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लायी हयात आये...रफीक शेख की मखमली आवाज़ में ज़ौक की क्लास्सिक शायरी

रफीक शेख  रफीक शेख रेडियो प्लेबैक के सबसे लोकप्रियक कलाकारों में से एक हैं, विशेष रूप से उनके गज़ल गायन के ढेरों मुरीद हैं. रेडियो प्लेबैक के ओरिजिनल एल्बम " एक रात में " में उनकी गाई बहुत सी गज़लें संगृहीत हैं. आज के इस विशेष कार्यक्रम में हम लाये हैं उन्हीं की आवाज़, एक नई गज़ल के साथ. वैसे गज़ल और गज़लकार के बारे में संगीत प्रेमियों को बहुत कुछ बताने की जरुरत नहीं है. इब्राहीम "ज़ौक" की इस मशहूर गज़ल से आप सब अच्छे से परिचित होंगें. इसे पहले भी अनेकों फनकारों ने अपनी आवाज़ में ढाला है, पर रेडियो प्लेबैक के किसी भी आर्टिस्ट के द्वारा ये पहली कोशिश है. लायी हयात आये कज़ा ले चली चले ना अपनी ख़ुशी आये ना अपनी ख़ुशी चले | दुनिया ने किसका राहे-फ़ना में दिया है साथ तुम भी चले चलो यूं ही जब तक चली चले | कम होंगे इस बिसात पे हम जैसे बदकिमार जो चाल हम चले वो निहायत बुरी चले |

४ फरवरी - आज का गाना

गाना:  तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा चित्रपट: धूल का फूल संगीतकार: एन. दत्ता गीतकार: साहिर लुधियानवी गायक: रफ़ी तू हिन्दू बनेगा न मुसलमान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा अच्छा है अभी तक तेरा कुछ नाम नहीं है तुझ को किसी मज़हब से कोई काम नहीं है जिस इल्म ने इन्सानों को तक़सीम किया है इस इल्म का तुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं है तू बदले हुए वक़्त की पहचान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा मालिक ने हर इन्सान को इन्सान बनाया हमने उसे हिन्दू या मुसलमान बनाया क़ुदरत ने तो बख़्शी थी हमें एक ही धरती हमने कहीं भारत कहीं ईरान बनाया जो तोड़ दे हर बंद वह तूफ़ान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा नफ़रत जो सिखाए वो धरम तेरा नहीं है इन्साँ को जो रौंदे वो क़दम तेरा नहीं है क़ुरान न हो जिसमें वह मंदिर नहीं तेरा गीता न हो जिस में वो हरम तेरा नहीं है तू अमन का और सुलह का अरमान बनेगा इन्सान की औलाद है इन्सान बनेगा यह दीन के ताज़िर, यह वतन बेचनेवाले इन्सानों की लाशों के कफ़न बेचनेवाले यह महलों में बैठे हुए क़ातिल, यह लुटेरे काँटों के एवज़ रूह-ए-चमन बेचनेव

ईमानदार प्रधान - दीपक बाबा की बकबक

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में इब्ने इंशा की एक लघुकथा " अकबर के नवरत्न " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं दीपक बाबा का व्यंग्य "ईमानदार प्रधान", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। इस व्यंग्य का टेक्स्ट " दीपक बाबा की बकबक " ब्लॉग पर उपलब्ध है। कहानी "अकबर के नवरत्न" का कुल प्रसारण समय 3 मिनट 56 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बैरंग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया admin@radioplaybackindia.com पर सम्पर्क करें। जब दुनिया ही तमाशा बन जाए - तो बक बक करने में बुराई क्या है। ~ दीपक बाबा हर शुक्रवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी बकरी चिल्लाये, "देखो, वह मेरे बच्चे की गर्दन को नोच रहा है|&q

३ फरवरी - आज का गाना

गाना:  अजीब दास्तां है ये चित्रपट: दिल अपना और प्रीत पराई संगीतकार: शंकर-जयकिशन गीतकार: शैलेन्द्र गायिका: लता मंगेशकर अजीब दास्तां है ये कहाँ शुरू कहाँ खतम ये मंज़िलें है कौन सी न वो समझ सके न हम अजीब दास्तां... ये रोशनी के साथ क्यों धुआँ उठा चिराग से -२ ये ख़्वाब देखती हूँ मैं के जग पड़ी हूँ ख़्वाब से अजीब दास्तां... किसीका प्यार लेके तुम नया जहाँ बसाओगे -२ ये शाम जब भी आएगी तुम हमको याद आओगे अजीब दास्तां... मुबारकें तुम्हें के तुम किसीके नूर हो गए -२ किसीके इतने पास हो के सबसे दूर हो गए अजीब दास्तां...

