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'सिने पहेली' में आज गीत अपना धुन पराई

9 फ़रवरी, 2013 सिने-पहेली - 58  में आज   पहचानिये कुछ प्रेरित गीतों को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, पिछले दिनों मैं चण्डीगढ़ से नोएडा स्थानान्तरित हुआ हूँ और नया आलम ऐसा है कि दफ़्तर की व्यस्तता कुछ हद से ज़्यादा ही बढ़ गई है। जैसा कि शायद आज हर निजी कंपनी में होता होगा कि काम का दबाव बहुत ज़्यादा है, जो व्यक्तिगत जीवन पर असर डाल रही है। बच्चे के साथ खेलने का समय नहीं मिलता, पत्नी से दो बातें कहने बैठें तो फ़ोन की घण्टी बज उठती है और लैपटॉप ऑन करके दफ़्तर के काम में लग जाना पड़ता है। इस भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में जहाँ थकना मना है, शुकर है 'सिने पहेली' मेरे साथ है जिसे आयोजित करते हुए मेरी सारी थकान दूर हो जाती है। आइए शुरू करें आज की 'सिने पहेली'।: आज की पहेली :  अरे दीवानों, इन्हे पहचानो नीचे पाँच विदेशी गीतों के ऑडियो-विडियो दिये गये हैं। क्या आप बता सकते हैं कि इनकी धुनों से प्रेरित हिन्दी फ़िल्मी गीत कौन कौन से हैं? यानी आपको हर विदेशी गीत के लिए एक हिन्दी फ़िल्

राग चारुकेशी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट  राग चारुकेशी  स्वर एवं प्रस्तुति : संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र  

ओ हेनरी की इबादत (अ सर्विस ऑफ़ लव)

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में डा. अमर कुमार की लघुकथा " "अपनों ने लूटा" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्राख्यात अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी की अंग्रेज़ी कहानी "A service of love" का हिन्दी अनुवाद " इबादत ", अर्चना चावजी , अनुभव प्रिय और सलिल वर्मा  की आवाज़ में। हिन्दी अनुवाद अनुभव प्रिय का है और प्रस्तुति को संगीत से संवारा है पद्मसिंह ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 13 मिनट 42 सेकंड है। आप भी सुनें और अपने मित्रों और परिचितों को भी सुनाएँ  और हमें यह भी बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “जब बिना कालर का चोर पकड़ा जाता हैं, तो उसे सबसे दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है।” ~  ओ हेनरी हर सप्ताह यह

तीन कहानियाँ - तीन डेविड - कुछ भिन्न संगीत

प्लेबैक वाणी -32 -संगीत समीक्षा - डेविड   नए संगीत को परखने की हमारी इस कोशिश में आपका फिर एक बार से स्वागत है. आज जिस एल्बम की हम चर्चा कर रहे हैं वो है बिजॉय ‘शैतान’ नाम्बियार की नई फिल्म ‘डेविड’ के संगीत से सजी. एल्बम में ८ संगीतकारों और ११ गीतकारों ने अपना योगदान दिया है. चलिए देखें इन युवा संगीत कर्मियों ने किन किन रंगों से सजाया है ‘डेविड’ को. एल्बम खुलता है रौक बैंड ब्रह्मफुत्रा के एक शानदार ट्रेक के साथ. ‘गुम हुए’ न सिर्फ अपनी गायिका और धुन के लिए वरन अपने शब्दों के कारण भी खास है. ‘ढूंढेगे उन्हीं राहों को, सुकूँ भरी छांओं को.....वो रास्ते जहाँ खोये थे हम...’ यक़ीनन श्रोताओं को कहीं दूर अपनी यादों में ले जाते हैं. ये बैंड मार्क फुल्गडो और गौरव गोडखिंडी से मिलकर बनता है और इस गीत में अपनी आवाज़ भरी है सिद्धार्थ बसरूर ने. यक़ीनन सिद्धार्थ भी एक जबरदस्त टेलेंट हैं, जिनसे भविष्य में भी श्रोता उम्मीद लगा सकते हैं. ८० के दशक से श्रोताओं के दिलों पर छाया हुआ एक गीत है ‘दमा दम मस्त कलंदर’ जिसे जाने कितने गायकों ने अपने अपने अंदाज़ में श्रो

