Skip to main content

Posts

Showing posts with the label javed akhtar

खुदाया तूने कैसे ये जहां सारा बना डाला.....गुलाम अली की मार्फ़त पूछ रहे हैं आनंद बख्शी

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #३७ दि शा जी की पसंद की दूसरी गज़ल लेकर आज हाज़िर हैं हम। आज के अंक में जो गज़ल हम आप सबको सुनवाने जा रहे हैं वह वास्तव में तो एक फिल्म से ली हुई है लेकिन हमारे आज के फ़नकार ने इस गज़ल को मंच से इतनी बार पेश किया है कि लोग अब इसे गैर-फ़िल्मी गज़ल मानने लगे हैं। इस गज़ल की गुत्थी इतनी उलझी हुई है कि एकबारगी तो हमें भरोसा हीं नहीं हुआ कि इसे माननीय अनु मलिक साहब ने संगीतबद्ध किया होगा। फिर हमने अंतर्जाल की खाक छान दी ताकि हमें वास्तविक संगीतकार की जानकारी मिल जाए। ज्यादातर जगहों पर अनु मलिक का हीं नाम था ,लेकिन कुछ लोग अब भी यह दावा करते हैं कि इसे गुलाम अली(हमारे आज के फ़नकार) ने खुद हीं संगीतबद्ध किया है। वैसे हमारी खोज को तब विराम मिला जब गुलाम अली साहब का एक साक्षात्कार हमारे हाथ लगा। उन्होंने उस साक्षात्कार में स्वीकार किया है कि इस गज़ल में संगीत अनु मलिक का हीं है। स्क्रीन इंडिया के एक इंटरव्यू में उनसे जब यह पूछा गया कि अनु मलिक का कहना है कि महेश भट्ट की फ़िल्म "आवारगी" की एक गज़ल "चमकते चाँद को टूटा हुआ तारा बना बैठा" को उन्होंने हीं कम्पोज़

"कल नौ बजे तुम चाँद देखना..."- चाँद है आज भी प्रेम गीतों के लिए गीतकारों की प्रेरणा

ताजा सुर ताल (8) ९० के दशक के शुरुआत में एक बेहद कामियाब फिल्म आई थी "क़यामत से क़यामत तक" जिसने युवाओं को अपना दीवाना बना दिया था. इस फिल्म में नायक जब पहली बार नायिका से जुदा होता है तो कहता है कि जब भी शाम ढले तो तुम डूबते सूरज को देखना मैं भी देखूंगा और इस तरह हम एक दूजे को याद करेंगें. इस खूबसूरत से ख्याल ने बहुत से युवा प्रेमी-प्रेमिकाओं के दिल को धड्काया था उस दौर में. करीब २० साल बाद जावेद अख्तर साहब उसी संवाद में छुपे ख्याल को एक गीत रूप में लेकर हाज़िर हुए हैं आज के "ताजा सुर ताल" गीत में. आवाजें हैं गायक सोनू निगम और और गायिका अलका याग्निक की. दोनों ही फनकार प्रेम गीतों को निभाने में महारत रखते हैं, तो जाहिर है इन दो मधुर आवाजों में ढलने से गीत की शोभा और बढ़ी ही है. संगीतकार तिकडी है शंकर एहसान लॉय की. शंकर एहसान और लॉय जब सामूहिक रूप से संगीतकार टीम बन कर नहीं आये थे और तब जब शंकर महादेवन बतौर गायक अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे थे, तभी से जावेद अख्तर का साथ उन्हें मिला, शंकर की एल्बम "ब्रेथलेस" के लिए जावेद साहब ने ही गीत लिखे, जहाँ शंकर ने

शहर के दुकानदारों को जावेद अख्तर की सलाह - एल्बम संगम से नुसरत साहब की आवाज़ में

बात एक एल्बम की # 07 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर आलेख प्रस्तुतीकरण - सजीव सारथी जैसा कि आप जानते हैं हमारे इस महीने के फीचर्ड एल्बम में दो फनकारों ने अपना योगदान दिया है. नुसरत साहब के बारे में हम पिछले दो अंकों में बात कर ही चुके हैं. आज कुछ चर्चा करते हैं अल्बम "संगम" के गीतकार जावेद अख्तर साहब की. जावेद अख्तर एक बेहद कामियाब पठकथा लेखक और गीतकार होने के साथ साथ साहित्य जगत में भी बतौर एक कवि और शायर अच्छा खासा रुतबा रखते हैं. और क्यों न हों, शायरी तो कई पीढियों से उनके खून में दौड़ रही है. वे गीतकार/ शायर जानिसार अख्तर और साफिया अख्तर के बेटे हैं, और अपने दौर के रससिद्ध शायर मुज़्तर खैराबादी जावेद के दादा हैं. उनकी परदादी सयिदुन निसा "हिरमां" उन्नीसवी सदी की जानी मानी उर्दू कवियित्री रही हैं और उन्हीं के खानदान में और पीछे लौटें तो अल्लामा फजले हक का भी नाम आता है, अल्लामा ग़ालिब के करीबी दोस्त थे और "दीवाने ग़ालिब" का संपादन उन्हीं के ह