२ फरवरी - आज का गाना

गाना:  गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा चित्रपट: चितचोर संगीतकार: रवीन्द्र जैन गीतकार:  रवीन्द्र जैन गायक: येसुदास गोरी तेरा गाँव बड़ा प्यारा मैं तो गया मारा, आके यहाँ रे उस पर रूप तेरा सादा चंद्रमा ज्यों आधा, आधा जवान रे गोरी तेरा गाँव... जी करता है मोर के पावं में पायलिया पहना दूं कूहु कूहु गाती कोयलिया को फूलों का गहना दूँ यहीं घर अपना बनाने को पंछी करे देखो तिनके जमा रे, तिनके जमा रे गोरी तेरा गाँव... रंग बिरंगे फूल खिले हैं लोग भी फूलों जैसे आ जाए एक बार यहाँ जो जाएगा फिर कैसे झर झर झरते हुए झरने, मन को लगे हरने ऐसा कहाँ रे, ऐसा कहाँ रे गोरी तेरा गाँव... परदेसी अंजान को ऐसे कोई नहीं अपनाता तुम लोगों से जुड़ गया जैसे जनम जनम का नाता अपनी धुन में मगन डोले लोग यहाँ बोले दिल की ज़ुबान रे, दिल के ज़ुबान रे गोरी तेरा गाँव बड़ा...

"जब से पी संग नैना लागे" - क्यों लता नहीं गा सकीं ओ.पी.नय्यर के इस पहले पहले कम्पोज़िशन को

लता मंगेशकर और ओ.पी.नय्यर के बीच की दूरी फ़िल्म-संगीत जगत में एक चर्चा का विषय रहा है। आज इसी ग़लतफ़हमी पर एक विस्तारित नज़र ओ.पी.नय्यर की पहली फ़िल्म 'आसमान' के एक गीत के ज़रिए सुजॉय चटर्जी के साथ, 'एक गीत सौ कहानियाँ' की पाँचवी कड़ी में... एक गीत सौ कहानियाँ # 5 स्वर्ण-युग के संगीतकारों में बहुत कम ऐसे संगीतकार हुए हैं जिनकी धुनों पर लता मंगेशकर की आवाज़ न सजी हो। बल्कि यूं भी कह सकते हैं कि हर संगीतकार अपने गानें लता से गवाना चाहते थे। ऐसे में अगर कोई संगीतकार उम्र भर उनसे न गवाने की क़सम खा ले, तो यह मानना ही पड़ेगा कि उस संगीतकार में ज़रूर कोई ख़ास बात होगी, उसमें ज़रूर दम होगा। ओ.पी. नय्यर एक ऐसे ही संगीतकार हुए जिन्होने कभी लता से गाना नहीं लिया। अपनी पहली पहली फ़िल्म के समय ही किसी मनमुटाव के कारण जो दरार लता और नय्यर के बीच पड़ी, वह फिर कभी नहीं भर सकी। लता और नय्यर, दोनों से ही लगभग हर साक्षात्कार में यह सवाल ज़रूर पूछा जाता रहा है कि आख़िर क्या बात हो गई थी कि दोनों नें कभी एक दूसरे की तरफ़ क़दम नहीं बढ़ाया, पर हर बार ये दोनों असल बात को टालते रहे हैं

१ फरवरी - आज का गाना

गाना:  पहली तारीख है चित्रपट: पहली तारीख संगीतकार: सुधीर फड़के गीतकार:  कमर जलालाबादी गायक: किशोर कुमार दिन है सुहाना आज पहली तारीख है दिन है सुहाना आज पहली तारीख है खुश है ज़माना आज पहली तारीख है पहली तारीख अजी पहली तारीख है बीवी बोली घर ज़रा जल्दी से आना, जल्दी से आना शाम को पियाजी हमें सिनेमा दिखाना, हमें सिनेमा दिखाना करो ना बहाना हाँ बहाना बहाना करो ना बहाना आज पहली तारीख है खुश है ज़माना आज पहली तारीख है पहली तारीख अजी पहली तारीख है किस ने पुकारा रुक गया बाबू लालाजी की जाँ आज आया है काबू आया है काबू ओ पैसा ज़रा लाना लाना लाना ओ पैसा ज़रा लाना आज पहली तारीख है खुश है ज़माना आज पहली तारीख है पहली तारीख अजी पहली तारीख है बंदा बेकार है क़िसमत की मार है सब दिन एक है रोज़-ए-ऐतबार है मुझे ना सुनाना हाँ सुनाना सुनाना मुझे ना सुनाना आज पहली तारीख है खुश है ज़माना आज पहली तारीख है पहली तारीख अजी पहली तारीख है दफ़्तर के सामने आए मेहमान हैं बड़े ही शरीफ़ हैं पुराने मेहरबान हैं बड़े ही शरीफ़ हैं पुराने मेहरबान हैं अरे जेब को बचाना बचाना बचाना जेब