'सिने पहेली' में आज ताज महल का ज़िक्र

2 फ़रवरी, 2013 सिने-पहेली - 57  में आज   याद कीजिये 'ताजमहल' वाले गीतों को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, दुनिया के सात अजूबों में एक अजूबा है 'ताज महल'। ताज महल को प्रेम का स्मारक (Monument of Love) भी कहा गया है। इससे बेहतरीन प्यार की निशानी और कोई हो ही नहीं सकती। सन्‍ -1631 में जब मुग़ल बादशाह शाहजहाँ की तीसरी पत्नी मुमताज़ महल की 14-वीं सन्तान (गौहरा बेगम) के जन्म के समय मृत्यु हो गई, तब शाहजहाँ शोक में डूब गए थे। मुमताज़ के प्रति उनके दिल में इतना प्यार था कि इसके अगली ही साल, 1632 में उन्होंने मुमताज़ की याद में 'ताज महल' के निर्माण का कार्य शुरू कर दिया। इसका निर्माण 1648 में जा कर सम्पन्न हुआ, और इसके आस-पास की इमारतों और बगीचों के निर्माण में और 5 साल लग गए। शाहजहाँ ने ताज महल की कुछ इन शब्दों में व्याख्या की थी : "Should guilty seek asylum here, Like one pardoned, he becomes free from sin. Should a sinner make his way to this mansion, All his past sin

गायक मुकेश फिल्म ‘अनुराग’ में बने संगीतकार

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 34 स्मृतियों का झरोखा : ‘किसे याद रखूँ किसे भूल जाऊँ...’   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों का झरोखा’ में आप सभी सिनेमा-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का पाँचवाँ गुरुवार है और नए वर्ष की नई समय सारिणी के अनुसार माह का पाँचवाँ गुरुवार हमने आमंत्रित अतिथि लेखकों के लिए सुरक्षित कर रखा है। आज ‘स्मृतियों का झरोखा’ का यह अंक आपके लिए पार्श्वगायक मुकेश के परम भक्त और हमारे नियमित पाठक पंकज मुकेश लिखा है। पंकज जी ने गायक मुकेश के व्यक्तित्व और कृतित्व पर गहन शोध किया है। अपने शुरुआती दौर में मुकेश ने फिल्मों में पार्श्वगायन से अधिक प्रयत्न अभिनेता बनने के लिए किये थे, इस तथ्य से अधिकतर सिनेमा-प्रेमी परिचित हैं। परन्तु इस तथ्य से शायद आप परिचित न हों कि मुकेश, 1956 में प्रदर्शित फिल्म ‘अनुराग’ के निर्माता, अभिनेता और गायक ही नहीं संगीतकार भी थे। आज के ‘स्मृतियों का झरोखा’ में पंकज जी ने मुकेश के कृतित्व के इन्हीं पक्षों, विशेष रूप से उनकी संगीतकार-प्र

बोलती कहानियाँ: अपनों ने लूटा - डा. अमर कुमार

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम हर सप्ताह आपको प्रसिद्ध कहानियाँ सुनवाते रहे हैं। पिछले सप्ताह आपने पंडित बदरीनाथ भट्ट "सुदर्शन" की कहानी " परिवर्तन " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं डा. अमर कुमार की लघुकथा " अपनों ने लूटा ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। लघु कहानी "अपनों ने लूटा" का गद्य (टेक्स्ट) डा० अमर के पन्नों पर पढ़ा जा सकता है। कहानी "अपनों ने लूटा" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 55 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जन्म मिथिला में, बचपन वैशाली में, प्रारंभिक शिक्षा कोसी क्षेत्र से, माध्यमिक शिक्षा एवँ जीवन से मुठभेड़ का प्रारंभ बैसवारा (रायबरेली) से, चिकित्सा स्नातक कानपुर मेडिकल कॉलेज