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११ अप्रेल- आज का गाना

गाना: दीवानों से ये मत पूछो चित्रपट: उपकार संगीतकार: कल्याणजी - आनंदजी गीतकार: कमर जलालाबादी स्वर: मुकेश दीवानों से ये मत पूछो दीवानों पे क्या गुज़री है हाँ उनके दिलों से ये पूछो, अरमानों पे क्या गुज़री है दीवानों से ये मत पूछो ... औरों को पिलाते रहते हैं और ख़ुद प्यासे रह जाते हैं ये पीने वाले क्या जाने पैमानों पे क्या गुज़री है दीवानों से ये मत पूछो ... मालिक ने बनाया इनसाँ को इनसान मुहब्बत कर बैठा वो ऊपर बैठा क्या जाने इनसानों पे क्या गुज़री है दीवानों से ये मत पूछो ...

एम् वर्मा के जज्बाती गीतों के रंग रश्मि जी के संग

गीतों से परे हो मन, भला कहाँ संभव है.... तो आज के ब्लौगर हैं एम् वर्मा जी... जिनके जज़्बात ब्लॉग से सभी परिचित हैं, (अगर नहीं हैं तो आज हो जाईये, ये रहे छायाकार ब्लोग्गर एम् वर्मा के जज़्बात ) आज उनकी पसंद के मुश्किल से निकाले गए ५ गानों से परिचित हों रश्मि जी, सादर, मेरे पसंद के पांच गीत - इन गीतों का मेरे जीवन से सम्बन्ध है या नहीं पर इंसान के / इंसानियत के / वतन के और मानावीय संवेदनाओ के अत्यंत निकट प्रतीत होते हैं. इसके अलावा ये कर्णप्रिय और सुमधुर संगीत से भी सुसज्जित हैं. मेरी दृष्टि में ये अमर गीत हैं. ऐ मेरे वतन के लोगो.... आज इंसान को ये क्या हो गया...   मौसम है आशिकाना...   जिंदगी प्यार का गीत है...   जीना यहाँ मरना यहाँ....

१० अप्रेल- आज का गाना

गाना: जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वस्ल-ए-यार की चित्रपट: ऊंचे लोग संगीतकार: चित्रगुप्त गीतकार: मजरूह सुलतान पुरी स्वर: रफी (जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वस्ल-ए-यार की बसी हुई ज़ुल्फ़ में आयी है सबा प्यार की ) - २ जाग दिल-ए-दीवाना (दो दिल के कुछ लेके पयाम आयी है चाहत के कुछ लेके सलाम आयी है ) - २ दर पे तेरे सुबह खड़ी हुई है दीदार की जाग दिल-ए-दीवाना (एक परी कुछ शाद सी नाशाद सी बैठी हुई शबनम में तेरी याद की ) - २ भीग रही होगी कहीं कली सी गुलज़ार की जाग दिल-ए-दीवाना रुत जागी वस्ल-ए-यार की बसी हुई ज़ुल्फ में आयी है सबा प्यार की जाग दिल-ए-दीवाना

सिने-पहेली # 15 (जीतिये 5000 रुपये के इनाम)

सिने-पहेली # 15  'सि ने पहेली' के एक और अंक में मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का फिर एक बार स्वागत करता हूँ। दोस्तों, 'सिने पहेली' का दूसरा सेगमेण्ट इन दिनों जारी है, और हमें ख़ुशी है कि आप में से कई श्रोता-पाठक अब नियमित रूप से इसमें भाग ले रहे हैं। हमारे एक प्रतियोगी रीतेश खरे जी पिछले दिनों थोड़े मायूस नज़र आए क्योंकि उन्हें पिछले दो एक अंकों में पूरे पाँच अंक नहीं मिल सके और उन्हें ऐसा लगने लगा कि महाविजेता बनने की लड़ाई वो हारते जा रहे हैं। हम अपने सभी प्रतियोगियों से यह कहना चाहेंगे कि 'सिने पहेली' का स्वरूप हमने कुछ ऐसा रखा है कि कभी भी इसमें उलट फेर हो सकती है। अभी तो कुछ भी नहीं हुआ, आगे आगे देखिये हम कैसे कैसे गूगली इसमें डालते हैं। आप सभी तैयार रहिएगा क्योंकि कभी भी इसके सवालों का स्वरूप बदल सकता है। और हाँ, जिन लोगों ने अभी तक इसमें भाग नहीं लिया है, उनके लिए भी हम यह कहना चाहते हैं कि अभी कुछ भी देर नहीं हुई है। क्योंकि १० सेगमेण्ट्सों के सर्वाधिक विजेता को ही सिने-पहेली महाविजेता माना जाएगा, इसलिए आज के अंक से भी आप शुरू करके महाविजेता बन सकत

