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BAATON BAATON MEIN - 18: INTERVIEW OF SHAMSHAD BEGUM (PART-1)

बातों बातों में - 18 पार्श्वगायिका शमशाद बेगम से गजेन्द्र खन्ना की बातचीत भाग-1 " मुझे अपने दम पर काम मिलता गया , कभी किसी लॉबी की ज़रूरत नहीं पड़ी "     नमस्कार दोस्तो। हम रोज़ फ़िल्म के परदे पर नायक-नायिकाओं को देखते हैं, रेडियो-टेलीविज़न पर गीतकारों के लिखे गीत गायक-गायिकाओं की आवाज़ों में सुनते हैं, संगीतकारों की रचनाओं का आनन्द उठाते हैं। इनमें से कुछ कलाकारों के हम फ़ैन बन जाते हैं और मन में इच्छा जागृत होती है कि काश, इन चहेते कलाकारों को थोड़ा क़रीब से जान पाते, काश; इनके कलात्मक जीवन के बारे में कुछ जानकारी हो जाती, काश, इनके फ़िल्मी सफ़र की दास्ताँ के हम भी हमसफ़र हो जाते। ऐसी ही इच्छाओं को पूरा करने के लिए 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' ने फ़िल्मी कलाकारों से साक्षात्कार करने का बीड़ा उठाया है। । फ़िल्म जगत के अभिनेताओं, गीतकारों, संगीतकारों और गायकों के साक्षात्कारों पर आधारित यह श्रृंखला है 'बातों बातों में', जो प्रस्तुत होता है हर महीने के चौथे शनिवार को।  आज इस स्तंभ में हम आपके लिए लेकर आए हैं फ़िल्म जगत की सुप्रसिद्ध पार्श्वगायिका

महफ़िल ए कहकशां - 3 - बम बम बम भोला..! रसन पिया अपनी रचना में गा कर सुनाते हैं शिव पार्वती विवाह वृत्तान्त के समय किस तरह नाग को देख पंडित तक काँप जाते हैं।

महफिले कहकशां (३) उस्ताद अब्दुल रशीद साहब  दो स्तों सुजोय और विश्व दीपक द्वारा संचालित "कहकशां" और "महफिले ग़ज़ल" का ऑडियो स्वरुप लेकर हम हाज़िर हैं, महफिले कहकशां के रूप में पूजा अनिल और रीतेश खरे  के साथ।  अदब और शायरी की इस महफ़िल में आज सुनिए उस्ताद अब्दुल रशीद खान उर्फ़ रसन पिया को श्रद्धांजलि उन्ही की गाई एक बंदिश से।   मुख्य स्वर - पूजा अनिल एवं रीतेश खरे  स्क्रिप्ट - विश्व दीपक एवं सुजॉय चटर्जी

"मैं आसाम के एक छोटे शहर से मुंबई आया संगीतकार बनने का सपना लेकर" - बिस्वजीत भट्टाचार्जी

एक मुलाकात ज़रूरी है (7) उ भरते हुए युवा संगीतकार बिस्वजीत भट्टाचार्जी उर्फ़ बिबो हैं आज के हमारे ख़ास मेहमान कार्यक्रम "एक मुलाकात ज़रूरी है" में. अभी हाल ही में आपके संगीत से सजी फिल्म "मुरारी -द मैड जेंटलमैन" प्रदर्शित हुई है. आईये मिलते हैं इस बेहद प्रतिभावान गायक संगीतकार से आज सजीव सारथी के साथ,

