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सुनने वालों को ‘हूकां’ मार पुकारता है ‘नौटकी साला’ का संगीत

प्लेबैक वाणी -41 - संगीत समीक्षा - नौटंकी साला सीमित संसाधनों का इस्तेमाल कर कम बजट की फिल्मों का चलन इन दिनों बॉलीवुड में जोरों पर है. इन फिल्मों में अक्सर अनोखी कहानियाँ के तजुर्बे होते हैं और अगर इन फिल्मों में संगीत जोरदार हो तो मज़ा कई गुना बढ़ जाता है. आज हम एक ऐसी ही फिल्म के संगीत की चर्चा करेंगे जिसमें सभी कलाकार अपेक्षाकृत नए या कम चर्चित हैं और जहाँ गीत संगीत का जिम्मा भी किसी एक बड़े संगीतकार गीतकार ने नहीं बल्कि नए और उभरते हुए कलाकारों की पूरी टीम ने मिलकर संभाला है. फिल्म है ‘नौटंकी साला’ जिसके संगीत की चर्चा आज हम करेंगें ताजा सुर ताल के इस साप्ताहिक स्तंभ में. बेहद प्रतिभाशाली फलक शबीर ने अपने ही लिखे और स्वरबद्ध गीत को अपनी आवाज़ दी है मेरा मन गीत में. हालाँकि ये उनका कोई नया गीत नहीं है, उनकी एक पुरानी प्रसिद्ध एल्बम का मशहूर गीत था ये, पर अधिकतर भारतीय श्रोताओं के ये काफी हद तक अनसुना ही है, यही कारण है कि ये गीत तेज़ी से इन दिनों लोकप्रिय हुआ जा रहा है. इस सरल मधुर रोमांटिक गीत में युवा धडकनों को धड़काने का पर्याप्त

एक गीत और सात रागों की इन्द्रधनुषी छटा

स्वरगोष्ठी – 115 में आज रागों के रंग रागमाला गीत के संग – 3 राग रामकली, तोड़ी, शुद्ध सारंग, भीमपलासी, यमन कल्याण, मालकौंस और भैरवी के इन्द्रधनुषी रंग दो सप्ताह के अन्तराल के बाद लघु श्रृंखला ‘रागों के रंग, रागमाला गीत के संग’ की तीसरी कड़ी लेकर मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों की इस गोष्ठी में उपस्थित हूँ। इस लघु श्रृंखला की तीसरी कड़ी में आज हम जो रागमाला गीत प्रस्तुत कर रहे हैं, उसे हमने 1981 में प्रदर्शित फिल्म ‘उमराव जान’ से लिया है। भारतीय फिल्मों में शामिल रागमाला गीतों में यह उच्चस्तर का गीत है, जिसमें क्रमशः राग रामकली, तोड़ी, शुद्ध सारंग, भीमपलासी, यमन कल्याण, मालकौंस और भैरवी का समिश्रण किया गया है। वास्तव में फिल्म का यह रागमाला गीत इन रागों की पारम्परिक बन्दिशों की स्थायी पंक्तियों का मोहक संकलन है। गीत में रागों का क्रम प्रहर के क्रमानुसार है।    भा रतीय संगीत की परम्परा में जब किसी एक गीत में कई रागों का क्रमशः प्रयोग हो और सभी राग अपने स्वतंत्र अस्तित्व में उपस्थित हों तो उस रचना को रागमाला कहते हैं। रागमाला की

वापस आ गया है फ़िल्मी पहेलियों का मौसम, आपकी अपनी 'सिने पहेली'

सिने-पहेली - 61   'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, महीने भर के विराम के बाद आज से 'सिने पहेली' का सफ़र दोबारा शुरू कर रहे हैं। इस प्रतियोगिता का 60% भाग पूरा हो चुका है, और बाकी 40% को अंजाम देने के लिए आज से यह सफ़र फिर एक बार शुरू हो रहा है अपनी मंज़िल तक पहुँचने के ख़ातिर। आशा है आप सभी प्रतियोगी उसी उत्साह के साथ फिर से इस प्रतियोगिता में जुट जायेंगे जैसा पहले किया करते थे। आज से इस प्रतियोगिता में जुड़ने वाले नये खिलाड़ियों का स्वागत करते हुए हम उन्हें यह भी बताना चाहेंगे कि अभी भी कुछ देर नहीं हुई है, आज से इस प्रतियोगिता में जुड़ कर भी आप महाविजेता बन सकते हैं, यही इस प्रतियोगिता की ख़ासियत है। इस प्रतियोगिता के नियमों का नीचे किया गया है, ध्यान दीजियेगा। कैसे बना जाए 'सिने पहेली' महाविजेता? 1. सिने पहेली प्रतियोगिता में होंगे कुल 100 एपिसोड्स। इन 100 एपिसोड्स को 10 सेगमेण्ट्स में बाँटा गया है। अर्थात्, हर सेगमेण्ट में होंगे 10 एपिसोड्स। इस प्रतियोगिता के 60 एपिसोड्स पूरे

