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'सिने पहेली' में आज सुलझाइये कुछ गीतों भरी पहेलियाँ

19 जनवरी, 2013 सिने-पहेली - 55  में आज   सुलझाइये कुछ गीतों भरी पहेलियाँ 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार। दोस्तों, 'सिने पहेली' के छठे सेगमेण्ट के बीचोंबीच आज हम आ पहुँचे हैं, आज है इसकी 55-वीं कड़ी। इस लम्बे सफ़र को तय करते हुए बहुत से प्रतियोगी हमसे जुड़े, जिनमें से कुछ अब भी लगातार हमारे साथ जुड़े हुए हैं, कुछ ने साथ छोड़ दिया है और नए खिलाड़ी लगातार जुड़ते चले जा रहे हैं। 100 कड़ियों के बाद इस महासंग्राम का महाविजेता घोषित किया जाएगा, इसलिए सभी प्रतियोगियों से निवेदन है कि इस प्रतियोगिता में नियमित भाग लेते रहें, और नए खिलाड़ियों के लिए भी अब भी पूरा-पूरा मौका है महाविजेता बनने का, इसलिए डटे रहिए, और सुलझाते रहिये ये पहेलियाँ। 'सिने पहेली' की 53-वीं कड़ी में एक सवाल पूछा गया था कि आशा भोसले और पंचम का गाया अन्तिम युगल गीत कौन सा है। इसके जवाब में आप सभी ने 1983 की फ़िल्म 'महान' के गीत का उल्लेख किया है, जबकि हमारे हिसाब से 1993 में जारी फ़िल्म 'गुरुदेव' का गीत "आ

एक गीत सौ कहानियाँ - तुम तो ठहरे परदेसी

    भारतीय सिनेमा के सौ साल – 32 एक गीत सौ कहानियाँ – 21 ‘तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे... ’ दोस्तों, सिने-संगीत के इतिहास में अनेक फिल्मी और गैर-फिल्मी गीत रचे गए, जिन्हें आगे चल कर ‘मील के स्तम्भ’ का दर्जा दिया गया। आपके प्रिय स्तम्भकार सुजॉय चटर्जी ने 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' पर गत वर्ष 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक स्तम्भ आरम्भ किया था, जिसके अन्तर्गत हर अंक में वे किसी फिल्मी या गैर-फिल्मी गीत की विशेषताओं और लोकप्रियता पर चर्चा करते थे। यह स्तम्भ 20 अंकों के बाद मई 2012 में स्थगित कर दिया गया था। आज से इस स्तम्भ को पुनः शुरू किया जा रहा है। आज से 'एक गीत सौ कहानियाँ' नामक यह स्तम्भ हर महीने के तीसरे गुरुवार को प्रकाशित हुआ करेगा। आज 21वीं कड़ी में सुजॉय चटर्जी प्रस्तुत कर रहे हैं, अलताफ़ राजा के गाये मशहूर ग़ैर-फ़िल्मी गीत "तुम तो ठहरे परदेसी साथ क्या निभाओगे…" की चर्चा।  ग़ै र-फ़िल्मी गीतों, जिन्हें हम ऐल्बम सॉंग्स भी कहते हैं, को सर्वाधिक लोकप्रियता 80 के दशक में प्राप्त हुई थी। ग़ज़ल और पाश्चात्य संगी

राग मालकौंस - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

बोलती कहानियाँ - ठिठुरता हुआ गणतन्त्र

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में मंटो की रचना " खोल दो " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " ठिठुरता हुआ गणतंत्र " जिसे स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। इस व्यंग्य का पाठ (टेक्स्ट) हिंदिनी पर पढ़ा जा सकता है। "ठिठुरता हुआ गणतन्त्र" का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 29 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। "इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं, पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं।"  ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर सप्ताह "बोलती कहानियाँ" पर सुनें एक नयी कहानी "समाजवाद परेशान है। उधर जनता भी परेशान है। समाजवाद आने को तैयार खड

