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चित्रकथा - 1: उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ का हिन्दी फ़िल्म-संगीत में योगदान

अंक - 1 उस्ताद अब्दुल हलीम जाफ़र ख़ाँ का हिन्दी फ़िल्म-संगीत में योगदान “मधुबन में राधिका नाची रे...” 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। समूचे विश्व में मनोरंजन का सर्वाधिक लोकप्रिय माध्यम सिनेमा रहा है और भारत कोई व्यतिक्रम नहीं है। बीसवीं सदी के चौथे दशक से सवाक् फ़िल्मों की जो परम्परा शुरु हुई थी, वह आज तक जारी है और इसकी लोकप्रियता निरन्तर बढ़ती ही चली जा रही है। और हमारे यहाँ सिनेमा के साथ-साथ सिने-संगीत भी ताल से ताल मिला कर फलती-फूलती चली आई है। सिनेमा और सिने-संगीत, दोनो ही आज हमारी ज़िन्दगी के अभिन्न अंग बन चुके हैं। हमारी दिलचस्पी का आलम ऐसा है कि हम केवल फ़िल्में देख कर या गाने सुनने तक ही अपने आप को सीमित नहीं रखते, बल्कि फ़िल्म संबंधित हर तरह की जानकारियाँ बटोरने का प्रयत्न करते रहते हैं। इसी दिशा में आपके हमसफ़र बन कर हम आ रहे हैं हर शनिवार ’चित्रकथा’ लेकर। ’चित्रकथा’ एक ऐसा स्तंभ है जिसमें बातें होंगी चित्रपट की और चित्रपट-संगीत की। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विषयों से सुसज्जित इस पाठ्य स्तंभ के

परीशाँ हो के मेरी ख़ाक आख़िर दिल न बन जाए.. पेश-ए-नज़र है अल्लामा इक़बाल का दर्द मेहदी हसन की जुबानी

महफ़िल ए कहकशाँ 18 दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है मोहम्मद अल्लामा इकबाल की लिखी गज़ल मेहदी हसन की आवाज़ में|   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी इस ऑडियो को आप यहाँ से डाउनलोड भी कर सकते हैं| लिंक पर राइट क्लिक करके सेव एज का आप्शन चुनें| allamaiqbal.mp3

"आज भी मुझे अपना लखनऊ बहुत याद आता है" - अनवर सागर : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है  एपिसोड - 44 नववर्ष विशेष  दोस्तों नए साल की आप सब को ढेर सारी शुभकामनाएं. आईये आज आपको ले चलें ९० के उस सुरीले दौर में जब रोमांटिक गीतों की मिठास कानों में शहद घोलती थी, और मिलवाते हैं उस दौर के एक बेहद कामियाब गीतकार अनवर सागर साहब से. उनके लिखे ढेरों गीतों से आप सब परिचित हैं, इन दिनों वो अपनी खुद की फिल्म 'लखनऊ से आई उमराव जान' पर काम कर रहे हैं. तो बस प्ले का बट्टन दबाएँ और सुनें ये दिलकश बातचीत.... ये एपिसोड आपको कैसा लगा, अपने विचार आप 09811036346 पर व्हाट्सएप भी कर हम तक पहुंचा सकते हैं, आपकी टिप्पणियां हमें प्रेरित भी करेगीं और हमारा मार्गदर्शन भी....इंतज़ार रहेगा. एक मुलाकात ज़रूरी है के इस एपिसोड के प्रायोजक थे अमेजोन डॉट कॉम, अमोज़ोन पर अब आप खरीद सकते हैं, ये ये ताज़ातरीन पुस्तक, मात्र 102 रूपए में, खरीदने के लिए क्लिक करें    एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें  मिलिए इन जबरदस्त कलाकारों से भी

स्वागत नववर्ष 2017 : SWARGOSHTHI – 299 : WELCOME NEW YEAR 2017

नववर्ष 2017 पर  सभी पाठकों और श्रोताओं को हार्दिक शुभकामनाएँ  स्वरगोष्ठी – 299 में आज महाविजेताओं की प्रस्तुतियाँ – 1 तीसरे महाविजेता प्रफुल्ल पटेल और चौथी महाविजेता हरिणा माधवी की प्रस्तुतियाँ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर सभी संगीत-प्रेमियों का नववर्ष के पहले अंक में हार्दिक अभिनन्दन है। इसी अंक से आपका प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ सातवें वर्ष में प्रवेश कर रहा है। विगत छह वर्षों से असंख्य पाठकों, श्रोताओं, संगीत शिक्षकों और वरिष्ठ संगीतज्ञों का प्यार, दुलार और मार्गदर्शन इस स्तम्भ को मिलता रहा है। इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत छह वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। इस पुनीत अवसर पर मैं कृष्णमोहन मिश्र, ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सम्पादक और संचालक मण्डल के सभी सदस्यों- सजीव सारथी, सुजॉय चटर्जी, अमित तिवारी, अनुराग शर्मा, विश्वदीपक, संज्ञा टण्डन, पूजा अनिल और रीतेश खरे के साथ अपने सभी पाठकों और

अलविदा 2016 - ’वर्षान्त विशेष’ में 2016 के फ़िल्म-संगीत का अन्तिम भाग

वर्षान्त विशेष लघु श्रृंखला 2016 का फ़िल्म-संगीत   भाग-5 रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, देखते ही देखते हम वर्ष 2016 के अन्तिम महीने पर आ गए हैं। कौन कौन सी फ़िल्में बनीं इस साल? उन सभी फ़िल्मों का गीत-संगीत कैसा रहा? ज़िन्दगी की भाग-दौड़ में अगर आपने इस साल के गीतों को ठीक से सुन नहीं सके या उनके बारे में सोच-विचार करने का समय नहीं निकाल सके, तो कोई बात नहीं। हम इन दिनों हर शनिवार आपके लिए लेकर आ रहे हैं वर्ष 2016 में प्रदर्शित फ़िल्मों के गीत-संगीत का लेखा-जोखा। पिछले सप्ताह तक हम इस श्रृंखला में जनवरी से लेकर सितंबर तक का सफ़र तय कर चुके हैं। और आज हम आ पहुँचे हैं अपनी मंज़िल पर। तो आइए आज इसकी पाँचवीं और अन्तिम कड़ी में चर्चा करें उन फ़िल्मों के गीतों की जो प्रदर्शित हुए अक्टुबर, नवंबर और दिसंबर के महीनों में। गु लज़ार और शंकर-अहसान-लॉय जब किसी फ़िल्म में साथ में काम करते हैं तो जादू तो चल ही जाता है। 7 अक्टुबर को प्रदर्शित फ़िल्म ’मिर्ज़्या’ में भी वही जाद

जाने न जाने गुल ही न जाने, बाग़ तो सारा जाने है.. "मीर" के एकतरफ़ा प्यार की कसक और हरिहरण की आवाज़ 'कहकशाँ’ की अन्तिम कड़ी में

कहकशाँ - 27 (अंतिम कड़ी) मीर तक़ी मीर की ग़ज़ल, हरिहरण की आवाज़    "पत्ता-पत्ता बूटा-बूटा हाल हमारा जाने है..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों