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स्वरगोष्ठी में आज : ठुमरी- ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की पहली वर्षगाँठ पर सभी पाठकों-श्रोताओं का हार्दिक अभिनन्दन     स्वरगोष्ठी-९८  में आज   फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी –९  श्रृंगार रस से परिपूर्ण ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ फिल्मों में शामिल की गई पारम्परिक ठुमरियों पर केन्द्रित ‘स्वरगोष्ठी’ की लघु श्रृंखला ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ के एक नए अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों, आज का यह अंक जारी श्रृंखला की ९वीं कड़ी है और आज की इस कड़ी में हम आपको पहले राग पीलू की ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन, काजर बिन कारे... ’ का पारम्परिक स्वरूप, और फिर इसी ठुमरी का फिल्मी स्वरूप प्रस्तुत करेंगे। इसके अलावा इस अंक में एकल तथा युगल ठुमरी गायन की परम्परा के बारे में आपके साथ चर्चा करेंगे।  आ ज पीलू की यह ठुमरी ‘गोरी तोरे नैन काजर बिन कारे...’ हम आपको सबसे पहले गायिका इकबाल बानो की आवाज़ में सुनवाते हैं। इकबाल बनो का जन्म १९३५ में दिल्ली के एक सामान्य परिवार में हुआ था। बचपन में ही उनकी प्रतिभा क

'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' की पहली वर्षगाँठ पर सुलझाइये कुछ नई आवाज़ों की 'सिने पहेली'

1 दिसम्बर, 2012 सिने-पहेली - 48  में आज पहचानिए कुछ नये स्वरों को     'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को सुजॉय चटर्जी का सप्रेम नमस्कार। आज का दिन 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' से जुड़े सभी प्रस्तुतकर्ताओं, पाठकों और श्रोताओं के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण दिन है क्योंकि पिछले साल आज ही के दिन इसकी नीव रखी गई थी। देखते ही देखते हमने तय कर लिए 365 दिन का सफ़र। गत एक साल में (इस पोस्ट के बनने तक) इस ब्लॉग पर कुल 2283 प्रस्तुतियाँ (पोस्ट) हुई हैं, और देश-विदेश मिलाकर कुल 82215 बार इस ब्लॉग पर लोगों की हाज़िरी लगी है। अर्थात 6.25 प्रस्तुति प्रतिदिन और 225.24 ब्लॉग-विज़िट प्रतिदिन, जिसे आप हमारी उपलब्धि भी कह सकते हैं। और यह सम्भव हुआ आप सबके प्यार से। 'रेडियो प्लेबैक इण्डिया' के सभी पाठकों और श्रोताओं को धन्यवाद देते हुए आइए, आज की 'सिने पहेली' को आगे बढ़ाया जाए। दो स्तों, आज से कुछ साल पहले तक फ़िल्म इंडस्ट्री में हर दौर की कुछ गिने-चुने पार्श्वगायक-गायिकाओं की आवाज़ें ही राज किया करती थीं। इन आवाज़ों को सुन कर

कवयित्री सीमा गुप्ता ने देखी फिल्म 'साहब बीवी और गुलाम'

स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल -25 मैंने देखी पहली फिल्म   भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। गत जून मास के दूसरे गुरुवार से हमने आपके संस्मरणों पर आधारित प्रतियोगिता ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ का आयोजन किया है। इस स्तम्भ में हमने आपके प्रतियोगी संस्मरण और रेडियो प्लेबैक इण्डिया के संचालक मण्डल के सदस्यों के गैर-प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये हैं। आज के अंक में हम कवयित्री सीमा गुप्ता का प्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत कर रहे हैं। सीमा जी ने अपने बचपन में देखी, भारतीय सिनेमा के इतिहास में स्वर्णाक्षरों से अंकित फिल्म ‘साहब बीवी और गुलाम’ की चर्चा की है। फिल्म देख कर औरत का दर्द महसूस हुआ जिसे मीनाकुमारी जी ने परदे पर साकार किया ‘मैं ने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता के कारण आज बरसों के बाद बचपन के झरोखों में फिर से जाकर पुरानी धुँधली हो चुकी तस्वीरों से रूबरू होने का मौका मिला है। बचपन कब बीत गया, कब सब पीछे रह गया, प

राग जौनपुरी और बातें बीन की - एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट 21  नमस्कार दोस्तों, आज के इस साप्ताहिक ब्रोडकास्ट में हम आपके लिए लाये हैं राग जौनपुरी की चर्चा और बातें बीन की. प्रस्तुति है आपकी प्रिय होस्ट संज्ञा टंडन की, स्क्रिप्ट है कृष्णमोहन मिश्र की.