विशाल और गुलज़ार की जोड़ी है पूरे धूम में

प्लेबैक वाणी -29 -संगीत समीक्षा -  मटरू की बिजली का मंडोला  कहने की जरुरत नहीं कि जब भी गुलज़ार और विशाल एक साथ आते हैं, संगीत प्रेमियों की तो लॉटरी सी लग जाती है. इस बार ये साथ आये हैं “ मटरू की बिजली का मंडोला ’ लेकर. अब जब नाम ही इतना अनूठा हो तो संगीत से उम्मीद क्यों न हों, तो चलिए देखते हैं ‘ माचिस ’ से ‘ सात खून माफ ’ तक लगातार उत्कृष्ट संगीत देने वाली इस जोड़ी की पोटली में अब नया क्या है... एल्बम खुलता है शीर्षक गीत से, जिसके साथ एक लंबे समय बाद गायक सुखविंदर की वापसी हुई है. संगीत संयोजक रंजीत बारोट ने भी उनका साथ दिया है, पर ये गीत पूरी तरह सुखविंदर का ही है. रिदम जबरदस्त है और धुन इतनी सरल है कि सुनते ही जेहन में बस जाता है. गुलज़ार ऐसे गीतों में भी अपने शब्दों को खास अंदाज़ से पेश करने में माहिर हैं. गीत ‘ मास ’ और ‘ क्लास ’ दोनों को प्रभावित करने में सक्षम है. अगला गीत ‘ खामखाँ ’ यूँ तो एक प्रेम गीत है. जिसकी धुन बेहद मधुर है. संगीत संयोजन सरल और सुरीला है और विशाल की आवाज़ गीत पर पूरी तरह से दुरुस्त भी. कोई और संगीतकार होते तो शायद इस गीत

स्वरगोष्ठी : दिन के दूसरे प्रहर के चटकीले राग

स्वरगोष्ठी – 104 में आज राग और प्रहर – 2 ‘कान्हा रे मुरली काहे ना तू बजाये...’ स्वरगोष्ठी के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः सभी संगीत-प्रेमियों की इस बैठक में उपस्थित हूँ। पिछले अंक से हमने ‘राग और प्रहर’ शीर्षक से एक नई लघु श्रृंखला शुरू की है, जिसकी दूसरी कड़ी में आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं, दिन के दूसरे प्रहर के कुछ राग। दूसरे प्रहर में गाये-बजाये जाने वाले इन रागों को आम तौर पर प्रातः 9 बजे से मध्याह्न 12 बजे के बीच प्रयोग किया जाता है। आज के इस अंक में हम आपके लिए प्रस्तुत करेंगे, दूसरे प्रहर के रागों में से क्रमशः गान्धारी, विलासखानी तोड़ी, गुर्जरी तोड़ी और अल्हैया बिलावल। श्रृं खला की पिछली कड़ी में हमने आपसे यह चर्चा की थी कि संगीत के विविध रागों को समय-चक्रों और ऋतु-चक्रों में बाँटा गया है। दिन और रात के चौबीस घण्टे विभिन्न आठ प्रहरों में विभाजित किये गए हैं और रागों को भी इन्हीं आठ प्रहरों में परम्परागत रूप से विभाजित कर गाया-बजाया जाता है। राग और प्रहर के अन्तर्सम्बन्धों के विषय में हमने कुछ संगीत-साधकों से जब चर्चा की तो एक

जारी है 'सिने पहेली' का जंग, आप अब भी बन सकते हैं इसके जंगबाज़...

12 जनवरी, 2013 सिने-पहेली - 54  में आज   पहचानिये 16 गीतों में छुपे गीत को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, पिछले दिनों 'सिने पहेली' के एक प्रतियोगी ने मुझसे कहा कि 'सिने पहेली' के सवालों से उन्हें तनाव महसूस होता है और सारे काम-काज छोड़ कर वो सप्ताह भर इसके जवाब तलाशते रहते हैं। 'सिने पहेली' की तरफ़ से मैं आपको और अन्य सभी प्रतियोगियों से यह कहना चाहता हूँ कि 'सिने पहेली' का उद्येश्य आपको तनाव में डालना कतई नहीं है, बल्कि इसमें भाग लेकर आप दूसरे तनावों से कुछ समय के लिए मुक्ति पा सकते हैं, ऐसा हमारा विचार है। हमने पहले भी कहा था, आज भी कहते हैं कि आप 'सिने पहली' के जवाब ढूंढने में ज़्यादा समय न गँवायें। इस खेल को खेल भावना से ही खेलें और ज़्यादा गंभीरता से न लें। 'सिने पहेली' की वजह से आपकी दिनचर्या में रूकावट उत्पन्न हो, यह उचित बात नहीं है। दिन में मनोरंजन के लिए आप जितना स्माय निकालते हैं, उतने समय में भी आप जितने सवालों के हल निकाल सकें, बस उतने के ही