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चित्रशाला - 02: स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका

स्वतंत्रता दिवस पर विशेष प्रस्तुति चित्रशाला - 02 स्वाधीनता संग्राम में फ़िल्म-संगीत की भूमिका 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। फ़िल्म और फ़िल्म-संगीत से जुड़े विविध पहलुओं से सम्बन्धित शोधालेखों पर आधारित श्रृंखला 'चित्रशाला' में आप सब का स्वागत है। आज राष्ट्र अपना 69-वाँ स्वाधीनता दिवस मना रहा है। इस विशेष पर्व पर हम अपने सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएँ देते हैं। भारत के स्वाधीनता संग्राम में केवल क्रान्तिकारियों और नेताओं का ही योगदान नहीं था, बल्कि समाज के हर वर्ग के लोगों और संस्थाओं ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इस देश को आज़ादी दिलाने में अपना अपना योगदान दिया। फ़िल्म, संगीत और फ़िल्म-संगीत का भी योगदान कम उल्लेखनीय नहीं था। आइए आज ’चित्रशाला’ के दूसरे अंक में जाने कि किस तरह से फ़िल्मी गीतों ने हमारे स्वाधीनता संग्राम में राष्ट्रीय भावना को जनसाधारण में जागृत करनए में योगदान दिया। प्रस्तुत है सुजॉय चटर्जी द्वारा लिखित शोधालेख ’स्वाधीनता संग्राम म

मोनिका गुप्ता की लघुकथा सहयोग

लोकप्रिय स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवाते रहे हैं नई, पुरानी, अनजान, प्रसिद्ध, मौलिक और अनूदित, यानि के हर प्रकार की कहानियाँ। पिछली बार आपने  अनुराग शर्मा  के स्वर में  काजल कुमार  की लघुकथा " समय " का पाठ सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं मोनिका गुप्ता लिखित लघुकथा सहयोग , उन्हीं के स्वर में। इस कहानी सहयोग  का कुल प्रसारण समय 1 मिनट 45 सेकंड है। इसका गद्य कथा-कहानी ब्लॉग पर उपलब्ध है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। सिरसा निवासी साहित्यकार और रेडियो व्यक्तित्व मोनिका गुप्ता देश के जाने माने राष्ट्रीय समाचार पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं। आकाशवाणी और दूरदर्शन कार्यक्रमों के अलावा उन्होने जिंगल्स और वॉइस ओवर भी किये हैं। उनका बाल उपन्यास ‘वो तीस दिन’ नैशनल बुक ट्रस्

कजरी के लोक स्वरूप : SWARGOSHTHI – 231 : FOLK KAJARI

स्वरगोष्ठी – 231 में आज रंग मल्हार के – 8 : कजरी गीतों के लोक स्वरूप ‘कइसे खेले जइबू सावन में कजरिया, बदरिया घेरि आई ननदी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज भी जारी है, हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’। श्रृंखला की आठवीं और समापन कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला में अब तक आप वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाएँ सुन रहे हैं और हम उन पर चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में स

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 05 - कानन देवी

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी - 05   कानन देवी ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी दोस्तों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, किसी ने सच ही कहा है कि यह ज़िन्दगी एक पहेली है जिसे समझ पाना नामुमकिन है। कब किसकी ज़िन्दगी में क्या घट जाए कोई नहीं कह सकता। लेकिन कभी-कभी कुछ लोगों के जीवन में ऐसी दुर्घटना घट जाती है या कोई ऐसी विपदा आन पड़ती है कि एक पल के लिए ऐसा लगता है कि जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया। पर निरन्तर चलते रहना ही जीवन-धर्म का निचोड़ है। और जिसने इस बात को समझ लिया, उसी ने ज़िन्दगी का सही अर्थ समझा, और उसी के लिए ज़िन्दगी ख़ुद कहती है कि 'तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी'। इसी शीर्षक के अन्तर्गत इस नई श्रृंखला में हम ज़िक्र करेंगे उन फ़नकारों का जिन्होंने ज़िन्दगी के क्रूर प्रहारों को झेलते हुए जीवन में सफलता प्राप्त किये हैं, और हर किसी के लिए मिसाल बन गए हैं। आज का यह अंक समर्पित है फ़िल्म जगत के प्रथम दौर की मशहूर गायिका-अभिनेत्री कानन देवी को।     22  अप्रैल 1916 को कोलकाता के पास हावड़ा में एक छोटी बच्ची का जन्म हुआ। माँ ने नाम रखा क

सावन की कजरी : SWARGOSHTHI – 230 : KAJARI SONGS

स्वरगोष्ठी – 230 में आज रंग मल्हार के – 7 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप ‘बरसन लागी बदरिया रूम झूम के...’         ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी है, हमारी लघु श्रृंखला ‘रंग मल्हार के’। श्रृंखला की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का एक बार पुनः हार्दिक स्वागत करता हूँ। यह श्रृंखला, वर्षा ऋतु के रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत पर केन्द्रित है। इस श्रृंखला में अब तक आप वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाएँ सुन रहे थे और हम उन पर चर्चा कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी हम प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। पावस ऋतु के पर