Skip to main content

Posts

"नायक नहीं खलनायक हूँ मैं" - जब फ़िल्मी नायक असली ज़िन्दगी में बन गए खलनायक

चित्रशाला - 08 नायक नहीं खलनायक हूँ मैं जब फ़िल्मी नायक असली ज़िन्दगी में बन गए खलनायक 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! प्रस्तुत है फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत के विभिन्न पहलुओं से जुड़े विषयों पर आधारित शोधालेखों का स्तंभ ’चित्रशाला’। हमारे फ़िल्मी नायक हम पर गहरा छाप छोड़ते हैं। कई बार लोग अपने पसन्दीदा नायकों को असली ज़िन्दगी में भी अपना नायक और कई बार तो अपना भगवान मान बैठते हैं, लगभग उनकी पूजा करते हैं, यह सोचे बग़ैर कि क्या सचमुच वो इस लायक हैं? आज ’चित्रशाला’ में हम चर्चा करेंगे कुछ ऐसे फ़िल्मी नायकों का जो अपनी असली ज़िन्दगी में खलनायक की भूमिका निभा चुके हैं। "ना यक नहीं खलनायक हूँ मैं, ज़ुल्मी बड़ा दुखदायक हूँ मैं...", साल 1993 में फ़िल्म ’खलनायक’ के लिए जब यह गीत बना था और ख़ूब चला भी था, तब शायद किसी को इस बात का अन्दाज़ा नहीं था कि इसी साल ये बोल इस गीत के नायक संजय दत्त की असली ज़िन्दगी पर भी लागू हो जाएगा। 1993 में मुंबई में हुए सीरिअल बम धमाकों, जिनमें 257

अखियाँ नु चैन न आवे....नुसरत बाबा का रूहानी अंदाज़ आज 'कहकशाँ’ में

कहकशाँ - 8 नुसरत फ़तेह अली ख़ाँ और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें   "अब तो आजा कि आँखें उदास बैठी हैं..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी

"गॉड इस ग्रेट, बस इतना ही कहा रहमान जी ने" - हेमा सरदेसाई

एक मुलाकात ज़रूरी है (8) "हि न्दुस्तानी गुडिया" और "पिया से मिलके आये नैन" जैसी एलबम्स से करियर की शुरुआत करने वाली बेहद चुलबुली और अनूठी आवाज़ की मालकिन हेमा सरदेसाई हैं आज की हमारी ख़ास मेहमान कार्यक्रम "एक मुलाकात ज़रूरी है" में. रहमान के संगीत निर्देशन में "आवारा भंवरे" गीत गाने के बाद तो हेमा का नाम घर घर में गूंजने लगा था. अपने दौर के लगभग सभी बड़े संगीतकारों के साथ हेमा ने एक के बाद एक हिट गीत गाये. आईये मिलते हैं हेमा सरदेसाई से और रूबरू होते हैं उनके संगीत सफ़र की दिलचस्प दास्ताँ के कुछ और पहलुओं से.... एक मुलाकात ज़रूरी है कार्यक्रम का ये एपिसोड You Tube पर भी उपलब्ध है...

माँ सब देखती है - बोलती कहानियाँ

इस लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछली बार आपने स्पेन से पूजा अनिल के स्वर में डॉ अनुराग आर्या की कहानी " शॉर्टकट टु हैपिनैस " का वाचन सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं पूजा अनिल की कहानी माँ सब देखती है अर्चना चावजी के स्वर में। प्रस्तुत कथा का गद्य " अभिव्यक्ति " पर उपलब्ध है। " माँ सब देखती है " का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 27 सेकंड है। सुनिए और बताइये कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। लेखिका: पूजा अनिल उदयपुर, राजस्थान में जन्मीं पूजा अनिल सन् १९९९ से स्पेन की राजधानी मेड्रिड में रह रही हैं। साहित्य पढ़ने लिखने में बचपन से ही रुचि रही। ब्लॉग 'एक बूँद' का संचालन तथा हिन्द युग्म तथा पत्रिकाओं में आलेख, साक्षात्कार, निबंध व कविताय

रसभरी चैती : SWARGOSHTHI – 267 : CHAITI SONGS

स्वरगोष्ठी – 267 में आज होली और चैती के रंग – 5 : कुछ पुरानी चैती ‘यही ठइयाँ मोतिया हेराय गइलें रामा कहवाँ मैं ढूँढू ...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों और रचनाओं की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती परिवेश में गाने-बजाने की परम्परा है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और पर्वों का निर्धारण ऋतु परिवर्तन के साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की सन्धिबेला में मनाया जाने वाला पर्व- होलिकोत्सव और चैत्रोत्सव प्रकारान्तर से पूरे देश में आयोजित होता है। यह उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और नर्तन का पर्व है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत

BAATON BAATON MEIN - 18: INTERVIEW OF SHAMSHAD BEGUM (PART-1)

बातों बातों में - 18 पार्श्वगायिका शमशाद बेगम से गजेन्द्र खन्ना की बातचीत भाग-1 " मुझे अपने दम पर काम मिलता गया , कभी किसी लॉबी की ज़रूरत नहीं पड़ी "     नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को।  आज इस स्तंभ में हम आपके लिए लेकर आए हैं फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका

महफ़िल ए कहकशां - 3 - बम बम बम भोला..! रसन पिया अपनी रचना में गा कर सुनाते हैं शिव पार्वती विवाह वृत्तान्त के समय किस तरह नाग को देख पंडित तक काँप जाते हैं।

महफिले कहकशां (३) उस्ताद अब्दुल रशीद साहब  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, महफिले कहकशां के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए उस्ताद अब्दुल रशीद खान उर्फ़ रसन पिया को श्रद्धांजलि उन्ही की गाई एक बंदिश से।   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी