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अभिषेक ओझा की कहानी "अच्छा बुरा"

'बोलती कहानियां' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने हरिशंकर परसाई की कहानी " अश्‍लील " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अभिषेक ओझा की कहानी " अच्छा बुरा ", आवाज़ एकता अग्रवाल की। कहानी "अच्छा बुरा" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 33 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट ओझा-उवाच पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। वास्तविकता तो ये है कि किसे फुर्सत है मेरे बारे में सोचने की, लेकिन ये मानव मन भी न! ~ अभिषेक ओझा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "सबको पता था कि हरीश की गर्लफ्रेंड है तो कोई उससे बात करने की कोशिश भी नहीं कर रहा था। वरना ऐसी पार्टियों में लोग लड़कियों को अकेला कहाँ रहने देते हैं।&q

केतकी गुलाब जूही...कहानी इस एतिहासिक गीत के बनने की

फिल्म-संगीत-इतिहास के सुनहरे पृष्ठ पर दर्ज़ 'बसन्त बहार' का गीत भारतीय फिल्म संगीत के इतिहास में कुछ ऐसे गीत दर्ज़ हैं, जिनकी रचना-प्रक्रिया पर्याप्त रोचक तो है ही, उसमें कलात्मक सृजनशीलता के दर्शन भी होते हैं। १९५६ में प्रदर्शित फिल्म 'बसन्त बहार' में एक ऐसा गीत रचा गया, जिसे राग आधारित गीत कहने संकोच का अनुभव होता है। गीत की रचना-प्रक्रिया की जानकारी दिये बिना यदि किसी संगीत-प्रेमी को सुना दिया जाए तो कोई आश्चर्य नहीं कि श्रोता इसे राग बसन्त बहार का एक छोटा खयाल कह कर सम्बोधित कर दे। 'ए क गीत सौ कहानियाँ' के एक नए अंक में आज मैं कृष्णमोहन मिश्र आपके बीच उपस्थित हूँ। इस स्तम्भ के प्रस्तुतकर्ता सुजॉय चटर्जी की अन्यत्र व्यस्तता के कारण आज का यह अंक मुझे प्रस्तुत करना है। मित्रों, फिल्म-संगीत-जगत में समय-समय पर कुछ ऐसे गीतों की रचना हुई है, जो आज हमारे लिए अनमोल धरोहर बन गए हैं। एक ऐसा ही गीत १९५६ में प्रदर्शित फिल्म 'बसन्त बहार' में रचा गया था। यूँ तो इस फिल्म के सभी गीत अपने समय में हिट हुए थे, किन्तु फिल्म का एक गीत- 'केतकी

ब्लोग्गर्स चोयिस में आज लावण्या शाह की पसंद

व् धीर , गंभीर, सजग, बाह्यमुखी, सौन्दर्य से भारी लावण्या शाह जी को कौन साहित्यकार ब्लॉगर नहीं जानता, गीतकार/कवि पंडित नरेन्द्र शर्मा जी की सुपुत्री और लता जी की मुहँ बोली बहिन हैं ये. चलिए आज जानते हैं उनकी पसंद के ख़ास 3 गाने कौन से हैं-  1 ) Satyam Shivam Sunderam ( Title song )  Singer : Lata ji :  Lyricist : Pt. Narendra Sharma  MD : Laxmikant / Pyarelal  Raj Kapoor Production 2 ) Nain Diwane Ek nahee mane Film : Afsar AFSAR was first film produced by Dev Anand after  forming Navketan wirh his brothers Chetan and Vijay Anand  Singer :  Suraiya Jamaal Sheikh (June 15, 1929 - January 31, 2004)  was a singer and actress in Indian films, and was popularly known as  Suraiya in the film industry.  She became a superstar in the 1940s and 50s during the time when actors sang their own songs. Music By : S D Burman..Link :  3 ) Baje Re Muraliya Baje  This music is supreme combi

