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"आज फिर जीने की तमन्ना है..." - क्यों शुरू-शुरू में पसन्द नहीं आया था देव आनन्द को यह गीत

एक गीत सौ कहानियाँ - 72   'आज फिर जीने की तमन्ना है...'     रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 72-वीं कड़ी में आज जानिए 1964 की फ़िल्म ’गाइड’ के गीत "आज फिर जीने की तमन्ना है..." के बारे में जिसे लता मंगेशकर न

रघुनाथ सेठ की प्रयोगधर्मी बाँसुरी : SWARGOSHTHI – 248 : EXPERIMENTAL FLUTE BY RAGHUNATH SETH

स्वरगोष्ठी – 248 में आज संगीत के शिखर पर – 9 : पण्डित रघुनाथ सेठ पण्डित रघुनाथ सेठ के जन्मदिन पर एक स्वरांजलि रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की नौवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की नौवीं कड़ी में हम आपके साथ भारतीय संगीत वाद्य, बाँसुरी और इस वाद्य के एक अनन्य स्वर-साधक, पण्डित रघुनाथ सेठ की सृजनात्मक साधना पर चर्चा करेंगे। आपको हम यह भी अवगत कराना चाहते हैं कि 15 दिसम्बर को श्री सेठ का 85वाँ जन्म-दिवस है। इस उपलक्ष्य में हम ‘स्वरगोष्ठी’ के पाठकों-श्रोताओं की ओर से उन्हें स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं। आज के अंक म

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 08: आशा भोसले

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 08   आशा भोसले   यंत्रणा इतनी बढ़ गई कि दोनों बच्चों और गर्भ में पल रहे तीसरे सन्तान को लेकर आशा ने अपना ससुराल हमेशा के लिए छोड़ दिया ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं।  आज का यह अंक केन्द्रित है फ़िल्म जगत सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका आ

असगर वजाहत की जब वह बुलाएगा

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार हरिशंकर परसाई की लघुकथा " समझौता " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, असगर वजाहत की लघुकथा जब वह बुलाएगा , जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस कहानी जब वह बुलाएगा का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 47 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। असगर वजाहत की निम्न कहानियाँ भी रेडियो प्लेबैक इंडिया पर सुनी जा सकती हैं: हंसी   राजा   आग चार सूफी और एक कंबल यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। रात के वक्त़ रूहें अपने बाल-बच्चों से मिलने आती हैं।  ~ असगर वजाहत हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी &

मोहनवीणा और विश्वमोहन भट्ट : SWARGOSHTHI – 247 : MOHAN VEENA & VISHWAMOHAN BHATT

स्वरगोष्ठी – 247 में आज संगीत के शिखर पर – 8 : पण्डित विश्वमोहन भट्ट मोहनवीणा के अन्वेषक और वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की आठवीं कड़ी में हम पश्चिम के लोकप्रिय तंत्रवाद्य हवाइयन गिटार या स्लाइड गिटार के परिवर्तित भारतीय रूप ‘मोहनवीणा’ के अन्वेषक और विश्वविख्यात वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट के व्यक्तित्व और कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही इस वाद्य के मूल उद्गम पर भी चर्चा करेंगे। आज हम आपको पण्डित विश्वमोहन भट्ट द्वारा मोहनवीणा पर

"जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम..." - क्यों इस गीत की धुन चुराने पर भी अनु मलिक को दोष नहीं दिया जा सकता!

एक गीत सौ कहानियाँ - 71   'जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 71-वीं कड़ी में आज जानिए 1989 की फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ के शीर्षक गीत "जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...&

रुद्रवीणा और उस्ताद असद अली खाँ : SWARGOSHTHI – 246 : RUDRAVEENA & USTAD ASAD ALI KHAN

स्वरगोष्ठी – 246 में आज संगीत के शिखर पर – 7 : उस्ताद असद अली खाँ वैदिक तंत्रवाद्य रुद्रवीणा के साधक उस्ताद असद अली खाँ रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की सातवीं कड़ी में हम आज हम वैदिककालीन तंत्रवाद्य रुद्रवीणा अनन्य साधक उस्ताद असद अली खाँ की संगीत साधना के व्यक्तित्व और कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। आज हम आपको उस्ताद असद अली खाँ द्वारा रुद्रवीणा पर बजाया ध्रुपद अंग में राग आसावरी और आभोगी की रचनाएँ सुनवाएँगे। वै दिककालीन वाद्य रूद्रवीणा को परम्परागत