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"मेरे तो गिरिधर गोपाल, दूसरो न कोय", जनमाष्टमी पर फ़िल्म 'मीरा' के संगीत से जुड़ी कुछ दिलचस्प बातें

एक गीत सौ कहानियाँ - 38   ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल . ..’ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, हम रोज़ाना रेडियो पर, टीवी पर, कम्प्यूटर पर, और न जाने कहाँ-कहाँ, जाने कितने ही गीत सुनते हैं, और गुनगुनाते हैं। ये फ़िल्मी नग़में हमारे साथी हैं सुख-दुख के, त्योहारों के, शादी और अन्य अवसरों के, जो हमारे जीवन से कुछ ऐसे जुड़े हैं कि इनके बिना हमारी ज़िन्दगी बड़ी ही सूनी और बेरंग होती। पर ऐसे कितने गीत होंगे जिनके बनने की कहानियों से, उनसे जुड़ी दिलचस्प क़िस्सों से आप अवगत होंगे? बहुत कम, है न? कुछ जाने-पहचाने, और कुछ कमसुने फ़िल्मी गीतों की रचना प्रक्रिया, उनसे जुड़ी दिलचस्प बातें, और कभी-कभी तो आश्चर्य में डाल देने वाले तथ्यों की जानकारियों को समेटता है 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' का यह स्तम्भ 'एक गीत सौ कहानियाँ'।  इसकी 38वीं कड़ी में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पवित्र अवसर पर आज जानिये फ़िल्म 'मीरा' में वाणी जयराम का गाया भजन "मेरे तो गिरिधर गोपाल दूसरो न कोय..."। भ क्तिरस

जब रहमान के दिल से निकला नाद वन्दे मातरम का...

पोडकास्ट सिरीस - हिंदी के 50 श्रेष्ठ गैर फ़िल्मी एलबम्स एपिसोड # 01 - वन्दे मातरम : ए आर रहमान   स्क्रिप्ट - विश्व दीपक  प्रस्तोता - सजीव सारथी  

बोलती कहानियाँ - दियासलाई वाली बच्ची

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं नई पुरानी, रोचक कहानियाँ। पिछली बार आपने अनुराग शर्मा द्वारा लेखनीबद्ध लघुकथा " ईमान की लूट " का पॉडकास्ट उन्हीं की आवाज़ में सुना था। आज हम लेकर आये हैं विश्व प्रसिद्ध लेखक हान्स क्रिश्चियन एंडरसन की कथा " Den Lille Pige med Svovlstikkerne " का हिन्दी सार-संक्षेप, दियासलाई वाली बच्ची  - सार-अनुवाद और वाचन अनुराग शर्मा द्वारा। कहानी " दियासलाई वाली बच्ची " का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 8 सेकंड है। कहानी का गद्य बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो देर न करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क करें। जब शब्द चुक जाते हैं, संगीत बोलता है। ~ हान्स क्रिश्चियन एंडरसन "बोलती कहानियाँ" में हर सप्ताह सुनें एक नयी कहानी वह डरती थी कि अगर माचिस नहीं

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

स्वतंत्रता दिवस के इस सप्ताह में पढ़िये कुछ गीतकारों के संदेश हमारे फ़ौजी जवानों के नाम

स्मृतियों के स्वर - 07 स्वतंत्रता दिवस सप्ताह में विशेष 'उन सरहदों की बात कभी नहीं करता जो दिलों में पैदा हो जाती हैं...' 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी श्रोता-पाठकों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, एक ज़माना था जब घर बैठे प्राप्त होने वाले मनोरंजन का एकमात्र साधन रेडियो हुआ करता था। गीत-संगीत सुनने के साथ-साथ बहुत से कार्यक्रम ऐसे हुआ करते थे जिनमें कलाकारों के साक्षात्कार प्रस्तुत किये जाते थे और जिनके ज़रिये फ़िल्म और संगीत जगत के इन हस्तियों की ज़िन्दगी से जुड़ी बहुत सी बातें जानने को मिलती थी। गुज़रे ज़माने के इन अमर फ़नकारों की आवाज़ें आज केवल आकाशवाणी और दूरदर्शन के संग्रहालय में ही सुरक्षित हैं। मैं ख़ुशक़िस्मत हूँ कि शौकिया तौर पर मैंने पिछले बीस वर्षों में बहुत से ऐसे कार्यक्रमों को लिपिबद्ध कर अपने पास एक ख़ज़ाने के रूप में समेट रखा है। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर, महीने के हर दूसरे और चौथे शनिवार को इसी ख़ज़ाने में से मैं निकाल लाता हूँ कुछ अनमोल मोतियाँ, हमारे इस स्तम्भ में, जिसका शीर्षक है - स्मृतियों के स्वर, जिसमें हम

ईमान की लूट - लघु कथा - अनुराग शर्मा

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं नई पुरानी, रोचक कहानियाँ। पिछली बार आपने माधवी चारुदत्ता के स्वर में दो पुरानी लोककथाओं के अनुराग शर्मा द्वारा लेखनीबद्ध आधुनिक संस्करण " तरह तरह के बिच्छू " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम लेकर आये हैं  अनुराग शर्मा की लघुकथा " ईमान की लूट ", उन्हीं की आवाज़ में। कहानी " ईमान की लूट " का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 9 सेकंड है। कहानी का गद्य बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो देर न करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया हमें admin@radioplaybackindia.com पर संपर्क करें। कई कलाकारों की दुकान जमाने में उनके अभिनय से अधिक योगदान उनके मेकअप आर्टिस्ट का होता है। ~ अनुराग शर्मा "बोलती कहानियाँ" में हर सप्ताह सुनें एक नयी कहानी वकील बोला कि गैंग को बचाने के लिए झूठ बोलते-बोलते उसकी ईमानदारी स

‘सावन की रातों में ऐसा भी होता है...’ : SWARGOSHTHI – 179 : Raag Des Malhar & Jayant Malhar

स्वरगोष्ठी – 179 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 5 : राग देस मल्हार और जयन्त मल्हार दो रागों के मेल से सृजित मल्हार अंग के दो राग ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की पाँचवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी प्रस्तुत कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत मल्हार अंग के सभी राग पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ हैं। आम तौर पर इन रागों का गायन-वादन वर्षा ऋतु में अधिक किया जाता है। इसके साथ ही कुछ ऐसे सार्वकालिक राग भी हैं जो स्वतंत्र रूप से अथवा मल्हार अंग के मेल से भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम