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१८ अप्रेल- आज का गाना

गाना:  तेरी बिंदिया रे आय हाय, तेरी बिंदिया रे चित्रपट: अभिमान संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: रफ़ी, लता रफ़ी: हूँ ..., ओ... तेरी बिंदिया रे रे आय हाय तेरी बिंदिया रे \- २ रे आय हाय लता: सजन बिंदिया ले लेगी तेरी निंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरी बिंदिया रे रफ़ी: तेरे माथे लगे हैं यूँ, जैसे चंदा तारा जिया में चमके कभी कभी तो, जैसे कोई अन्गारा तेरे माथे लगे हैं यूँ लता: सजन निंदिया... सजन निंदिया ले लेगी ले लेगी ले लेगी मेरी बिंदिया रफ़ी: रे आय हाय तेरा झुमका रे रे आय हाय तेरा झुमका रे लता: चैन लेने ना देगा सजन तुमका रे आय हाय मेरा झुमका रे लता: मेरा गहना बलम तू, तोसे सजके डोलूं भटकते हैं तेरे ही नैना, मैं तो कुछ ना बोलूं मेरा गहना बलम तू रफ़ी: तो फिर ये क्या बोले है बोले है बोले है तेरा कंगना लता: रे आय हाय मेरा कंगना रे बोले रे अब तो छूटे न तेरा अंगना रफ़ी: रे आय हाय तेरा कंगना रे रफ़ी: तू आयी है सजनिया, जब से मेरी बनके ठुमक ठुमक चले है जब तू, मेरी नस नस खनके तू आयी है सजनिया लता: सजन अब तो सजन अब तो छ

मोहब्बत में खुद को तलाशती वंदना लायी हैं अपनी पसंद के गीत, रश्मि जी की महफ़िल में

" एक प्रयास " और वंदना जी . ब्लॉग तो उनके और भी हैं, पर यह ब्लॉग उनके कृष्णमय जीवन का आईना है. तो आज के गीतों संग वंदना जी - अपने लफ़्ज़ों में - रश्मि जी, अपनी पसंद के गीत भेज रही हूँ.बहुत मुश्किल काम था मगर किसी तरह पूरा कर दिया है.......ये गीत मुझे इसलिए पसंद हैं क्यूँकि इनमे प्रेम हैं, कसक है, वेदना है, विरह है, मोहब्बत की पराकाष्ठा है जहाँ मोहब्बत लफ़्ज़ों से परे अहसास में जीवंत होती है जहाँ मोहब्बत को किसी नाम की जरूरत नहीं है तो दूसरी तरफ मोहब्बत करने वाला हो तो ऐसा कि सब कुछ भुलाकर चाहे सिर्फ रूह को चाहे जिस्म से परे होकर उसकी आँखों के आँसू भी खुद पी ले मगर उसे दो पल की मुस्कान दे दे. एक तरफ इंतज़ार हो तो ऐसा कि जहाँ मोहब्बत यकीन करती हो हाँ वो आज भी जहाँ होगा मेरे इंतज़ार में ही होगा और मोहब्बत में कशिश होगी या मोहब्बत इतनी बुलंद होगी कि वो जहाँ भी होगा वहीँ से खींचा चला आएगा ...इंतज़ार हो तो ऐसा जिसमे यकीन की चाशनी मिली हो और दूसरी तरफ समर्पण हो तो ऐसा कि खुद से ज्यादा खुशनसीब इन्सान किसी को ना समझे मोहब्बत समर्पण भी तो चाहती है ना...मोहब्बत के हर पहलू को छू

१७ अप्रेल- आज का गाना

गाना: रात भी है कुछ भीगी-भीगी चित्रपट: मुझे जीने दो संगीतकार: जयदेव गीतकार: साहिर स्वर: लता मंगेशकर रात भी है कुछ भीगी-भीगी चाँद भी है कुछ मद्धम-मद्धम तुम आओ तो आँखें खोलें सोई हुई पायल की छम छम किसको बताएं कैसे बताएं आज अजब है दिल का आलम चैन भी है कुछ हल्का हल्का दर्द भी है कुछ मद्धम मद्धम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम तपते दिल पर यूं गिरती है तेरी नज़र से प्यार की शबनम जलते हुए जंगल पर जैसे बरखा बरसे रुक-रुक थम-थम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम होश में थोड़ी बेहोशी है बेहोशी में होश है कम कम तुझको पाने की कोशिश में दोनों जहाँ से खो गए हम छम-छम, छम-छम, छम-छम, छम-छम रात ...

सिने-पहेली # 16 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 16 (16 अप्रैल, 2012) 'सिने पहेली' की १६-वीं कड़ी में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, 'सिने पहेली' के दूसरे सेगमेण्ट के बीचों बीच हम आ पहुँचे हैं। पिछले सेगमेण्ट ही की तरह इस सेगमेण्ट में भी प्रकाश गोविंद, पंकज मुकेश, क्षिति तिवारी, रीतेश खरे और अमित चावला ने नियमित रूप से हिस्सेदारी दिखाई है, और इस प्रतियोगिता को रोचक बनाए रखा है। समय-समय पर शरद तैलंग और इंदु जी के भी जवाब आए हैं पर नियमित रूप से नहीं। आप सब के अलावा जिन जिन दोस्तों ने अब तक इस प्रतियोगिता में भाग नहीं लिया है, उन सभी से यह गुज़ारिश है कि इस अंक से ही इसमें भाग लेना शुरु करें क्योंकि अभी भी कुछ देर नहीं हुई है। महाविजेता की लड़ाई में अभी बहुत दूर तक जाना है, प्रश्नों के स्वरूप में कई महत्वपूर्ण फेर-बदल अभी होने हैं, आख़िर सवाल 5000 रुपये का जो है! हमारे नए पाठकों के लिए हम यह दोहरा दें कि 'सिने पहेली' के महाविजेता किस तरह से बन सकते हैं? हमने इस प्रतियोगिता को दस-दस कड़ियों के सेगमेण्ट्स में विभाजित किया है (वर्तमान में दूसरा सेगमेण्ट चल रहा

१६ अप्रेल- आज का गाना

गाना: मैं पिया तेरी तू माने या न माने चित्रपट: बसंत बहार संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: हसरत स्वर: लता मंगेशकर मैं पिया तेरी तू माने या न माने दुनिया जाने तू जाने या न जाने काहेको बजाए तू मीठी मीठी तानें मैं पिया तेरी तू माने या न माने मुरली की लय ने दिल मेरा छीना तार जगाए दिलके तार जगाए राह बिखेरे जब तेरे दिल ने राग उठाए मैंने राग उठाए मिटने न दूँगी, प्यार के सगाने मैं पिया तेरी... प्रीत की डोरी तुम संग बाँधी तुम संग बाँधी सैंया तुम संग बुझने न दूँगी प्रीत का दीपक कितनी भी आये सैंया दुनिया की आँधी मैं नहीं बदली, बदले ज़माना मैं पिया तेरी ...

मैहर घराने का रंग : अली अकबर के संग

स्वरगोष्ठी – ६६ में आज उस्ताद अली अकबर खाँ के सरोद में गूँजता राग मारवा नौ वर्ष की आयु में उन्होने सरोद वाद्य को अपना मुख्य लक्ष्य बनाया और साधनारत हो गए। एक दिन अली अकबर बिना किसी को कुछ बताए मुम्बई (तत्कालीन बम्बई) चले गए। बाबा से सरोद-वादन की ऐसी उच्चकोटि की सिक्षा उन्हें मिली थी कि एक दिन रेडियो से उनके सरोद-वादन का कार्यक्रम प्रसारित हुआ, जिसे मैहर के महाराजा ने सुना और उन्हें वापस मैहर बुलवा लिया। ‘स्व रगोष्ठी’ के एक नये अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। भारतीय संगीत के घरानों की जब भी चर्चा होगी, मैहर घराना और उसके संस्थापक बाबा अलाउद्दीन खाँ का नाम आदर और सम्मान से लिया जाएगा। उनके अनेक शिष्यों में से एक, उनके पुत्र उस्ताद अली अकबर खाँ ने और दूसरे, उनके दामाद पण्डित रविशंकर ने भारतीय संगीत की पताका को पूरे विश्व में फहराया है। कल १४ अप्रैल का दिन था और इसी दिन वर्ष १९२२ में पूर्वोत्तर भारत के त्रिपुरा ज़िले के साहिबपुर ग्राम में बाबा के घर अली अकबर खाँ का जन्म हुआ था। ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक में हम सुविख्यात सरोद वादक उस्

१५ अप्रेल- आज का गाना

गाना: तुम जो मिले आरज़ू को दिल की राह मिल गयी चित्रपट: लाल कुंवर संगीतकार: सचिन देव बर्मन गीतकार: साहिर स्वर: सुरैया तुम जो मिले, तुम जो मिले आरज़ू को दिल्ल की राह मिल गयी एक आस मिल गयी, रे, इक सलाह मिल गयी तुम जो मिले ... भोली\-भाली धड़कनों का आज ढंग और है ज़िंदगी वही है ज़िंदगी का रंग और है आज ढंग और है अंग अंग झूम उठा जब निगाह मिल गयी तुम जो मिले ... आज मेरी चूड़ियों के साज़ गुन्गुना उठे जाने कितने ख़्वाब एक साथ मुस्कुरा उठे आज मुस्कुरा उठे बचपन से जिस की चाह थी वो चाह मिल गयी तुम जो मिले ...