राग बिहाग के सुरों में गुंथे फ़िल्मी गीत - संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग बिहाग  स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

भोला भट्ट - गिरिजाशंकर भगवानजी "गिजुभाई" बधेका

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको सुनवा रहे हैं हिन्दी की रोचक कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में सुधा ओम ढींगरा की कहानी " लड़की थी वह " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं गिरिजाशंकर भगवानजी "गिजुभाई" बधेका के गुजराती लोक-कथा संकलन से एक कहानी "भोला भट्ट" जिसका हिन्दी अनुवाद किया है काशीनाथ त्रिवेदी ने और स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस कहानी का कुल प्रसारण समय 6 मिनट 35 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इसमें नया क्या है? यह तो रात का अन्धेरा भरा है। ~ गिजुभाई बधेका (15 नवम्बर, 1885 - 23 जून, 1939) हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी छह दिनों तक उन्होंने कथा कहीं, सातवें दिन उनका गला बैठ गया। बहुत कोशिश की, पर गला खुला ही नहीं। ( गिजुभाई बधेका की कहानी "भोला भट्ट" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें: (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक

संगीत की सुरीली बयार – अमन की आशा

प्लेबैक वाणी -40 - संगीत समीक्षा - अमन की आशा दोस्तों, आज हम चर्चा करेंगें एक और एल्बम की,  ‘ अमन की आशा ’  के पहले भाग को श्रोताओं ने हाथों हाथ लिया तो इस सफलता ने टाईम्स म्यूजिक को प्रेरित किया कि इस अनूठे प्रयास को एक कदम और आगे बढ़ाया जाए. आज के इस दौर में जब फ़िल्मी संगीत में नयेपन का अभाव पूरी तरह हावी है,  अमन की आशा  सरीखा कोई एल्बम संगीत प्रेमियों की प्यास को कुछ हद तक तृप्त करने कितना कामियाब है आईये करें एक पड़ताल. एल्बम में इतने बड़े और नामी कलाकारों की पूरी फ़ौज मौजूद है कि पहले किसका जिक्र करें यही तय नहीं हो पाता, बहरहाल शुरुआत करते हैं आबिदा परवीन की रूहानी सदा से. गुलज़ार साहब फरमाते हैं कि ये वो आवाज़ है जो सीधे खुदा से बात करती है, वाकई उनके तूने दीवाना बनाया तो मैं दीवाना बना ...को सुनकर इस बात का यकीन हो ही जाता है. इस कव्वाली को जब आबिदा मौला की सदा से उठाती है तभी से श्रोताओं को अपने साथ लिए चलती है और होश वालों की दुनिया से दूर हम एक ऐसे नशीले से माहौल में पहुँच जाते हैं जहाँ ये आवाज़ हमें सीधे मुर्शिद से जोड़ देती है

अतिथि संगीतज्ञ का पृष्ठ : पण्डित श्रीकुमार मिश्र

स्वरगोष्ठी – 114 में आज अतिथि संगीतकार का पृष्ठ स्वर एक राग अनेक   ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के इस विशेष अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज का यह अंक एक विशेष अंक है। विशेष इसलिए कि यह अंक संगीत-जगत के एक जाने-माने संगीतज्ञ प्रस्तुत कर रहे हैं। दरअसल इस वर्ष के कार्यक्रमों की समय-सारिणी तैयार करते समय ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ ने माह के पाँचवें रविवार की ‘स्वरगोष्ठी’ किसी संगीतज्ञ लेखक से प्रस्तुत कराने का निश्चय किया था। आज माह का पाँचवाँ रविवार है और आपके लिए आज का यह अंक देश के जाने-माने इसराज व मयूर वीणा-वादक और संगीत-शिक्षक पण्डित श्रीकुमार मिश्र प्रस्तुत कर रहे है। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक के लिए उन्होने तीन ऐसे राग- पूरिया, सोहनी और मारवा का चयन किया है, जिनमें समान स्वरों का प्रयोग किया जाता है। लीजिए, श्रीकुमार जी प्रस्तुत कर रहे हैं, इन तीनों रागों में समानता और कुछ अन्तर की चर्चा, जिनसे इन रागों में और उनकी प्रवृत्ति में अन्तर आ जाता है।  ‘रे डियो प्लेबैक इण्ड