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लिएंडर पेस की राजधानी एक्सप्रेस का संगीत

प्लेबैक वाणी -28 -संगीत समीक्षा - राजधानी एक्सप्रेस दोस्तों नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ आप सभी को. वर्ष २०१२ की ही तरह २०१३ भी हम सब के लिए कुछ नया अनुसुना संगीत अनुभव लेकर आये इसी उम्मीद के साथ हम साल की पहली समीक्षा की तरफ बढते हैं. यूँ तो साल के पहले सप्ताह में ही बहुत सी दिलचस्प फ़िल्में प्रदर्शन को तैयार है पर हमें लगा कि इस पहले सप्ताह में हमें ‘राजधानी एक्सप्रेस’ की बातें करनी चाहिए, वजह है इस एल्बम के गायकों में उदित नारायण, शान और सुरेश वाडकर की आवाजों का होना और उससे भी बढ़कर गीतकारों की फेहरिस्त में मिर्ज़ा ग़ालिब की मौजूदगी, आज के दौर में अगर किसी फिल्म में ग़ालिब की ग़ज़ल हो तो उस एल्बम का जिक्र वाजिब बनता है. राजधानी एक्सप्रेस के प्रमुख संगीतकार हैं रितेश नलिनी मगर ग़ालिब की गज़ल के पाश्चात्य संस्करण के लिए आमंत्रित हुए है संगीतकार लाहु माधव भी. तो चलिए जानें इस एल्बम में क्या कुछ है श्रोताओं के लिए.   ‘कोई उम्मीद बर् नहीं आती, कोई सूरत नज़र नहीं आती...’ ग़ालिब साहब की इस मशहूर ग़ज़ल को एल्बम में दो संस्करण मिले हैं, एक पाश्चात्य और एक पारंपरिक. पहले

नये वर्ष में नई लघु श्रृंखला ‘राग और प्रहर’ की शुरुआत

स्वरगोष्ठी – 103 में आज राग और प्रहर – 1 'जागो मोहन प्यारे...' राग भैरव से आरम्भ दिन का पहला प्रहर   ‘स्वरगोष्ठी’ के नये वर्ष के पहले अंक में कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमी पाठकों और श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। आज से हम आरम्भ कर रहे हैं, एक नई लघु श्रृंखला- ‘राग और प्रहर’। भारतीय शास्त्रीय संगीत, विशेषतः उत्तर भारतीय संगीत के प्रचलित राग परम्परागत रूप से ऋतु प्रधान हैं या प्रहर प्रधान। अर्थात संगीत के प्रायः सभी राग या तो अवसर विशेष या फिर समय विशेष पर ही प्रस्तुत किये जाने की परम्परा है। इस श्रृंखला में हम आपसे राग और समय के अन्तर्सम्बन्धों पर आपसे चर्चा करेंगे। सूर्योदय : छायाकार -नारायण द्रविड़ का ल-गणना के सिद्धान्तों का प्रतिपादन करने वाले प्राचीन मनीषियों ने दिन और रात के चौबीस घण्टों को आठ प्रहर में बाँटा है। सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक के चार प्रहर, दिन के और सूर्यास्त से लेकर अगले सूर्योदय से पहले के चार प्रहर, रात्रि के प्रहर कहलाते हैं। उत्तर भारतीय संगीत के साधक कई शताब्दियों से विविध प्रहर में अलग-अलग रागों का पर

पंचम के रंग में रंगी है आज की 'सिने पहेली'

5 जनवरी, 2013 सिने-पहेली - 53  में आज   पहचानिये पंचम  के कुछ गीतों को 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार, और आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ। दोस्तों, इन दिनों समूचे उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ रही है। कई जगहों पर न्यूनतम तापमान 2 डिग्री तक पहुँच गया है। इस मौसम में छुट्टी का दिन हो, हाथ में गरम चाय का प्याला हो, सामने प्लेट पर गरमागरम पकौड़े हों, और सामने कम्प्यूटर स्क्रीन पर ताज़ी 'सिने पहेली' का पेज खुला हो तो भई क्या बात है, नहीं? ख़ैर,  छठे सेगमेण्ट की पहली कड़ी में प्रतियोगियों की भागीदारी में जो कमी आई थी, पिछली कड़ी में उसमें कुछ बढ़ौत्री हुई है, और हम यह आशा करते हैं कि आने वाले सप्ताहों में यह फिर से अपनी पूराने शक्ल में आ जायेगी। बढ़ते हैं आज की पहेली की ओर।. दोस्तों, कल यानी 4 जनवरी को संगीतकार राहुल देव बर्मन के याद का दिन था। राहुल देव बर्मन, या पंचम, का नाम क्रान्तिकारी संगीतकार के रूप में लिया जाता है। पाँच चिन्हित क्रान्तिकारी संगीतकारों के बाकी चार नाम हैं मास्टर गुलाम