सिने-पहेली # 20 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 20 (14 मई, 2012)  नमस्कार दोस्तों, आज है 'सिने पहेली' की 20-वीं कड़ी, यानी आज इस प्रतियोगिता के दूसरे सेगमेण्ट की अंतिम कड़ी है और इसमें मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। इस सप्ताह 'सिने पहेली' परिवार के साथ कोई नया प्रतियोगी तो नहीं जुड़ा लेकिन हमारी एक पुरानी नियमित साथी क्षिति तिवारी प्रतियोगिता में वापस आ गईं हैं। दूसरे सेगमेण्ट में वो पीछे रह गईं ज़रूर पर हम उम्मीद करते हैं कि अगले सेगमेण्ट में वो दूसरे प्रतियोगियों को कड़ी टक्कर देंगी। इस सप्ताह शुभम जैन जी और कृतिका जी प्रतियोगिता में शामिल नही हुईं। जैसा कि हमने पिछली बार भी बताया था कि अगर आपको सेगमेण्ट विनर या महाविजेता बनना है तो यह बहुत ही ज़्यादा ज़रूरी है कि आप हर एपिसोड में हिस्सा लें। एक एपिसोड से आप खिसके कि दूसरों से पाँच अंक पीछे रह गए। अत: हम सभी प्रतियोगियों से यह दरख्वास्त करते हैं कि 'सिने पहेली' प्रतियोगिता को गम्भीरता से लें और 5000 रुपये के इनाम को अपने नाम कर लें। क्यों देना है यह पुरस्कार किसी और को जब आप में है इसे जीतने की काबलीयत? 

भोजपुरी के शेक्सपीयर पद्मश्री भिखारी ठाकुर

स्वरगोष्ठी - ७० में आज एक लोक-कलाकार, जो आजन्म रूढ़ियों के विरुद्ध संघर्षरत रहा लोक-कलाकारों का सही-सही मूल्यांकन प्रायः हम उनके जीवनकाल में नहीं कर पाते। भोजपुरी के कवि, गायक, संगीतकार, नाटककार, अभिनेता, निर्देशक और नर्तक भिखारी ठाकुर भी एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिनके कार्यों का वास्तविक मूल्यांकन उनके जाने के बाद ही हुआ। उन्होने लोक-कला-विधाओं का उपयोग, तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों के विरुद्ध किया। शा स्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक-संगीत पर केन्द्रित अपने साप्ताहिक स्तम्भ 'स्वरगोष्ठी' के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। मित्रों आज लोक-कला की बारी है और आज के अंक में हम आपसे भोजपुरी साहित्य और कला-क्षेत्र के एक बहुआयामी व्यक्तित्व- भिखारी ठाकुर और उनके कृतित्व पर चर्चा करेंगे। १८ दिसम्बर, १८८७ को बिहार के सारण जिला-स्थित कुतुबपुर दियारा ग्राम में एक नाई परिवार में इस महाविभूति का जन्म हुआ था। भिखारी ठाकुर का जन्म एक ऐसे भारतीय परिवेश में हुआ था, जब भारतीय मान्यताएँ ब्रिटिश सत्ता के आतंक के कारण पतनोन्मुख

वापसी को तैयार स्वप्न सुंदरियाँ

एक दौर था जब अभिनेत्रियों का करियर बेहद सीमित हुआ करता था, मगर अब विवाहित और माँ बन चुकी अभिनेत्रियों के लिए भी विषय चुनकर उन्हें वापसी का मौका दिया जा रहा है. आईये इस श्रृंखला में नज़र दौडाएं कुछ ऐसी ही वापसी को तैयार बीते दौर की स्वप्न सुंदरियों पर.

हरिशंकर परसाई की कहानी "अश्‍लील"

इस साप्ताहिक स्तम्भ "बोलती कहानियाँ" के अंतर्गत हम हर शुक्रवार को आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने रचना बजाज जी की कहानी " अपनापन " सुनी थी अर्चना चावजी के स्वर में। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार हरिशंकर परसाई का व्यंग्य अश्‍लील जिसे स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "अश्‍लील" का टेक्स्ट कबाड़खाना पर उपलब्ध है। इस कथा का कुल प्रसारण समय 2 मिनट 46 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। मेरी जन्म-तारीख 22 अगस्त 1924 छपती है। यह भूल है। तारीख ठीक है। सन् गलत है। सही सन् 1922 है। । ~ हरिशंकर परसाई (1922-1995) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी अखबारों में समाचार और नागरिकों के पत्र छपते कि सड़कों के किनारे खुलेआम अश्‍लील पुस्‍तकें बिक रह