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"या तो अभी शुरु में संघर्ष कर लो और बाद में आराम से रहो, या फिर अभी आराम कर लो और बूढ़े होने के बाद संघर्ष करो"

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 18   सोनू निगम ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं।  आज का यह अंक केन्द्रित है सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक सोनू निगम पर।      सो नू निगम का जन्म फ़रिदाबाद में हुआ था, परवरिश उनकी दिल्ली में, और बाद में मुम्बई में हुई। पिता मात

अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा

कहकशाँ - 23 गुलज़ार, पंचम और आशा ’दिल पड़ोसी है’ में    "भीनी भीनी भोर आई..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहकशाँ।  आज प

"मेरा परिवार मुझसे बहुत खुश है, यही सबसे बड़ा कॉम्प्लीमेंट है"- वरदान सिंह : एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है (36) इस शुक्रवार प्रदर्शित हो रही है, विवादों में रही फिल्म "इश्क जूनून", जिसका सबसे लोकप्रिय गीत है, 'कभी यूं भी आ', जिसे लिखा है अज़ीम शिराज़ी ने, और स्वरबद्ध कर गाया है हमारे आज के मेहमान वरदान सिंह ने. वरदान के अब तक के संगीत सफ़र का लेखा जोखा आज खंगालते है, होस्ट सजीव सारथी के साथ.  एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें 

राग दरबारी कान्हड़ा : SWARGOSHTHI – 291 : RAG DARBARI KANHADA

स्वरगोष्ठी – 291 में आज नौशाद के गीतों में राग-दर्शन – 4 : शमशाद बेगम के स्वर में दिल की बात “कभी दिल दिल से टकराता तो होगा, उन्हे मेरा खयाल आता तो होगा...” ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी श्रृंखला – “नौशाद के गीतों में राग-दर्शन” की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय फिल्म संगीत के शिखर पर विराजमान नौशाद अली के व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। श्रृंखला की विभिन्न कड़ियों में हम आपको फिल्म संगीत के माध्यम से रागों की सुगन्ध बिखेरने वाले अप्रतिम संगीतकार नौशाद अली के कुछ राग-आधारित गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। इस श्रृंखला का समापन हम आगामी 25 दिसम्बर को नौशाद अली की 98वीं जयन्ती के अवसर पर करेंगे। 25 दिसम्बर, 1919 को सांगीतिक परम्परा से समृद्ध शहर लखनऊ के कन्धारी बाज़ार में एक साधारण परिवार में नौशाद का जन्म हुआ था। नौशाद जब कुछ बड़े हुए तो उनके पिता वाहिद अली घसियारी मण्डी स्थित अपने नए घर में आ गए। यहीं निकट ही मुख्य मार्

"मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ...”, इस गीत का मुखड़ा हसरत जयपुरी ने नहीं बल्कि जयकिशन ने लिखा था।

एक गीत सौ कहानियाँ - 98   ' मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम  रोज़ाना  रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'|  इसकी 98- वीं कड़ी में आज जानिए 1969 की फ़िल्म ’प्यार ही प्यार’ के मशहूर गीत "मैं कहीं कवि ना बन जाऊँ तेरे प

इसी को प्यार कहते हैं.. प्यार की परिभाषा बता रहे हैं हसरत जयपुरी और हुसैन बंधु

महफ़िल ए कहकशाँ 15 दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, "महफिल ए कहकशां" के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज पेश है गीतकार व शायर हसरत जयपुरी की लिखी नज़्म हुसैन बंधुओं की आवाज़ में|  मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"एक बालसुलभ प्रसन्नता के साथ लता जी अपने समकालीन कलाकारों की बात करती है" - यतीन्द्र मिश्र :एक मुलाकात ज़रूरी है

एक मुलाकात ज़रूरी है (35) लेखक और संगीत अध्येता यतीन्द्र मिश्र की लिखी पुस्तक "लता सुर गाथा" को अभी हाल ही में वाणी प्रकाशन ने जारी किया है, लगभग ६५० पृष्ठों की इस ग्रंथमयी पुस्तक में ३०० से अधिक पृष्ठों में लता जी और यतीन्द्र के बीच लगभग ६ वर्षों के अंतराल में हुई बातचीत का लेखा जोखा है, जिसमें लता जी ने अपने संगीत सफ़र से जुड़े ढेरों संस्मरण पाठकों के साथ बांटे हैं. संगीत प्रेमियों के लिए एक बेहद ज़रूरी दस्तावेज़ है ये पुस्तक, जो आज सभी प्रमूख बुक स्टाल पर उपलब्ध है, यदि आप ऑनलाइन खरीदना चाहें तो अमेजोन डॉट कॉम से खरीद सकते हैं, फिलहाल 'एक मुलाकात ज़रूरी है' के इस एपिसोड में सुनिए उस पुस्तक के रचे जाने की दिलचस्प कहानी, खुद यतीन्द्र की जुबानी.... एक मुलाकात ज़रूरी है इस एपिसोड को आप  यहाँ  से डाउनलोड करके भी सुन सकते हैं, लिंक पर राईट क्लीक करें और सेव एस का विकल्प चुनें