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प्लेबैक इंडिया वाणी (7) बोल बच्चन, विचार नियम और स्वीकार का जादू और आपकी बात

संगीत समीक्षा - बोल बच्चन जिस फिल्म से रोहित शेट्टी का नाम जुड जाता है तो दर्शकों को समझ में आ जाता है कि एक बहुत ही मनोरंजक फिल्म उन्हें देखने को मिलने वाली है.  उनकी फिल्मों का संगीत भी उसी मनोरजन का ही एक हिस्सा होता है, जाहिर है अल्बम से बहुत कर्णप्रिय या लंबे समय तक याद रखने लायक संगीत की अपेक्षा नहीं रखी जा सकती, फिर भी जहाँ नाम हो हिमेश रेशमिया का और अग्निपथ में शानदार संगीत रचने वाले अजय-अतुल का, तो उम्मीदों का जागना भी स्वाभाविक ही है. इस मामले में बोल बच्चन निराश भी नहीं करता.  अल्बम में कुल चार गीत है जिन्हें ४ मुक्तलिफ़ गीतकारों ने अंजाम दिया है. पहले गीत में ही एक बार फिर मनमोहन देसाई सरीखे अंदाज़ की पुनरावर्ती दिख जाती है, जब बिग बी यानी बच्चन साहब अपने चिर परिचित अमर अकबर एंथोनी स्टाइल में विज्ञान के फंडे समझाते हुए गीत शुरू करते हैं. गीतकार फरहाद साजिद ने शब्दों में अच्छा हास्य भरा है, पर फिर भी “ माई नेम इज एंथोनी गोंसाल्विस ” की बात कुछ और ही थी, ऐसे हमें लगता है. हिमेश आपको फिर एक बार पुराने दौर में ले जाते हैं, इस बार थोडा और पीछे, जहाँ सी रामचंद्र अप

कहानी पॉडकास्ट - चौबे जी - हरिशंकर परसाई - अर्चना चावजी

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने शेफाली गुप्ता की आवाज़ में श्रीमती रीता पाण्डेय की रचना " नज़ीर मियाँ की खिचड़ी " का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य " चौबे जी ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 5 मिनट 13 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। ।  ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शुक्रवार को "बोलती कहानियाँ" पर सुनें एक नयी कहानी "आयुष्मान अब डिप्टी कलक्टर हो गया है।" ( हरिशंकर परसाई की "चौबे जी" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर स

स्मृतियों के झरोखों से - सुनीता सानू

मैंने देखी पहली फिल्म भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पहले दो अंकों में हमने गैरप्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये थे। आज से हम प्रतियोगी वर्ग के संस्मरणों की शुरुआत कर रहे हैं। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता की पहली प्रविष्टि सुनीता शानू की है। आप भी उनकी देखी पहली फिल्म ‘अर्पण’ के संस्मरण का आनन्द लीजिए। पहली फिल्म जो यादगार बन गई मै पिलानी (राजस्थान) में पली-बड़ी। पिलानी आज एक खूबसूरत शहर के रूप में जाना जाता है लेकिन उस समय एक कस्बा ही था। जहाँ शहर की हवा नही चली थी। समय पंख लगा कर उड़ गया। गुड्डे-गुड़िया खेलते-खेलते कब फ़िल्म देखने का शौक चर्राया पता ही नही चला। दोनो बड़ी बहनें, अपनी सहेलियों के संग फ़िल्म देखने जाती थी मगर ‘मै छोटी हूँ’ कह कर घर छोड़ जाती थी। माँ को शिकायत करने पर भी झिड़क दी जाती थी कि बच्चे फ़िल्म नही देखा करते। कहने की बात यह है

