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असगर वजाहत की जब वह बुलाएगा

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा के स्वर में हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार हरिशंकर परसाई की लघुकथा " समझौता " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं, असगर वजाहत की लघुकथा जब वह बुलाएगा , जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस कहानी जब वह बुलाएगा का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 47 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। असगर वजाहत की निम्न कहानियाँ भी रेडियो प्लेबैक इंडिया पर सुनी जा सकती हैं: हंसी   राजा   आग चार सूफी और एक कंबल यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। रात के वक्त़ रूहें अपने बाल-बच्चों से मिलने आती हैं।  ~ असगर वजाहत हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी हिन्दी कहानी &

मोहनवीणा और विश्वमोहन भट्ट : SWARGOSHTHI – 247 : MOHAN VEENA & VISHWAMOHAN BHATT

स्वरगोष्ठी – 247 में आज संगीत के शिखर पर – 8 : पण्डित विश्वमोहन भट्ट मोहनवीणा के अन्वेषक और वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी हमारी सुरीली श्रृंखला – ‘संगीत के शिखर पर’ की आठवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-रसिकों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में हम भारतीय संगीत की विभिन्न विधाओं में शिखर पर विराजमान व्यक्तित्व और उनके कृतित्व पर चर्चा कर रहे हैं। संगीत गायन और वादन की विविध लोकप्रिय शैलियों में किसी एक शीर्षस्थ कलासाधक का चुनाव कर हम उनके व्यक्तित्व का उल्लेख और उनकी कृतियों के कुछ उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं। आज श्रृंखला की आठवीं कड़ी में हम पश्चिम के लोकप्रिय तंत्रवाद्य हवाइयन गिटार या स्लाइड गिटार के परिवर्तित भारतीय रूप ‘मोहनवीणा’ के अन्वेषक और विश्वविख्यात वादक पण्डित विश्वमोहन भट्ट के व्यक्तित्व और कृतित्व की संक्षिप्त चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही इस वाद्य के मूल उद्गम पर भी चर्चा करेंगे। आज हम आपको पण्डित विश्वमोहन भट्ट द्वारा मोहनवीणा पर

"जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम..." - क्यों इस गीत की धुन चुराने पर भी अनु मलिक को दोष नहीं दिया जा सकता!

एक गीत सौ कहानियाँ - 71   'जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...'   रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़े दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 71-वीं कड़ी में आज जानिए 1989 की फ़िल्म ’आख़िरी बाज़ी’ के शीर्षक गीत "जाँ की यह बाज़ी आख़िरी बाज़ी खेलेंगे हम...&