९ अप्रेल- आज का गाना

गाना: राधा कैसे न जले चित्रपट: लगान संगीतकार: ए. आर. रहमान गीतकार: जावेद अख्तर स्वर: आशा भोंसले, उदित नारायण,वैशाली मधुबन में जो कन्हैया किसी गोपी से मिले कभी मुस्काये, कभी छेड़े कभी बात करे राधा कैसे न जले, राधा कैसे न जले आग तन में लगे राधा कैसे न जले, राधा कैसे न जले मधुबन में भले कान्हा किसी गोपी से मिले मन में तो राधा के ही प्रेम के हैं फूल खिले किस लिये राधा जले, किस लिये राधा जले बिना सोचे समझे किस लिये राधा जले, किस लिये राधा जले गोपियाँ तारे हैं चान्द है राधा फिर क्यों है उस को वि{ष}वास आधा कान्हा जी का जो सदा इधर उधर ध्यान रहे गोपियाँ आनी\-जानी हैं राधा तो मन की रानी है साँझ सखारे, जमुना किनारे राधा राधा ही कान्हा पुकारे बाहों के हार जो डाले कोई कान्हा के गले राधा कैसे न जले ... मन में है राधे को कान्हा जो बसाये तो कान्हा काहे को उसे न बसाये प्रेम की अपनी अलग बोली अलग भाषा है बात नैनों से हो, कान्हा की यही आशा है कान्हा के ये जो नैना नैना हैं छीनें गोपियों के चैना हैं मिली नजरिया हुई बाँवरिया गोरी गोरी सी कोई गुजरिया कान्हा का प्या

प्रयोगधर्मी संगीतज्ञ कुमार गन्धर्व और राग नन्द

स्वरगोष्ठी – ६५ में आज ‘उड़ जाएगा हंस अकेला, जग-दर्शन का मेला...’ कुमार गन्धर्व भारतीय संगीत की एक नई प्रवृत्ति और नई प्रक्रिया के पहले कलासाधक थे। घरानों की पारम्परिक गायकी की अनेक शताब्दी पुरानी जो प्रथा थी उसमें संगीत तो जीवित रहता था, किन्तु संगीतकार के व्यक्तित्व और प्रतिभा का विसर्जन हो जाता था। कुमार गन्धर्व ने पारम्परिक संगीत के कठोर अनुशासन के अन्तर्गत ही कलासाधक की सम्भावना को स्थापित किया। ‘स्व रगोष्ठी’ के मंच पर आपका यह सूत्रधार कृष्णमोहन मिश्र, एक बार पुनः आपके अभिनन्दन हेतु तत्पर है। आज आठ अप्रैल का दिन है। वर्ष १९२४ में आज के ही दिन बेलगाम, कर्नाटक के पास सुलेभवी नामक स्थान में एक संगीत-प्रेमी परिवार में एक बालक का जन्म हुआ था, जिसका माता-पिता का रखा नाम तो था शिवपुत्र सिद्धरामय्या कोमकलीमठ, किन्तु आगे चल कर संगीत-जगत ने उसे कुमार गन्धर्व के नाम से पहचाना। आज के अंक में हम इन्हीं प्रयोगधर्मी संगीत-साधक द्वारा सम्पादित कुछ अनूठे कार्यों का स्मरण करते हुए उनके प्रिय राग- नन्द की चर्चा करेंगे। भारतीय संगीत के बेहद मनमोहक राग- नन्द के सौन्दर्य का आ

८ अप्रेल- आज का गाना

गाना: देखो मैं ने देखा है यह इक सपना चित्रपट: लव स्टोरी संगीतकार: राहुलदेव बर्मन गीतकार: आनंद बक्षी स्वर: अमित कुमार,लता मंगेशकर अ: देखो मैं ने देखा है यह इक सपना फूलों के शहर में है घर अपना क्या समा है तू कहाँ है ल: मैं आई आई आई आई अ: आ जा ल: कितना हसीन है यह इक सपना फूलों के शहर में है घर अपना क्या समा है तू कहाँ है अ: मैं आया आया आया आया ल: आ जा अ: यहाँ तेरा मेरा नाम लिखा ल: रस्ता नहीं यह आम लिखा है अ: हो, यह है दरवाज़ा तू जहाँ खड़ी है ल: अन्दर आ जाओ सर्दी बड़ी है अ: यहाँ से नज़ारा देखो पर्वतों का ल: झाँकूँ मैं कहाँ से कहाँ है झरोखा अ: यह यहाँ है, तू कहाँ है ल: मैं आई आई आई ... ल: अच्छा यह बताओ कहाँ पे है पानी अ: बाहर बह रहा है झरना दीवानी ल: बिजली नहीं है यही इक ग़म है अ: तेरी बिंदिया क्या बिजली से कम है ल: छोड़ो मत छेड़ो बाज़ार जाओ अ: जाता हूँ जाऊँगा पहले यहाँ आओ शाम जवाँ है तू कहाँ है ल: मैं आई आईइ आई ... ल: कैसी प्यारी सी है यह छोटी सी रसोई हो हम दोनों हैं बस दूजा नहीं कोई इस कमरे में होंगी मीठी बातें अ: उस कमरे में गुज़