वाइस ऑफ़ हेवन - कोई बोले राम-राम, कोई खुदाए........नुसरत फ़तेह अली खान.

बात एक एल्बम की # 06 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर आलेख प्रस्तुतीकरण - नीरज गुरु "बादल" आज फिर नुसरत जी पर लिखने बैठा हूँ, समझ नहीं आता है कि क्या करूँ जो इस शख्स का नशा मुझ पर से उतर जाए. इनका हर सुर खुमारी का वो आलम लेकर आता है कि बस आँखें बंद हो जाती हैं, शरीर के कस-बल ढीले पड़ जाते हैं और एक गहरी ध्यान-मुद्रा में चला जाता हूँ. फिर लगता है कि कोई भी मुझे छेड़े नहीं. पर यह दुनिया है बाबा.....वो मुझे नहीं छोड़ती और यह नुसरत साहब मुझसे नहीं छूटते हैं. आज यही कशमकश मैं आपके साथ बाँटने निकला हूँ. आज जिस नुसरत साहब को हम जानते हैं, उन्हें पाकिस्तानी मौसिकी का रत्न कहा जाता है, बात बड़ी लगती है-सही भी लगती है, पर मेरी नज़र में उन्हें विश्व-संगीत की अमूल्य धरोहर कहा जाए तो कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी. सूफियाना गायन ऐसा है कि कोई भी उसका दीवाना हो जाए, पर यह दीवानगी पैदा करने के लिए ही उस खुदा ने नुसरत जी को हमारे बीच भेजा था. उन्होंने क़व्वाली के ज़रिये, इस सूफियाना अंदा

आफ़रीन आफ़रीन...कौन न कह उठे नुसरत साहब की आवाज़ और जावेद साहब को बोलों को सुन...

बात एक एल्बम की # 05 फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर. फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - "संगम" - नुसरत फतह अली खान और जावेद अख्तर उन दिनों मैं राजस्थान की यात्रा पर था, जहाँ एक बस में मैंने उसके घटिया ऑडियो सिस्टम में खड़खड़ के बीच, "आफरीन-आफरीन.." सुना था. ज़्यादा समझ में नहीं आया पर धुन कहीं अन्दर जाकर समां गई- वहीँ गूँजती रही. फिर जब उदयपुर की एक म्यूजिक शाप पर फिर उसी धुन को सुना जो अबकी बार कहीं ज़्यादा बेहतर थी तो एक नशा-सा छा गया. यह आवाज़ थी जनाब नुसरत फतह अली भुट्टो साहब की. क्या शख्सियत, आवाज़ में क्या रवानगी, क्या खनकपन, क्या लहरिया, क्या सुरूर और क्या अंदाज़ गायकी का, जैसे खुदा खुद ज़मी पर उतर आया हो. मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि जब नुसरत साहब गाते होगें, खुदा भी वहीँ-कहीं आस-पास ही रहता होगा, उन्हें सुनता हुआ मदहोश-सा. धन्य हैं वो लोग, जो उस समय वहां मौजूद रहें होगें. उनकी आवाज़-उनका अंदाज़, उनका वो हाथों को हिलाना, चेहरे पर संजीदगी, संगीत का उम्दा प्रयोग, यह सब जैसे आध्यात्म की नुमाइंदगी करते मालूम देते हैं. दुनिया ने उन्हें देर