इंडिया अन-टेचड - एक झकझोर देने वाली फिल्म

अक्सर शहरों में रह कर हम लोग लगभग भूल ही चुके हैं कि हमारे देश में छुआ छात, और जात पात जैसी समस्याएँ आज भी किस हद तक मुखरित है. इस सप्ताह आमिर खान द्वारा प्रस्तुत "सत्यमेव जयते" का एपिसोड कम से कम मेरे लिए एक सदमे जैसा था. लगता है जैसे इन जातिगत असमानताओं की जड़ें हमारी सोच में इस कदर पैठ बना चुकी है कि आधुनिक होने का दंभ भरने वाले पढ़े लिखे और सभ्य कहलाये जाने वाले लोग भी इन संकीर्णताओं से पूरी तरह उभर नहीं पायें हैं अब तक. फिल्म निर्देशक स्टालिन का ये वृत्त चित्र अवश्य ही हर भारतीय को देखनी चाहिए. रेडियो प्लेबैक के फीचर्ड विडियो विभाग लेकर आया है आज आपके लिए इसी वृत्त चित्र को. देखिये, सोचिये और कुछ कर गुजरिये. 

झुके हैं शाम के साये शब्दों के आसमान पे

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 06 शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम -  1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल  यहाँ  है. 2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से  अनुराग शर्मा  जी अपने साथी पो

'सिने पहेली' महाविजेता बनने के नियम में किया गया है बदलाव, जुड़िये इस अनोखी प्रतियोगिता से, आज ही...

सिने-पहेली # 28 (9 जुलाई, 2012)  रेडियो प्लेबैक इण्डिया के साप्ताहिक स्तंभ 'सिने पहेली' के सभी पाठकों और प्रतियोगियों को सुजॉय चटर्जी का प्यार भरा नमस्कार! दोस्तों, पिछली पहेली के जवाबों को ढूंढने में हमारे प्रतियोगी न जाने कैसे कैसे प्रयास किए हैं, क्या बताएँ! जहाँ कुछ प्रतियोगी हमसे रविवार तक का समय माँगा है, तो एक प्रतियोगी ऐसे भी हैं जो अस्पताल में भर्ती होने की वजह से सप्ताह भर जवाब नहीं दे सके, पर अस्पताल से अपने भाई के माध्यम से रविवार शाम को जवाब भिजवा दिया है। वैसे तो जवाब भेजने की समय सीमा शनिवार शाम 5 बजे तक का ही होता है, पर आप ही बताएँ कि जब आप इतनी रुचि, लगन और प्यार से हमें जवाब भेजते हैं तो भला हम अस्वीकार कैसे करें। इसलिए इस बार रविवार को भी मिलने वाले जवाबों को हमने शामिल कर लिया है। हमें यह देख कर बहुत ही अच्छा लगता है कि आप सब इस प्रतियोगिता को इतनी गंभीरता से ले रहे हैं; हम से ज़्यादा आप इसमें रुचि ले रहे हैं, और इसके लिए हम आप सभी के तहे दिल से आभारी हैं। आपसे बस यह अनुरोध है कि आप सब नियमित रूप से इस प्रतियोगिता में भाग लें और अपने मित्रों को भी इस

वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग

स्वरगोष्ठी – ७८ में आज ‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’ ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब रसिकजनों का, स्वरों की रिमझिम फुहारों के बीच स्वागत करता हूँ। इन दिनों आप प्रकृति-चक्र के अनुपम वरदान, वर्षा ऋतु का आनन्द ले रहे हैं। तप्त, शुष्क और प्यासी धरती पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर जो सुगन्ध फैलती है वह अवर्णनीय है। ऐसे ही मनभावन परिवेश में आपके उल्लास और उमंग को द्विगुणित करने के लिए हम लेकर आए हैं यह नई श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’ । इस श्रृंखला में वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों पर आपसे चर्चा करेंगे और इन रागों में निबद्ध वर्षा ऋतु के रस-गन्ध में पगे गीतों को प्रस्तुत भी करेंगे। भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ हैं; बसंत और पावस। संगीत शास्त्र के अनुसार मल्हार के सभी प्रकार पावस ऋतु की अनुभूति कराने में समर्थ हैं। इसके साथ ही कुछ सार्वकालिक राग; वृन्दावनी सारंग, देस और जैजैवन्ती भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। वर्षाकालीन रागों में सबसे प्राचीन रा