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रविन्द्र संगीत (2 )- एक चर्चा संज्ञा टंडन के साथ

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (15) कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर के लिखे गीतों का, जिन्हें हम "रवीन्द्र संगीत" के नाम से जानते हैं, बंगाल के साहित्य, कला और संगीत पर जो प्रभाव पड़ा है, वैसा प्रभाव शायद शेक्सपीयर का अंग्रेज़ी जगत में भी नहीं पड़ा होगा। ऐसा कहा जाता है कि टैगोर के गीत दरअसल बंगाल के ५०० वर्ष के साहित्यिक और सांस्कृतिक मंथन का निचोड़ है। धनगोपाल मुखर्जी ने अपनी किताब 'Caste and Outcaste' में लिखा है कि रवीन्द्र-संगीत मानव-मन के हर भाव को प्रकट करने में सक्षम हैं। कविगुरु में छोटे से बड़ा, गरीब से धनी, हर किसी के मनोभाव को, हर किसी की जीवन-शैली को आवाज़ प्रदान की है। गंगा में विचरण करते गरीब से गरीब नाविक से लेकर अर्थवान ज़मिंदारों तक, हर किसी को जगह मिली है रवीन्द्र-संगीत में। समय के साथ-साथ रवीन्द्र-संगीत एक म्युज़िक स्कूल के रूप में उभरकर सामने आता है। रवीन्द्र-संगीत को एक तरह से हम उपशास्त्रीय संगीत की श्रेणी में डाल सकते हैं। अपने लिखे गीतों को स्वरबद्ध करते समय कविगुरु ने शास्त्रीय संगीत, बांग्ला लोक-संगीत और कभी-कभी तो पाश्चात्य संगीत का भी सहारा

बोलती कहानियाँ - फैसला (भीष्म साहनी)

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में क्रांति त्रिवेदी की कहानी "एक पढ़ी लिखी स्त्री" का पॉडकास्ट सुना था। आज प्रस्तुत है, प्रसिद्ध लेखक, नाट्यकर्मी और अभिनेता श्री भीष्म साहनी की एक कहानी। मैं तब से उनका प्रशंसक हूँ जब पहली बार स्कूल में उनकी कहानी "अहम् ब्रह्मास्मि" पढी थी। सुनो कहानी में वही कहानी पढने की मेरी बहुत पुरानी इच्छा है परन्तु यहाँ उपलब्ध न होने के कारण आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं उनकी एक और प्रसिद्ध कहानी "फ़ैसला" जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। आशा है आपको पसंद आयेगी। कहानी का कुल प्रसारण समय 18 मिनट 5 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। भीष्म साहनी (1915-2003) हर सप्ताह सुनिए एक नयी कहानी पद्म भूषण

प्लेबैक इंडिया वाणी (१८) ओह माई गॉड, और आपकी बात

संगीत समीक्षा -   ओह माई गॉड प्रेरणा बॉलीवुड का सबसे लोकप्रिय शब्द है...कोई अंग्रेजी फिल्मों से प्रेरित होता है, कोई दक्षिण की फिल्मों की नक़ल घोल कर करोड़ों कमा लेता है. कभी कभार कोई निर्माता अभिनेता साहित्य या थियटर से भी प्रेरित हो जाता है. ऐसे ही एक मंचित नाटक का फ़िल्मी रूपांतरण है “ओह माई गोड”. फिल्म में संगीत है हिमेश रेशमिया का, जो सिर्फ “हिट” गीत देने में विश्वास रखते हैं, चाहे प्रेरणा कहीं से भी ली जाए. आईये देखें “ओह माई गोड” के संगीत के लिए उनकी प्रेरणा कहाँ से आई है.  बरसों पहले कल्याण जी आनंद जी  का रचा “गोविदा आला रे” गीत पूरे महाराष्ट्र में जन्माष्टमी के दौरान आयोजित होने वाले दही हांडी प्रतियोगिताओं के लिए एक सिग्नेचर धुन बन चुका था, हिमेश ने इसी धुन को बेहद सफाई से इस्तेमाल किया है “गो गो गोविंदा” गीत के लिए. इस साल जन्माष्टमी से कुछ दिन पहले ये गीत एक सिंगल की तरह श्रोताओं के बीच उतरा गया, और इसके लाजवाब नृत्य संयोजन ने इसे रातों रात एक हिट गीत में बदल दिया. इस साल लगभग सभी दही हांडी समारोहों में ये गीत जम कर बजा, और इस तरह फिल्म के प्रदर्शन से दो महीन