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दिल को तेरी तस्वीर से...जब नौशाद ने रफ़ी साहब का पार्श्वगायन करवाया राज कपूर के लिए

मुकेश, राज कपूर के लिए पहले भी अपनी आवाज़ दे चुके थे, परन्तु फिल्म ‘अन्दाज़’ में नौशाद का प्रयोग- दिलीप कुमार के लिए मुकेश के आवाज़, की असफलता के बाद वह स्थायी रूप राज कपूर की आवाज़ बन गए। इस फिल्म में नौशाद ने राज कपूर और नरगिस के लिए एकमात्र गीत- ‘यूँ तो आपस में बिगड़ते हैं खफा होते हैं...’ रिकार्ड किया था। दुर्भाग्य से राज कपूर के हिस्से का यह एकमात्र गीत असफल रहा, जबकि दिलीप कुमार के लिए मुकेश द्वारा गाये सभी गीत हिट हुए।

ख्यालों में किसी के....रोशन और राज कपूर एक साथ आये इस मशहूर गीत में

मुम्बई में रोशन को पहला अवसर देने वाले फिल्मकार थे केदार शर्मा, जिन्होंने अपनी फिल्म 'नेकी और बदी' में उन्हें संगीत निर्देशन के लिए अनुबन्धित किया। दुर्भाग्य से यह फिल्म चली नहीं और रोशन का बेहतर संगीत भी अनसुना रह गया। रोशन स्वभाव से अन्तर्मुखी थे। पहली फिल्म 'नेकी और बदी' की असफलता से रोशन चिन्तित रहा करते थे, तभी केदार शर्मा ने अपनी अगली फिल्म 'बावरे नैन' के संगीत का दायित्व उन्हें सौंपा। इस फिल्म के नायक राज कपूर थे। रोशन ने राज कपूर की अभिनय शैली और फिल्म में उनके चरित्र का सूक्ष्म अध्ययन किया और उसी के अनुकूल गीतों की धुनें बनाई। इस बार फिल्म भी हिट हुई और रोशन का संगीत भी। आज भी 'बावरे नैन' एक बड़ी संगीतमय फिल्म के रूप में याद की जाती है।

बहारों ने जिसे छेड़ा है....वही तराना ज्ञानदत्त का रचा साजे दिल बना राज कपूर का

१९४९ में प्रदर्शित फिल्म ‘सुनहरे दिन’ का निर्माण जगत पिक्चर्स ने किया था, जिसके निर्देशक सतीश निगम थे। फिल्म में राज कपूर की भूमिका एक रेडियो गायक की थी। अपने श्रोताओं के बीच यह गायक चरित्र बेहद लोकप्रिय है। इस फिल्म का संगीत वर्तमान में लगभग विस्मृत संगीतकार ज्ञानदत्त ने दिया था।

आई गोरी राधिका, ब्रज में बलखाती...नीनू मजूमदार की धुन और राज कपूर की स्मरण शक्ति

१९७८ में राज कपूर द्वारा निर्मित-निर्देशित फिल्म ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का एक गीत ‘यशोमति मैया से बोले नन्दलाला...’ बेहद लोकप्रिय पहले भी था और आज भी है। इसके गीतकार नरेन्द्र शर्मा और संगीतकार लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल थे। इस सुमधुर गीत की धुन के लिए लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल को भरपूर श्रेय दिया गया था। बहुत कम लोगों का ध्यान इस तथ्य की ओर गया होगा कि इस मोहक गीत की धुन के कारक स्वयं राज कपूर ही थे।

बोलती कहानियाँ - कफन- मुंशी प्रेमचन्द

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने  अनुराग शर्मा की आवाज़ में हरिशंकर परसाई की लघुकथा ' ढपोलशंख मास्टर '  का पॉडकास्ट सुना था। रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी कहानी " कफन ", जिसको स्वर दिया है  अमित तिवारी ने।

जिन्दा हूँ इस तरह...राज कपूर के पहले संगीत निर्देशक राम गांगुली ने रचा था ये दर्द भरा नग्मा

राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं।

‘झगड़े नउवा मूँडन की बेरिया...’ समाज के हर वर्ग का सम्मान है, संस्कार गीतों में

आज की कड़ी में बालक के मुंडन संस्कार पर ही हम केन्द्रित रहेंगे। पिछले दो अंकों में हमने जातकर्म अर्थात जन्म संस्कार तक की चर्चा की थी। जन्म और मुंडन के बीच नामकरण, निष्क्रमण और अन्नप्राशन संस्कार होते हैं। इन तीनों संस्कारों के अवसर पर क्रमशः शिशु को एक नया नाम देने, पहली बार शिशु को घर के बाहर ले जाने और छः मास का हो जाने पर शिशु को ठोस आहार देने के प्रसंग उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। मुंडन संस्कार अत्यन्त हर्षपूर्ण वातावरण में मनाया जाता है। बालक के तीन या पाँच वर्ष की आयु में उसके गर्भ के बालों का मुंडन कर दिया जाता है। इससे पूर्व बालक के बालों को काटना निषेध होता है। इस अवसर को चूड़ाकर्म संस्कार भी कहा जाता है।