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स्मृतियों के झरोखे से : भारतीय सिनेमा के सौ साल – 15

भूली-बिसरी यादें भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में आयोजित विशेष श्रृंखला ‘स्मृतियों के झरोखे से’ के एक नये अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने साथी सुजॉय चटर्जी के साथ आपका स्वागत करता हूँ। इस श्रृंखला में प्रत्येक मास के पहले और तीसरे गुरुवार को हम आपके लिए लेकर आते हैं, मूक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर के कुछ रोचक तथ्य और आलेख के दूसरे हिस्से में सवाक फिल्मों के प्रारम्भिक दौर की कोई उल्लेखनीय संगीत रचना और रचनाकार का परिचय। आज के अंक में हम आपसे इस युग के कुछ रोचक तथ्य साझा करने जा रहे हैं। भारतीय सिनेमा-इतिहास का दूसरा अध्याय ‘राजा हरिश्चन्द्र’ से शुरू हुआ भा रत में सिनेमा के इतिहास का आरम्भ 7जुलाई, 1896 से हुआ था, जब बम्बई (अब मुम्बई) के वाटसन होटल में लुईस और ऑगस्ट लुमियरे नामक फ्रांसीसी बन्धुओं की बनाई मूक फिल्म- ‘मारवेल ऑफ दि सेंचुरी’ का प्रदर्शन हुआ था। यह भारत में प्रदर्शित प्रथम विदेशी फिल्म थी, बाद में 14जुलाई, 1896 से मुम्बई के नावेल्टी थियेटर में इस फिल्म का नियमित प्रदर्शन हुआ। इसी फिल्म प्रदर्शन के बाद ही भारतीय फिल्मकारों ने भारत में फिल्

छोटे परदे की कहानियाँ और पुराने फ़िल्मी गीत

प्लेबैक इंडिया ब्रोडकास्ट (१३) रोज छोटे परदे पर नज़र आने वाले धारावाहिक, अधिकतर भारतीय परिवारों के लिए एक साथ बैठकर रात का भोजन खाने और तमाम गुफुत्गुओं के उस समय सफर के हमसफ़र होते हैं. कब जाने अनजाने ही इन धारावाहिकों के किरदार हमारे जीवन का हिस्सा बन जाते हैं और कब उनकी कहानियों में कहीं हम खुद को भी ढूँढने लगते हैं, पता ही नहीं चलता.  ऐसे में इन धारवाहिकों के निर्माताओं पर भी दबाब होता है कि नयी और अनूठी कहानियों को नए अंदाज़ में पेश करें, और इन कहानियों को दर्शकों से जोड़ने के लिए अगर वो पुराने हिंदी फ़िल्मी गीतों का सहारा लेते हैं तो हैरत नहीं होनी चाहिए. पर कहीं न कहीं पिछले कुछ दिनों में ये चलन बहुत तेज़ी से बढ़ा है, इसी पर एक पड़ताल है हमारा आज का ब्रोडकास्ट....सुनिए और अपनी राय देकर इस चर्चा को सार्थक बनायें.

बोलती कहानियाँ - मध्यम वर्गीय कुत्ता - हरिशंकर परसाई - देवेन्द्र पाठक

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में अभिषेक ओझा की कहानी " वो लोग ही कुछ और होते हैं " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " मध्यम वर्गीय कुत्ता ", जिसको स्वर दिया है देवेन्द्र पाठक "मुन्ना" ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 7 मिनट 17 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बेचैन आत्मा पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर सप्ताह सुनें एक नयी कहानी कुत्तेवाले घर मुझे अच्छे नहीं लगते। वहाँ जाओ तो मेजबान के पहले कुत्ता भौंकक