भंवरा बड़ा नादान, बगियन का मेहमान.....और वो मेहमान गुरु दत्त दुनिया के बगियन को छोड़ चुप चाप चला गया
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 550/2010/250 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का आप ही के इस मनपसंद स्तंभ की ५५०-वीं कड़ी में। पिछले चार दिनों से हम ज़िक्र कर रहे हैं गुरु दत्त द्वारा अभिनीत, निर्मित एवं निर्द्शित फ़िल्मों का, और कल की कड़ी में आ हम पहुँचे थे १९६० की फ़िल्म 'चौदहवीं का चांद' तक। दोस्तों, 'काग़ज़ के फूल' से गुरु दत्त को जो आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा था, वह रकम कुछ १७ लाख की थी जो उन दिनों से हिसाब से बहुत बड़ी रकम थी। युं तो 'चौदहवीं का चांद' ने अच्छा व्यापार किया लेकिन इससे हुए मुनाफ़े से वह घाटा ज़्यादा था। ख़ैर, गुरु दत्त ने भले ही निर्देशन का बंद कर दिया था लेकिन निर्माण का काम जारी रहा। १९६२ में वो लेकर आये एक और यादगार कृति 'साहब, बीवी और ग़ुलाम'। बिमल मित्र के लिखे इसी नाम से बांगला उपन्यास पर आधारित इस फ़िल्म को राष्ट्रपति का सिल्वर मेडल तथा बंगाल फ़िल्म पत्रकार ऐसोसिएशन की तरफ़ से 'फ़िल्म ऒफ़ दि ईयर' का ख़िताब मिला। इसके अलावा बर्लिन फ़िल्म फ़ेस्टिवल में यह फ़िल्म दिखाई गई और ऒस्कर के लिए यह फ़िल्म