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७ अप्रेल- आज का गाना

गाना: हज़ार राहें, मुड़के देखीं चित्रपट: थोड़ी सी बेवफ़ाई संगीतकार: खैय्याम गीतकार: गुलजार स्वर: किशोर कुमार कि: हज़ार राहें, मुड़के देखीं कहीं से कोई सदा ना आई ल: बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई ... कि: जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे \- २ वो मोड़ अब भी वही खड़े हैं ल: हम अपने पैरों में जाने कितने \- २ भंवर लपेटे हुए खड़े हैं बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई ... कि: कहीं किसी रोज़ यूं भी होता हमारी हालत तुम्हारी होती ल: जो रातें हमने गुज़ारी मरके वो रात तुमने गुज़ारी होतीं बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई... कि: उन्हें ये ज़िद थी के हम बुलाते हमें ये उम्मीद वो पुकारें ल: है नाम होंठों में अब भी लेकिन आवाज़ में पड़ गई दरारें कि: हज़ार राहें, मुड़के देखीं कहीं से कोई सदा ना आई ल: बड़ी वफ़ा से, निभाई तुमने हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई...

अनुराग शर्मा की कहानी भोला

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अर्चना चावजी की आवाज़ में प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार बालमुकुन्द गुप्त की कहानी "मेले का ऊँट" का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " भोला ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "भोला" का कुल प्रसारण समय 8 मिनट 21 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं।  इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं तो अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी जैन का बहुत सा पैसा स्टॉक मार्केट में डूबा था। मेरे खाते में जितना था वह तनेजा मार्केट में डूबा। ( अनुराग शर्मा की

६ अप्रेल- आज का गाना

गाना: ओ बसंती पवन पागल, ना जा रे ना जा, रोको कोई चित्रपट: जिस देश में गंगा बहती है संगीतकार: शंकर - जयकिशन गीतकार: शैलेन्द्र स्वर: लता मंगेशकर ओ बसंती पवन पागल, ना जा रे ना जा, रोको कोई ओ बसंती ... बन के पत्थर हम पड़े थे, सूनी सूनी राह में जी उठे हम जब से तेरी, बांह आई बांह में बह उठे नैनों के काजल, ना जा रे ना जा, रोको कोई ओ बसंती ... याद कर तूने कहा था, प्यार से संसार है हम जो हारे दिल की बाजी, ये तेरी ही हार है सुन ये क्या कहती है पायल, ना जा रे ना जा, रोको कोई ओ बसंती ...

५ अप्रेल- आज का गाना

गाना: हम छोड़ चले हैं महफ़िल को याद आये कभी तो मत रोना चित्रपट: जी चाहता है संगीतकार: कल्याणजी - आनंदजी गीतकार: इन्दीवर स्वर: मुकेश हम छोड़ चले हैं महफ़िल को याद आये कभी तो मत रोना इस दिल को तसल्ली दे देना, घबराये कभी तो मत रोना हम छोड़ चले हैं महफ़िल को ... एक ख़्वाब सा देखा था हमने जब आँख खुली वो टूट गया ये प्यार अगर सपना बनकर तड़पाये कभी तो मत रोना हम छोड़ चले हैं महफ़िल को तुम मेरे ख़यालों में खोकर बरबाद न करना जीवन को जब कोई सहेली बात तुम्हें समझाये कभी तो मत रोना हम छोड़ चले हैं महफ़िल को ... जीवन के सफ़र में तनहाई मुझको तो न ज़िन्दा छोड़ेगी मरने की खबर ऐ, जान\-ए\-जिगर मिल जाये कभी तो मत रोना हम छोड़ चले हैं महफ़िल को ...

"ऊइ अम्मा" हो या "ऊह ला ला" - जो हिट है वही फ़िट है

अभिनेत्री सिल्क स्मिता के जीवन पर आधारित एकता कपूर की चर्चित फ़िल्म 'दि डर्टी पिक्चर' में अस्सी के दशक को साकार करने के लिए एक माध्यम गीत-संगीत को भी चुना गया। हर एक की ज़ुबान पर चढ़ने वाला "ऊह ला ला" गीत के बनने की कहानी 'एक गीत सौ कहानियाँ ' की चौदहवीं कड़ी में आज सुजॉय चटर्जी के साथ... एक गीत सौ कहानियाँ # 14 फ़ि ल्म-संगीत का सुनहरा दौर ४० के दश क के आख़िरी कुछ वर्षों से लेकर ७० के दशक के अंत तक को माना जाता है। आठवें दशक के आते-आते फ़िल्मों की कहानियों में इतनी ज़्यादा हिंसा और मार-धाड़ शुरु हो गई कि जिसका प्रकोप फ़िल्मी गीतों पर भी पड़ा। प्यार-मोहब्बत से भी मासूमियत ग़ायब हो गई, काव्य और अच्छी शायरी का चलन लगभग समाप्त हो गया। जिन इंदीवर ने कभी "फूल तुम्हे भेजा है ख़त में फूल नहीं मेरा दिल है" जैसे नर्मोनाज़ुक मासूमियत भरे गीत लिखे थे, उन्ही इंदीवर को ८० के दशक में व्यावसायिकता के आगे सारे हथियार डालते हुए "एक आँख मारूँ तो लड़की पट जाए" और "झोपड़ी में चारपाई एक ही है रजाई" जैसे गीत (न चाहते हुए भ

४ अप्रेल- आज का गाना

गाना: रोज़ रोज़ डाली डाली क्या लिख जाये चित्रपट: अंगूर संगीतकार: राहुलदेव बर्मन गीतकार: गुलजार स्वर: आशा भोसले रोज़ रोज़ डाली डाली क्या लिख जाये भँवरा बावरा कलियों के नाम कोई लिखे पैग़ाम कोई बावरा भँवरा बावरा रोज़ रोज़ डाली डाली ... बीते हुए मौसम की कोई निशानी होगी प म प म ग म ग रे ग नि रे नि म ग रे प बीते हुए मौसम की कोई निशानी होगी ददर् पुराना कोई याद पुरानी होगी कोई तो दास्तान होगी ना रोज़ रोज़ डाली डाली ... होगा कोई वादा होगा वादा निभाता होगा शाखों पे लिख कर याद दिलाता होगा याद तो आती ही होगी ना रोज़ रोज़ डाली डाली ...

जानिये सीमा सिंघल की "सदा" में किन गीतों का निवास है -ब्लोग्गर्स चोयिस में आज

और ब्लॉगर सीमा सिंघल .....डरती हैं पसंद बताते.... :) पसंद तो अपनी ही होती है न. तो ये रही इनकी पसंद - " मेरी पसन्‍द बस ऐसे ही है...अकेलेपन को एक राह मिल जाती है सुनते हुए " रूक जाना नहीं तू कहीं हार के .... इस गीत के बोल हमेशा एक प्रेरणा देते से लगते हैं इसलिए ...   मधुबन खुश्‍बू देता है .... ये गीत इसलिए भाता है जब किसी के चेहरे पर आपकी वज़ह से खुशी होती है ... जिन्‍दगी हर कदम इक नई जंग है ... जीवन में जब भी कभी उलझन आती है तो बस इस गीत के बोल एक सूकून देते हैं ... तेरा मुझसे है पहले का नाता कोई ...ये गीत बस अच्‍छा लगता है...कुछ ज्‍यादा नहीं कह सकती... ना मुंह छिपा के जिओ ... ये गीत सुनने में जितना मधुर है उतना ही एक ऊर्जा भी देता है ...