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जारी है 'सिने पहेली' का जंग, आप अब भी बन सकते हैं इसके जंगबाज़...

12 जनवरी, 2013 सिने-पहेली - 54  में आज   पहचानिये 16 गीतों में छुपे गीत को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। दोस्तों, पिछले दिनों 'सिने पहेली' के एक प्रतियोगी ने मुझसे कहा कि 'सिने पहेली' के सवालों से उन्हें तनाव महसूस होता है और सारे काम-काज छोड़ कर वो सप्ताह भर इसके जवाब तलाशते रहते हैं। 'सिने पहेली' की तरफ़ से मैं आपको और अन्य सभी प्रतियोगियों से यह कहना चाहता हूँ कि 'सिने पहेली' का उद्येश्य आपको तनाव में डालना कतई नहीं है, बल्कि इसमें भाग लेकर आप दूसरे तनावों से कुछ समय के लिए मुक्ति पा सकते हैं, ऐसा हमारा विचार है। हमने पहले भी कहा था, आज भी कहते हैं कि आप 'सिने पहली' के जवाब ढूंढने में ज़्यादा समय न गँवायें। इस खेल को खेल भावना से ही खेलें और ज़्यादा गंभीरता से न लें। 'सिने पहेली' की वजह से आपकी दिनचर्या में रूकावट उत्पन्न हो, यह उचित बात नहीं है। दिन में मनोरंजन के लिए आप जितना स्माय निकालते हैं, उतने समय में भी आप जितने सवालों के हल निकाल सकें, बस उतने के ही

मासिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का संगीत विशेषांक है बेहद खास

मासिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का दिसम्बर, 2012 अंक : एक टिप्पणी मा सिक पत्रिका ‘आहा! ज़िंदगी’ का दिसम्बर, 2012 अंक पढ़ा, संगीतमय हो गया। वास्तव में भास्कर को आलोकजी और प्रकाशमान कर रहे हैं। ‘एक धुन ज़िंदगी की’ एवं ‘जीवन संगीत सुनें’ शीर्षक मोहक बन पड़े हैं। इस अंक ने मुझे दो-तीन लेखों की ओर आकर्षित किया। ‘धरा-मेरु सब डोलिहैं, तानसेन की तान’ और ‘बहती रही है सुर सरिता’ – दोनों लेख के लेखक बधाई के पात्र हैं। पढ़ने पर लगा कि उन्हें तथ्य जुटाने में कितना अध्ययन और परिश्रम करना पड़ा होगा। भाई विनोद पाठक के लेख द्वारा मालूम हुआ कि प्रचलित (कुछ परिवर्तन के उपरान्त) गणेश वन्दना के मूल रचयिता संगीत सम्राट तानसेन थे। परन्तु यह पढ़कर आश्चर्य हुआ कि राग मेघ मल्हार एक धोबन ने गाया था। कुछ पुस्तकों में मैंने यह पढ़ा है कि तानी नामक महिला ने यह राग गाया था। ये तथ्य किंवदंतियों पर आधारित है, अतः इनमे धारणाएँ भिन्न हो सकती हैं। तानसेन के बारे में इस लेख के माध्यम से मेरी जानकारी में वृद्धि हुई है। भाई कृष्णमोहन मिश्र के लेख ‘बहती रही है सुर सरिता’ में संगीत की यात्रा को ए

उत्पत्ति से स्वराज के विहान तक - भारतीय सिने संगीत का सफर

पुस्तक परिचय  कारवाँ सिने-संगीत का : एक परिचय भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के स्तम्भ कार सुजॉय चटर्जी ने अपने आठ वर्षों के प्रयास से स्वतंत्रता-पूर्व अवधि (1931 से 1947 तक) की फ़िल्म - संगीत की यात्रा को एक पुस्तक के  रूप में प्रकाशित किया है। प्रस्तुत है इसी पुस्तक की भूमिका।   फ़ि ल्म-संगीत का सुनहरा दौर 40 के दशक के आख़िर भाग से लेकर 70 के दशक के अन्तिम भाग तक को माना जाता है। और आज आम जनता से उनके मनपसन्द गीतों के बारे में अगर पूछा जाये तो वो भी इन्हीं दशकों के गीतों की तरफ़ ही ज़्यादातर इशारा करते हुए पाए जाते हैं। लेकिन इस सुनहरे दौर से पहले भी तो एक दौर था जिसे आज हम लगभग भुला चुके हैं। नई पीढ़ी के पास उस दौर के फ़िल्मों, गीतों और कलाकारों के बारे में बहुत कम ही जानकारी उपलब्ध हैं। अफ़सोस की बात है कि जिन लोगों ने फ़िल्म-संगीत की नीव रखी, जिनकी उँगलियाँ थामे फ़िल्म-संगीत ने चलना सीखा और अपनी अलग पहचान बनाई, उन्हें हम आज भूलते जा रहे हैं, जब कि सच्चाई यह है कि हमें अपनी जड़ों, अपने पूर्वजों के कार्यों, अप