राग भीमपलासी - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

स्वर एवं प्रस्तुति - संज्ञा टंडन  स्क्रिप्ट - कृष्णमोहन मिश्र 

मैंने देखी पहली फिल्म प्रतियोगिता का परिणाम

भारतीय सिनेमा के सौ साल – 30 मैंने देखी पहली फ़िल्म : कृष्णमोहन मिश्र बैंड वाले मेरे पसन्द के गीत की धुन नहीं बजाते थे भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का मैं सजीव सारथी नए वर्ष 2013 में हार्दिक स्वागत करता हूँ। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया था। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के इस समापन अंक में हम ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ संचालक मण्डल के सदस्य कृष्णमोहन मिश्र का गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। कृष्णमोहन जी ने 1955 में मोतीलाल और निगार सुल्ताना अभिनीत फिल्म ‘मस्ताना’ देखी थी। इस फिल्म के गीतकार राजेन्द्र कृष्ण और संगीतकार मदनमोहन थे। इस संस्मरण के साथ-साथ हम आपके प्रतियोगी संस्मरणों के परिणामों की घोषणा भी करेंगे। उ म्र के पहले दशक की कि

संगीत 2012 - कैसा था संगीत के लिहाज से बीता वर्ष -एक अवलोकन

वर्ष २०१२ में श्रोताओं ने क्या क्या सुना, किसे पसंद किया और किसे सिरे से नकार दिया, किन गीतों ने हमारी धडकनों को धड़कने के सबब दिया, किन शब्दों ने हमारे ह्रदय को झकझोरा, और किन किन फनकारों की सदाएं हमारी रूह में उतर कर अपनी जगह बनने में कामियाब रहीं, आईये इस पोडकास्ट में सुनें पूरे वर्ष के संगीत का एक मुक्कमल लेखा जोखा. साथ ही किन संगीत योद्धाओं को हमारे श्रोताओं ने दिया वर्ष-सर्वश्रेष्ठ का खिताब, ये भी जाने. कुछ कदम थिरकाने वाले गीतों के संग आईये अलविदा कहें वर्ष २०१२ को और स्वागत करें २०१३ का. नववर्ष आप सबके लिए मंगलमय हो. इसी कामना के साथ प्रस्तुत है रेडियो प्लेबैक का ये पोडकास्ट. 

संगीतकार नौशाद के 94वें जन्मदिवस पर विशेष -2

स्वरगोष्ठी-102 में आज   संगीतकार नौशाद के 94 वें जन्मदिवस पर विशेष -2     खमाज, केदार, सोहनी, वृन्दावनी सारंग और भैरवी में पगे नौशाद के गीत    क्षिति, पी.के. और प्रकाश संगीत-पहेली के महाविजेता बने ‘स्वरगोष्ठी’ के 102वें अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सब संगीत-प्रेमियों के बीच उपस्थित हूँ। आपको स्मरण ही होगा कि गत रविवार को हमने फिल्म जगत के यशस्वी संगीतकार नौशाद अली के 94वें जन्मदिवस के उपलक्ष्य में उनके व्यक्तित्व और कृतित्व से जुड़े कुछ प्रसंगों का स्मरण किया था। पिछले अंक में हमने नौशाद के संगीतबद्ध, 1946 से लेकर 1955 के बीच कुछ राग-आधारित गीतों का चयन किया था। आज हम उससे अगले दशक अर्थात 1956 से लेकर 1967 के बीच के कुछ राग-आधारित गीत आपको सुनवाएँगे। ये गीत खमाज, केदार, सोहनी, वृन्दावनी सारंग और भैरवी रागों पर आधारित हैं जिनका रसास्वादन आप करेंगे।    इसके साथ ही आज के इस अंक में हम ‘स्वरगोष्ठी’ के वार्षिक महाविजेता और उप-विजेताओ की घोषणा भी कर रहे हैं। आ रम्भ से ही नौशाद ने अपने संगीत को उत्तर प्रदेश के लोक संगीत और राग आधा