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चित्रकथा - 65: भीमसेन को श्रद्धांजलि - 40 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है फ़िल्म ’घरौंदा’

अंक - 6५ फ़िल्मकार भीमसेन को श्रद्धांजलि 40 वर्ष बाद भी प्रासंगिक है फ़िल्म ’घरौंदा’  17 अप्रैल 2018 को जानेमाने फ़िल्मकार भीमसेन का 81 वर्ष की आयु में निधन हो गया। भारत में ऐनिमेशन के भीष्म-पितामह का दर्जा रखने वाले भीमसेन 70 के दशक में समानान्तर सिनेमा का आंदोलन छेड़ने वाले फ़िल्मकारों में भी एक सम्माननीय नाम हैं। मुल्तान (वर्तमान पाकिस्तान में) में वर्ष 1936 में जन्में भीमसेन खुराना देश विभाजन के बाद लखनऊ स्थानान्तरित हो गए थे। कलाकारों के परिवार से ताल्लुख़ रखने की वजह से संगीत और कला उन्हें विरासत में ही मिली। ललित कला और शास्त्रीय संगीत की शिक्षा प्राप्त करने की वजह से जीवन भर वो एक अच्छी जगह पर बने रहे। 1961 में भीमसेन ने बम्बई का रुख़ किया और Films Division में बैकग्राउंड पेन्टर की नौकरी कर ली। वहीं पर उन्होंने ऐनिमेशन कला की बारीकियाँ सीख ली। 1971 में भीमसेन स्वतंत्र रूप से फ़िल्म-निर्माण के कार्य में उतरे और अपनी पहली ऐनिमेटेड लघु फ़िल्म ’The Climb' बनाई जिसके लिए उन्हें Chicago Film Festival में "Silver Hugo award" से सम्मानित किया

आ लड़ाई आ - उपेन्द्रनाथ अश्क

बोलती कहानियाँ स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पूजा अनिल की आवाज़ में वंदना अवस्थी दुबे की कहानी " डेरा उखड़ने से पहले " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम लेकर आये हैं उर्दू और हिंदी प्रसिद्ध के साहित्यकार उपेन्द्रनाथ अश्क की एक सधी हुई कहानी " आ लड़ाई आ,  मेरे आंगन में से जा ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 43 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। उर्दू के सफल लेखक उपेन्द्रनाथ 'अश्क' ने मुंशी प्रेमचंद की सलाह पर हिन्दी में लिखना आरम्भ किया। 1933 में प्रकाशित उनके दूसरे कहानी संग्रह 'औरत की फितरत' की भूमिका मुंशी प्रेमचन्द ने ही लिखी थी। अश्क जी को 1972 में 'सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार' से सम्मानित किया गया। हर सप्ताह सुन

राग पूर्वी और पूरिया धनाश्री : SWARGOSHTHI – 366 : RAG PURVI & PURIYA DHANASHRI

स्वरगोष्ठी – 366 में आज दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 5 : पूर्वी थाट राग पूर्वी में ध्रुपद और पूरिया धनाश्री में फिल्म संगीत की रचना उस्ताद अमीर खाँ पण्डित अजय चक्रवर्ती ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘दस थाट, बीस राग और बीस गीत’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्

चित्रकथा - 64: हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-2)

