजवान, नाकाम और हताश, मुंबई में मिली असफलताओं का बोझ दिल में लिए घर लौटने की तैयारी कर रहा था कि उसे एक युवा निर्देशक ने रुकने की हिदायत दी, और अपनी एक छोटे बजट की फिल्म में उस नौजवान को मुख्य रोल की पेशकश दी. नौजवान ने उस निर्देशक पर विश्वास किया और सोचा कि एक आखिरी दाव खेल लिया जाए. फिल्म बनी और और जब दर्शकों तक पहुँची तो कमियाबी की एक नयी कहानी लिखी जा चुकी थी... दोस्तों, वो नौजवान थे अमिताभ बच्चन और वो युवा निर्देशक थे प्रकाश मेहरा. प्रकाश मेहरा, एक एक ऐसे जादूगर फ़िल्मकार, जिन्होने ज़िंदगी को एक जुआ समझकर पूरे आन बान से हाथ की सफ़ाई , और हेरा फेरी की हर ज़ंजीर तोड़ी, और तब जाकर कहलाये मुक़द्दर का सिकंदर । फ़िल्म जगत के ये सिकंदर यानी कि असंख्य हिट फ़िल्मों के निर्माता, निर्देशक और गीतकार प्रकाश मेहरा अब हमारे बीच नहीं रहे। उनकी मृत्यु की ख़बर सुनकर न जाने क्यों सबसे पहले 'मुक़द्दर का सिकंदर' फ़िल्म के शीर्षक गीत की वो लाइनें याद आ रहीं हैं कि - "ज़िंदगी तो बेवफ़ा है एक दिन ठुकराएगी, मौत महबूबा है अपने साथ लेकर जाएगी, मर के जीने की अदा जो दुनिया को सिखलाएगा, वो