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सारंगी वादक राम नारायण का भी योगदान रहा इस यादगार गीत में

खरा सोना गीत - तुम क्या जानो प्रस्तोता - अंतरा चक्रवर्ती प्रस्तुति - संज्ञा टंडन 

शुद्ध हिंदी शब्दों से बुना एक शृंगार रस से ओत-प्रोत एक अमर गीत

खरा सोना गीत - चन्दन सा बदन प्रस्तोता - रचेता टंडन  संचालन - संज्ञा टंडन 

कुमार गन्धर्व, जसराज और मन्ना डे ने भी कबीर को गाया

    स्वरगोष्ठी – 149 में आज रागों में भक्तिरस – 17 ‘दास कबीर जतन से ओढ़ी ज्यों की त्यों धर दीन्ही चदरिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की सत्रहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का नये वर्ष की पहली कड़ी में हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और कुछ प्रमुख भक्तिरस कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की पिछली कड़ी में हमने पन्द्रहवीं शताब्दी के सन्त कवि कबीर के व्यक्तित्व और उनके एक पद- ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ पर चर्चा की थी। पिछले अंक में हमने यह पद ध्रुवपद, भजन और मालवा की लोक संगीत शैली में प्रस्तुत किया था। कबीर का यही पद आज हम सुविख्यात गायक पण्डित कुमार गन्धर्व, पण्डित जसराज और पार्श्वगायक मन्ना डे की आवाज़ में प्रस्तुत करेंगे।      क बीर एक सन्त कवि ही नहीं समाज सुधारक भी थे। उन्होने हिन्दू

अभिनेता फ़ारूख़ शेख़ की पुण्य स्मृति को समर्पित है आज की 'सिने पहेली'

सिने पहेली –95 'सिने पहेली' के सभी चाहनेवालों को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार! और साथ ही नववर्ष की हार्दिक शुभकामनायें! दोस्तों, पिछले दिनों छुट्टियों का मौसम रहा। साल का अन्तिम सप्ताह पर्यटन का सप्ताह होता है, और आप भी ज़रूर कहीं न कहीं घूम आये होंगे। लेकिन साल के उस अन्तिम सप्ताह में अभिनेता फ़ारूख़ शेख़ के देहान्त का समाचार सुन कर दिल ग़मगीन हो गया। फ़ारूख़ शेख़ एक लाजवाब अभिनेता थे, उनका अपना ही एक अन्दाज़ था, जो सबसे अलग, सबसे जुदा था। अभिनय में इतनी सहजता थी कि उनके द्वारा निभाया हुआ कर किरदार बिल्कुल सच्चा लगता था। शारीरिक गठन, चेहरा और अभिनय, कुल मिला कर उनका व्यक्तित्व ऐसा था कि उनके द्वारा निभाया किरदार हमारे परिवार का ही कोई सदस्य जैसा जान पड़ता था। और शायद यही वजह है कि फ़ारूख़ साहब हम सब के चहेते रहे। लगता ही नहीं कि वो आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं। आइए इस बेमिसाल फ़नकार की पुण्य स्मृति को समर्पित करते हैं आज की यह 'सिने पहेली'। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की तरफ़ से फ़ारूख़ शेख़ को हमारी भावभीनी श्रद्धांजलि। आज की प

साल २०१३ के कुछ बहतरीन गीत रेडियो प्लेबैक की टीम द्वारा चुने हुए

रेडियो प्लेबैक इंडिया के टॉप २५ गीत एक साथ सुनें संज्ञा टंडन के साथ. एक बार फिर नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ 

स्वागत 2014

‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के सभी पाठकों/श्रोताओं को  नववर्ष की मंगलकामनाएँ  मंगल ध्वनि : उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ : शहनाई : राग – वृन्दाबनी सारंग, एक ताल

कुछ दिग्गज स्वर-शिल्पी, जिन्होने कबीर को गाया

    स्वरगोष्ठी – 148 में आज रागों में भक्तिरस – 16 ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘रागों में भक्तिरस’ की सोलहवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-रसिकों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम आपके लिए भारतीय संगीत के कुछ भक्तिरस प्रधान राग और कुछ प्रमुख भक्तिरस कवियों की रचनाएँ प्रस्तुत कर रहे हैं। साथ ही उस भक्ति रचना के फिल्म में किये गए प्रयोग भी आपको सुनवा रहे हैं। श्रृंखला की पिछली दो कड़ियों में हमने सोलहवीं शताब्दी की भक्त कवयित्री मीरा के दो पदों पर आपके साथ चर्चा की थी। आज की कड़ी में हम पन्द्रहवीं शताब्दी के सन्त कवि कबीर के व्यक्तित्व और उनके एक पद- ‘चदरिया झीनी रे बीनी...’ पर चर्चा करेंगे। कबीर के इस पद को भारतीय संगीत की हर शैली में गाया गया है। आज के अंक में पहले हम आपको यह पद राग चारुकेशी में निबद्ध, ध्रुवपद गायक गुण्डेचा बन्धुओं के स्वरों में सुनवाएँगे। इसके बाद यही पद सुविख्यात भजन गायक अनूप जलोटा राग देश में और अन्त में लोक स