फरहान और कोंकणा के सपनों से भरे नैना

सप्ताह की संगीत सुर्खियाँ (10) "सांवरिया" मोंटी से है उम्मीदें संगीत जगत को १६ साल की उम्र में लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के की -बोर्ड वादक के रूप में फ़िल्म "मिस्टर इंडिया" से अपने संगीत कैरियर की शुरुआत करने वाले मोंटी शर्मा आजकल एक टी वी चैनल पर नए गायक/गायिकाओं के हुनर की समीक्षा करते हुए दिखाई देते हैं. फ़िल्म "देवदास" में उन्होंने इस्माईल दरबार को सहयोग दिया था. इसी फ़िल्म के दौरान दरबार और निर्देशक संजय लीला बंसाली के रिश्ते बिगड़ गए, तो संजय ने मोंटी से फ़िल्म का थीम म्यूजिक बनवाया और बकायादा क्रडिट भी दिया. संजय की फ़िल्म "ब्लैक" के बाद मोंटी को अपना जलवा दिखने का भरपूर मौका मिला फ़िल्म "सांवरिया" से. इस फ़िल्म के बाद मोंटी ने इंडस्ट्री में अपने कदम जोरदार तरीके से जमा लिए. पिछले साल उनकी फ़िल्म "हीरो" का गीत हमारे टॉप ५० में स्थान बनने में सफल हुआ था. अभी हाल ही में फ़िल्म "चमकू" में अपने काम के लिए उन्हें कलाकार सम्मान के लिए नामांकन मिला है. मोंटी की आने वाली फिल्में हैं दीपक तिजोरी निर्देशित "फॉक्स"

गोल्डन ग्लोब ए आर रहमान ने कहा "करोड़ों भारतीयों" को सलाम

बात सन् ९६ की है। ४ सालों से बिना रूके, बिना थके फिल्मों में म्युजिक देने के बाद रहमान कुछ अलग करना चाहते थे। दीगर बात है कि कलाकार सीमाओं में अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दे पाता और फिल्मों में संगीत देना सीमा में बँधने जैसा हीं है। निर्माता-निर्देशक,कहानी-पटकथा सबकी बात सुननी होती है।तो हुआ यूँ कि स्क्रीन अवार्ड्स के लिए रहमान मुंबई आए हुए थे और एक होटल में ठहरे थे। अचानक उन्हें कुछ ख्याल आया और उन्होंने अपने बचपन के दोस्त जी० भरत को तलब किया। जी० भरत यानि भरत बाला ने रहमान के साथ लगभग १०० से ज्यादा जिंगल्स पर काम किया था। रहमान और भरत के बीच संगीत पर चर्चा हुई। बातों-बातों में उन दोनों ने अपने अगले एलबम का प्लान कर लिया। उसी साल अंतर्राष्ट्रीय ख्याति-लब्ध म्युजिक कंपनी "सोनी म्युजिक" का भारतीय संगीत-उद्योग में आना हुआ । सोनी भारतीय कलाकारों को प्रोत्साहित करने के बहाने बाज़ार में पाँव जमाना चाहती थी। सोनी के मैनेजिंग डायरेक्टर "विजय सिंह" के दिमाग में जिस पहले बंदे का नाम आया वह थे ए०आर० रहमान । सोनी ने रहमान के साथ तीन कैसेट्स का अनुबंध किया। रहमान ने भरत बाला के साथ ज

सरताज गीत 2008 - आवाज़ की वार्षिक गीतमाला में

वर्ष 2008 के श्रेष्ट 50 फिल्मी गीत (हिंद युग्म के संगीत प्रेमियों द्वारा चुने हुए),पायदान संख्या 10 से 01 तक पिछले अंक में हम आपको 20वें पायदान से 11वें पायदान तक के गीतों से रूबरू करा चुके हैं। उन गीतों का दुबारा आनंद लेने के लिए यहाँ जाएँ। 10वें पायदान - है गुजारिश - फ़िल्म गजिनी अगर इस गीत को आप ध्यान से सुनें तो तो शुरू में और बीच बीच में एक गुनगुनाहट (हम्मिंग) सुनाई देती है, जो सोनू निगम की याद दिलाते हैं, जी हाँ ये हिस्सा सोनू ने ही गाया है, दरअसल इस धुन पर रहमान ने एक गीत बनाया था जिसे सोनू की आवाज़ में रिकॉर्ड किया गया था, पर अफ़सोस वो फ़िल्म नही बन पायी, जब फ़िल्म गजिनी के लिए इसी धुन पर जब प्रसून ने नए शब्द बिठाये, तब सोनू को फ़िर तलब किया गया, पर निगम उन दिनों विदेश में होने के कारण रिकॉर्डिंग के लिए उपलब्ध नही हो पाये तो रहमान ने जावेद अली से गीत को मुक्कमल करवाया पर हम्मिंग सोनू वाली (जो मूल गाने में थी) ही उन्होंने रहने दी. यकीं न हो गीत दुबारा सुनें. 9वें पायदान - इन लम्हों के दामन में - फ़िल्म -जोधा अकबर एक बार रहमान का जादू है यहाँ, कितना खूबसूरत है ये गाना ये आप सुनकर