राग पहाड़ी -एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ : राग पहाड़ी स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्रा 

मंटो की कहानी "खोल दो"

जहाँ तक मंटो को भारत और पाकिस्तान में मिलने वाले सम्मान का सवाल है तो पाकिस्तान का समाज तो ख़ैर एक बंद समाज था और वहाँ उनकी कहानियों पर प्रतिबंध लगा और उन पर मुक़दमे चले। लेकिन मैं समझता हूँ कि भारत में प्रेमचंद के बाद यदि किसी लेखक पर काम हुआ है तो वह मंटो है। हिंदी में भी, उर्दू में भी। ~ कमलेश्वर (प्रसिद्ध लेखक और उपन्यासकार) 'बोलती कहानियाँ'' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में इब्ने इंशा की कहानी 'कछुआ और खरगोश' का पॉडकास्ट सुना था। आज हम लेकर आये हैं सआदत हसन "मंटो" की खोल दो , जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 10 मिनट 34 सेकंड। इस कहानी का टेक्स्ट हिन्दी समय पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें।

लिएंडर पेस की राजधानी एक्सप्रेस का संगीत

प्लेबैक वाणी -28 -संगीत समीक्षा - राजधानी एक्सप्रेस दोस्तों नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ आप सभी को. वर्ष २०१२ की ही तरह २०१३ भी हम सब के लिए कुछ नया अनुसुना संगीत अनुभव लेकर आये इसी उम्मीद के साथ हम साल की पहली समीक्षा की तरफ बढते हैं. यूँ तो साल के पहले सप्ताह में ही बहुत सी दिलचस्प फ़िल्में प्रदर्शन को तैयार है पर हमें लगा कि इस पहले सप्ताह में हमें ‘राजधानी एक्सप्रेस’ की बातें करनी चाहिए, वजह है इस एल्बम के गायकों में उदित नारायण, शान और सुरेश वाडकर की आवाजों का होना और उससे भी बढ़कर गीतकारों की फेहरिस्त में मिर्ज़ा ग़ालिब की मौजूदगी, आज के दौर में अगर किसी फिल्म में ग़ालिब की ग़ज़ल हो तो उस एल्बम का जिक्र वाजिब बनता है. राजधानी एक्सप्रेस के प्रमुख संगीतकार हैं रितेश नलिनी मगर ग़ालिब की गज़ल के पाश्चात्य संस्करण के लिए आमंत्रित हुए है संगीतकार लाहु माधव भी. तो चलिए जानें इस एल्बम में क्या कुछ है श्रोताओं के लिए.   ‘कोई उम्मीद बर् नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती...’ ग़ालिब साहब की इस मशहूर ग़ज़ल को एल्बम में दो संस्करण मिले हैं, एक पाश्चात्य और एक पारंपरिक. पहले

नये वर्ष में नई लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ की शुरुआत

स्वरगोष्ठी – 103 में आज राग और प्रहर – 1 'जागो मोहन प्यारे...' राग भैरव से आरम्भ दिन का पहला प्रहर   ‘स्वरगोष्ठी’ के नये वर्ष के पहले अंक में कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आज से हम आरम्भ कर रहे हैं, एक नई लघु श्रृंखला- ‘राग और प्रहर’। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषतः उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। इस श्रृंखला में हम आपसे राग और समय के अन्तर्सम्बन्धों पर आपसे चर्चा करेंगे। सूर्योदय : छायाकार -नारायण द्रविड़ का ल-गणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर, दिन के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर, रात्रि के प्रहर कहलाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग रागों का पर