ओ हेनरी की अनोखी कलाकृति

'बोलती कहानियाँ' स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में लोकप्रिय लेखिका रश्मि रविजा की कहानी " "कशमकश" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्राख्यात अमेरिकी कथाकार ओ हेनरी की अंग्रेज़ी कहानी "द लास्ट लीफ" का हिन्दी अनुवाद " अनोखी कलाकृति ", अर्चना चावजी की आवाज़ में। कहानी का कुल प्रसारण समय १० मिनट २४ सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। “जब बिना कालर का चोर पकड़ा जाता हैं, तो उसे सबसे दुराचारी और दुष्ट कहा जाता है।” ~  ओ हेनरी हर सप्ताह यहीं पर सुनें एक नयी कहानी "मिस्टर 'निमोनिया' स्त्रियों के साथ भी कोई रियायत नहीं करते थे।"  ( ओ हेनरी की "अनोखी कलाकृति" से एक अंश )

तेज तड़कों के बावजूद रूहदारी नहीं है खिलाडी ७८६ के गीतों में

प्लेबैक वाणी -26 -संगीत समीक्षा -   खिलाड़ी 786 साल खत्म होने को है ओर सभी प्रमुख सितारे इस साल को एक यादगार मोड पर छोड़कर आगे बढ़ने के उद्देश्य से इन त्योहारों के मौसम में अपनी सबसे खास फिल्म को लेकर मैदान में उतरते हैं. शाहरुख, अजय देवगन, ओर आमिर के बाद अक्षय कुमार की बहुप्रतीक्षित खिलाडी ७८६ भी प्रदर्शन को तैयार है. १९९२ में प्रदर्शित अब्बास मस्तान की ‘खिलाडी’ अक्षय कुमार के लिए वरदान साबित हुई थी. जिसके पश्चात अक्षय खिलाडी श्रृंखला में ढेरों फ़िल्में कर चुके हैं, इनमें से अधिकतर कामियाब रहीं है. खिलाडी ७८६ के संगीतकार हैं हिमेश रेशमिया. गीतकार हैं शब्बीर अहमद, समीर ओर खुद हिमेश. आईये जांचें कैसा संगीत हैं फिल्म खिलाडी ७८६ का संगीत. यो यो हनी सिंह के रैप से शुरू होता है पहला गीत ‘लोनली’, जिसके बाद हिमेश मायिक सँभालते हैं ओर उनका साथ देती है हम्सिका अय्यर. गीत में हनी सिंह का रैप हिस्सा ही प्रभावित करता है, वैसे हिमेश ने गीत को सँभालने के लिए अपने पुराने हिट गीत की एक पंक्ति को भी उठा लिया है (तेरी याद साथ है). शब्द साधारण है. ‘बलमा’ गीत कहने को विरह का गीत है जिसमें प

फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी–८

स्वरगोष्ठी – ९७ में आज मान-मनुहार की ठुमरी : ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ...’ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर इन दिनों हम कुछ ऐसी पारम्परिक ठुमरियों पर चर्चा कर रहे हैं, जिन्हें पूरा मान-सम्मान देते हुए फिल्मों में शामिल किया गया और इन ठुमरियों को भरपूर लोकप्रियता भी मिली। ‘फिल्मों के आँगन में ठुमकती पारम्परिक ठुमरी’ श्रृंखला के अन्तर्गत अब तक आपने जो भी पारम्परिक ठुमरियाँ और उनके फिल्मों सहित अन्य अनुप्रयोगों का रसास्वादन किया है, उनमें रागों की समानता थी, अर्थात, मूल ठुमरी जिस राग में थी, अन्य अनुप्रयोग भी उसी राग में बँधे हुए थे। परन्तु आज के अंक में हमने जिस ठुमरी का चयन किया है, वह मूल पारम्परिक ठुमरी तो राग भैरवी में निबद्ध है, किन्तु उसी ठुमरी के परवर्ती प्रयोग के राग भिन्न-भिन्न हैं। यहाँ तक कि उसी ठुमरी के फिल्मी प्रयोग में भी राग बदला हुआ है। हमारी आज की ठुमरी है- ‘जा मैं तोसे नाहीं बोलूँ साँवरिया...’। इस ठुमरी को सुप्रसिद्ध गायिका रसूलन बाई ने भैरवी में गाया है। मान-मनुहार की इस श्रृंगारप्रधान ठुमरी को सुनने से पहले पूरब अंग की ठुमरियों की कुछ विशेषताओं के बारे में