Skip to main content

कांकरिया मार के जगाया.....लता का चुलबुला अंदाज़ और निखरा कल्याणजी-आनंदजी के सुरों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 423/2010/123

ल्याणजी-आनंदजी के स्वरबद्ध गीतों का सिलसिला जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'दिल लूटने वाले जादूगर' के अन्तर्गत। आज कल्याणजी-आनंदजी के संगीत का जो रंग आप महसूस करेंगे, वह रंग है लोक संगीत का, और साथ ही साथ छेड़-छाड़ का, मस्ती का, चुलबुलेपन का। यह एक बेहद यूनिक गीत है। यूनिक इसलिए कहा क्योंकि आम तौर पर हमारी फ़िल्मों में कुछ महफ़िलों में, पार्टियों में गाए जाने वाले किस्म के गीत होते हैं, कुछ लोक नृत्य के गीत होते हैं, और कुछ सड़क पर नाचती गाती टोलियों के टपोरी किस्म के नृत्य गीत होते हैं। लेकिन अगर इन तीनों विविध और एक दूसरे से बिलकुल भिन्न शैलियों को एक ही गाने में इस्तेमाल कर दिया जाए तो कैसा रहेगा? जी हाँ, कल्याणजी-आनंदजी ने यही कमाल तो कर दिखाया है आज के प्रस्तुत गीत में। फ़िल्म 'हिमालय की गोद में' का यह चुलबुला सा गीत लता मंगेशकर की आवाज़ में आज सुनिए इस महफ़िल में। माला सिंहा, जो एक रस्टिक, यानी कि गाँव की गोरी जो शहरी तौर तरीकों से बिल्कुल बेख़बर है, उसे मनोज कुमार एक शहरी पार्टी में ले जाते हैं और वहाँ उन्हे नृत्य प्रदर्शन करने को कहा जाता है। तब वो इस गीत को गाते हुए नृत्य करती हैं। इस गाने की धुन को सुनते हुए आप सचमुच ही हिमालय की गोद में पहुँच जाएँगे। पहाड़ों का लोक संगीत कितना सुकून दायक होती है, इस गीत के ज़रिए भी महसूस किया जा सकता है। और मैं क्या चीज़ हूँ साहब, इस गाने की तारीफ़ तो सचिन देव बर्मन साहब ख़ुद कर चुके हैं विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में, जिसमें उन्होने यह कहा था - "मुझे सभी संगीतकारों का संगीत अच्छा लगता है, पर इतना समय नहीं है कि मैं आपको सभी के गानें सुनाऊँ। अब मैं बात करता हूँ कल्याणजी-आनंदजी भाइयों की। जैसा उनका नाम वैसा काम। कल्याणजी अपनी धुनों से संगीत का कल्याण करते हैं, और आनंदजी अपनी धुनों से सबको आनंद पहुँचते हैं। वो दोनों बहुत ही हँसमुख और बिना घमण्ड वाले इंसान हैं। उनकी एक रचना मुझे बेहद पसंद है जो लोक गीत पर आधारित है, आप भी सुनिए।" ज़रूर सुनेंगे दोस्तों, लेकिन उससे पहले इस गीत के बनने की कहानी तो जान लीजिए ख़ुद आनंदजी से।

कमल शर्मा: आनंदजी, आपका कोई गाना, मार्केट में कोई लड़की जो दातून से किसी को मार रही थी, सुना है उससे भी कोई गाना आपने बनाया था? वह कौन सा गाना था?

आनंदजी: (हंसते हुए) अब बातों ही बातों में आप बहुत सारी बातें निकलवा रहे हैं! देखिए, हर सिचुयशन जो है गाने की, उसके पीछे 'इन्स्पिरेशन' कोई ना कोई तो ज़रूर होगा। तो गिरगाम में हम रहते थे, तो दतवाँ (दातून), हम बनिए लोग जो हैं, दतवाँ कहते हैं, तो दतवाँ लेने के लिए पिताजी ने मुझे भेजा। वो बोलते थे कि दतवाँ जो अच्छी ले आए वो समझदार लड़का है। तो ये है कि एक्ज़ाम्पल होता था। तो दतवाँ लेने के लिए भेजा मुझे तो वहाँ दतवाँ काटने वाली लड़की जो है, वो लड़की दतवाँ काट रही थी और उसके बीच में जो होती है ना, गठान, उसको काट के फेंक देती है, बैठे बैठे वो सामने वाले लड़के को मार रही थी। तो वो भी चिल्ला के बोला 'ए क्या कर रही है तू, ये क्या कर रही है तू?' लड़की बोली कि 'तू भी मार ना!' तो ये एक मुखड़ा आ गया कि यह एक ऐंगल रोमांस का भी है। तो उसको उस भाषा में तो लिख नहीं सकते थे, कंकरिया मार के इशारे, तो जहाँ पे ऐसी सिचुएशन आएगी, उसको हम डाल देंगे, मटके के साथ, वगेरह!

तो आइए दोस्तों, इस थिरकते गीत का आनंद लेते हैं और साथ ही साथ सलाम करते हैं मनोज कुमार और कल्याणजी-आनंदजी की तिकड़ी को! आपको बता दें इस गीत के गीतकार हैं आनंद बक्शी साहब।



क्या आप जानते हैं...
कि 'सहेली' का "जिस दिल में बसा था प्यार तेरा" १९६५ की बिनाका गीतमाला की सालाना पायदान का गीत नम्बर एक बना था, तो इसी साल मुकेश की ही आवाज़ में 'हिमालय की गोद' में का "मैं तो एक ख़्वाब हूँ" ने म्युज़िक डायरेक्टर्स ऐसोसिएशन द्वारा प्रदत्त सर्वश्रेष्ठ गीत का पहला पुरस्कार जीता था।

पहेली प्रतियोगिता- अंदाज़ा लगाइए कि कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कौन सा गीत बजेगा निम्नलिखित चार सूत्रों के ज़रिए। लेकिन याद रहे एक आई डी से आप केवल एक ही प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं। जिस श्रोता के सबसे पहले १०० अंक पूरे होंगें उस के लिए होगा एक खास तोहफा :)

१. इस खूबसूरत से युगल गीत के गीतकार बताएं -२ अंक.
२. मुखड़े में शब्द है "मोती", फिल्म का नाम बताएं - २ अंक.
३. एक मशहूर उपन्यास पर आधारित है ये फिल्म, जिसे ४ खण्डों में लिखा गया है, किस मूल भाषा में है ये कृति - २ अंक.
४. ये गीत किस नायक नायिका पर फिल्माया गया है - २ अंक

पिछली पहेली का परिणाम -
इस बार अवध जी पहले आये और ३ अंक चुरा ले गए, शरद जी को दो अंक मिलेंगें पर इंदु जी, इस बार आपका तुक्का नहीं चलेगा. पूर्वी जी आपको बहुत दिनों बाद यहाँ देख बहुत अच्छा लगा

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

गीतकार है : इन्दीवर
AVADH said…
फिल्म: सरस्वतीचंद्र
अवध लाल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की