अंक - 64 हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार (भाग-2) "प्यार है अमृत कलश अंबर तले..."  ’रेडियो प्लेबैक इंडिया’ के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! फ़िल्म जगत एक ऐसा उद्योग है जो पुरुष-प्रधान है। अभिनेत्रियों और पार्श्वगायिकाओं को कुछ देर के लिए अगर भूल जाएँ तो पायेंगे कि फ़िल्म निर्माण के हर विभाग में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में ना के बराबर रही हैं। जहाँ तक फ़िल्मी गीतकारों और संगीतकारों का सवाल है, इन विधाओं में तो महिला कलाकारों की संख्या की गिनती उंगलियों पर की जा सकती है। आज ’चित्रकथा’ में हम एक शोधालेख लेकर आए हैं जिसमें हम बातें करेंगे हिन्दी फ़िल्म जगत के महिला गीतकारों की, और उनके द्वारा लिखे गए यादगार गीतों की। पिछले अंक में इस लेख का पहला भाग प्रस्तुत किया गया था, आज प्रस्तुत है इसका दूसरा भाग। त्रुटि सुधार ’हिन्दी फ़िल्मों के महिला गीतकार’ लेख के पहले भाग में हमने जद्दन बाई को प्रथम महिला संगीतकार होने की बात कही थी, जो सही नहीं है। सही नाम है इशरत जहाँ। इशरत जहाँ ने 1934 की फ़िल्म ’अद्ल-ए-जहांगीर’ में संगीत दिया था और जद्द

डेरा उखड़ने से पहले - वंदना अवस्थी दुबे

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने  अनुराग शर्मा  के स्वर में मुंशी प्रेमचंद की एक प्रेरक कथा पञ्च परमेश्वर सुनी थी। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं वंदना अवस्थी दुबे की एक कथा डेरा उखड़ने से पहले जिसे स्वर दिया है पूजा अनिल ने। प्रस्तुत कथा का गद्य " सेतु द्वैभाषिक पत्रिका " पर उपलब्ध है। " डेरा उखड़ने से पहले " का कुल प्रसारण समय 26 मिनट 22 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वंदना अवस्थी दुबे पाँच वर्षों तक आकाशवाणी छतरपुर में अस्थायी उद्घोषिका के रूप में कार्य करने के बाद "दैनिक देशबंधु"- सतना में उप सम्पादक/फ़ीचर सम्पादक के रूप में बारह वर्षीय कार्यानुभव वर्तमान में निजी विद्यालय का संचालन, स्वतंत्र पत्रकारिता औ

राग भैरव और जोगिया : SWARGOSHTHI – 365 : RAG BHAIRAV & JOGIYA

स्वरगोष्ठी – 365 में आज दस थाट, बीस राग और बीस गीत – 4 : भैरव थाट   राग भैरव और जोगिया के स्वरों में शिव की आराधना डॉ.प्रभा अत्रे महेन्द्र कपूर और कमल बारोट ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी श्रृंखला ‘दस थाट, बीस राग और बीस गीत’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया था।

चित्रकथा - 63: अभिनेता राज किशोर को श्रद्धांजलि

अंक - 63 अभिनेता राज किशोर को श्रद्धांजलि नहीं रहे ’पड़ोसन’ के ’लाहौरी’ फ़िल्म जगत के जानेमाने चरित्र अभिनेता राज किशोर जी का 6 अप्रैल 2018 को 85 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्होंने बहुत सी फ़िल्मों में छोटी पर यादगार भूमिकाएँ निभाई हैं। यह अफ़सोसजनक बात है कि आज उनके जाने के बाद अधिकांश लोगों ने केवल ’पड़ोसन’ और ’शोले’ के साथ उनके नाम को जोड़ा जबकि उनके द्वारा अभिनीत फ़िल्मों की सूची बहुत लम्बी है। 1949 से 1997 के बीच राज किशोर जी ने 90 से अधिक फ़िल्मों में अभिनय किया है। आइए आज ’चित्रकथा’ में हम एक नज़र डालें राज किशोर अभिनीत फ़िल्मों पर, और उनके द्वारा निभाए महत्वपूर्ण चरित्रों की बातें करें। ’चित्रकथा’ का आज का यह अंक समर्पित है स्वर्गीय राज किशोर की पुण्य स्मृति को! को ई अभिनेता दर्शकों के दिलों पर राज करे, इसके लिए यह कत‍ई ज़रूरी नहीं है कि उस अभिनेता द्वारा निभाए गए किरदार लम्बी अवधि के हों। अगर अभिनेता में काबिलियत है तो चन्द मिनटों के अभिनय से ही वो बाज़ी मार सकते हैं। फ़िल्म जगत में ऐसे कई चरित्र अभिनेता हुए हैं