उपशास्त्रीय मंच की चैती : SWARGOSHTHI – 266 : CHAITI SONGS

स्वरगोष्ठी – 266 में आज होली और चैती के रंग – 4 : चैती गीतों के वर्ण्य-विषय ‘चैत मासे चुनरी रंगइबे हो रामा, पिया घर लइहें...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर हमारी श्रृंखला – ‘होली और चैती के रंग’ की चौथी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला में हम ऋतु के अनुकूल भारतीय संगीत के कुछ ऐसे रागों और रचनाओं की चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें ग्रीष्मऋतु के शुरुआती परिवेश में गाने-बजाने की परम्परा है। भारतीय समाज में अधिकतर उत्सव और पर्वों का निर्धारण ऋतु परिवर्तन के साथ होता है। शीत और ग्रीष्म ऋतु की सन्धिबेला में मनाया जाने वाला पर्व- होलिकोत्सव और चैत्रोत्सव प्रकारान्तर से पूरे देश में आयोजित होता है। यह उल्लास और उमंग का, रस और रंगों का, गायन-वादन और नर्तन का पर्व है। भारतीय संगीत की कई ऐसी लोक-शैलियाँ हैं, जिनका प्रयोग उपशास्त्रीय संगीत में भी किया जाता है। होली पर्व के बाद, आरम्भ होने वाले चैत्र से ग्रीष्म ऋतु का आगमन हो जाता है। इस परिवेश में पूरे उत्तर भारत

"कई सदियों से, कई जनमों से...", केवल 24 घण्टे के अन्दर लिख, स्वरबद्ध और रेकॉर्ड होकर पहुँचा था सेट पर यह गीत

एक गीत सौ कहानियाँ - 80   ' कई सदियों से, कई जनमों से... '   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'। इसकी 80-वीं कड़ी में आज जानिए 1972 की फ़िल्म ’मिलाप’ के मशहूर गीत "कई सदियों से कई जनमों से..." के बारे में जिस

यह ऐसी प्यास है जिसको मिले मुद्दत से मयखाना..... ’कहकशाँ’ में आज जगजीत सिंह सीखा रहे हैं प्यार का पहला ख़त लिखना

कहकशाँ - 7 जगजीत सिंह की आवाज़  में   "प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है..." ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को हमारा सलाम! दोस्तों, शेर-ओ-शायरी, नज़्मों, नगमों, ग़ज़लों, क़व्वालियों की रवायत सदियों की है। हर दौर में शायरों ने, गुलुकारों ने, क़व्वालों ने इस अदबी रवायत को बरकरार रखने की पूरी कोशिशें की हैं। और यही वजह है कि आज हमारे पास एक बेश-कीमती ख़ज़ाना है इन सुरीले फ़नकारों के फ़न का। यह वह कहकशाँ है जिसके सितारों की चमक कभी फ़ीकी नहीं पड़ती और ता-उम्र इनकी रोशनी इस दुनिया के लोगों के दिल-ओ-दिमाग़ को सुकून पहुँचाती चली आ रही है। पर वक्त की रफ़्तार के साथ बहुत से ऐसे नगीने मिट्टी-तले दब जाते हैं। बेशक़ उनका हक़ बनता है कि हम उन्हें जानें, पहचानें और हमारा भी हक़ बनता है कि हम उन नगीनों से नावाकिफ़ नहीं रहें। बस इसी फ़ायदे के लिए इस ख़ज़ाने में से हम चुन कर लाएँगे आपके लिए कुछ कीमती नगीने हर हफ़्ते और बताएँगे कुछ दिलचस्प बातें इन फ़नकारों के बारे में। तो पेश-ए-ख़िदमत है नगमों, नज़्मों, ग़ज़लों और क़व्वालियों की एक अदबी महफ़िल, कहक

एक फिल्म का निर्माण यानी ५ शादियों का काम, जहाँ ५ नहीं सैकड़ों दामादों की फ़ौज हो जिम्मे - हर्षवर्धन ओझा

एक मुलाकात ज़रूरी है (6) हालिया प्रदर्शित "ग्लोबल बाबा" नाम की फिल्म से सफलता के झंडे गाढ़ने वाले एक्सिक्यूटिव प्रोड्यूसर हर्षवर्धन ओझा जी है हमारे आज के ख़ास मेहमान "एक मुलाकात ज़रूरी है" कार्यक्रम में. आईये जानते है उनसे फिल्म निर्माण सम्बन्धी कुछ पहलुओं पर उनके विचार....