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बोलती कहानियाँ - कफन- मुंशी प्रेमचन्द

'बोलती कहानियाँ' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने  अनुराग शर्मा की आवाज़ में हरिशंकर परसाई की लघुकथा ' ढपोलशंख मास्टर '  का पॉडकास्ट सुना था। रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध हिंदी साहित्यकार मुंशी प्रेमचन्द की कालजयी कहानी " कफन ", जिसको स्वर दिया है  अमित तिवारी ने।

जिन्दा हूँ इस तरह...राज कपूर के पहले संगीत निर्देशक राम गांगुली ने रचा था ये दर्द भरा नग्मा

राज कपूर के फिल्म-निर्माण की लालसा का आरम्भ फिल्म ‘आग’ से हुआ था, जिसके संगीतकार राम गांगुली थे। दरअसल यह पहली फिल्म राज कपूर के भावी फिल्मी जीवन का एक घोषणा-पत्र था। ठीक उसी प्रकार, जैसे लोकतन्त्र में चुनाव लड़ने वाला प्रत्याशी अपने दल का घोषणा-पत्र जनता के सामने प्रस्तुत करता है। ‘आग’ में जो मुद्दे लिये गए थे, बाद की फिल्मों में उन्हीं मुद्दों का विस्तार था, और ‘आग’ की चरम परिणति ‘मेरा नाम जोकर’ में हम देखते हैं।

‘झगड़े नउवा मूँडन की बेरिया...’ समाज के हर वर्ग का सम्मान है, संस्कार गीतों में

आज की कड़ी में बालक के मुंडन संस्कार पर ही हम केन्द्रित रहेंगे। पिछले दो अंकों में हमने जातकर्म अर्थात जन्म संस्कार तक की चर्चा की थी। जन्म और मुंडन के बीच नामकरण, निष्क्रमण और अन्नप्राशन संस्कार होते हैं। इन तीनों संस्कारों के अवसर पर क्रमशः शिशु को एक नया नाम देने, पहली बार शिशु को घर के बाहर ले जाने और छः मास का हो जाने पर शिशु को ठोस आहार देने के प्रसंग उत्सव के रूप में मनाए जाते हैं। मुंडन संस्कार अत्यन्त हर्षपूर्ण वातावरण में मनाया जाता है। बालक के तीन या पाँच वर्ष की आयु में उसके गर्भ के बालों का मुंडन कर दिया जाता है। इससे पूर्व बालक के बालों को काटना निषेध होता है। इस अवसर को चूड़ाकर्म संस्कार भी कहा जाता है।

विशेष - सिने-संगीत के कलाकारों के लिए उस्ताद सुल्तान ख़ाँ का योगदान

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 70 एक बार सुल्तान ख़ाँ साहब नें कहा था कि जो कलाकार संगत करते हैं उन्हें अपने अहम को त्याग कर मुख्य कलाकार से थोड़ा कम कम बजाना चाहिए। उन्होंने बड़ा अच्छा उदाहरण दिया था कि अगर आप बाराती बन के जा रहे हो किसी शादी में तो आपकी साज-सज्जा दुल्हे से बेहतर तो नहीं होगी न! पूरे बारात में दुल्हा ही केन्द्रमणि होता है। ठीक उसी तरह, संगत देने वाले कलाकार को भी (चाहे वो कितना भी बड़ा कलाकार हो) मुख्य कलाकार के साथ सहयोग देना चाहिए।

विथ लव डेल्ही - एक फिल्म हौंसलों की, हिम्मतों की, युवा ख्वाबों की और विश्वास की

कवर स्टोरी - 01/01/11/2011 दोस्तों "३ इडियट्स" फिल्म याद हैं न आपको. फिल्म का सन्देश भी याद होगा. पर अक्सर हम ये सोचते हैं कि फिल्मों की बात अलग है, कहाँ वास्तविक जीवन में ऐसा होता है कि जमे जमाये करियर को छोड़ कर कोई अपने सपनों का पीछा करने निकल पड़े. पर साथियों, कभी कभी बहुत से फ़िल्मी किरदार हमें वास्तविक दुनिया में हमारे आस पास ही मिल जाते हैं. ऐसे ही एक किरदार से मैं आज आपका परिचय करवाने जा रहा हूँ. ये हैं उभरते हुए अभिनेता आशीष लाल. एक इंजीनियरिंग विद्यार्थी से अभिनेता बने आशीष ने अपने साथियों के साथ मिलकर एक फुल लेंथ फिल्म बना डाली, जबकि इससे पहले उनमें से किसी का भी बॉलीवुड से कोई रिश्ता नाता नहीं था. आईये आशीष से ही जाने उनकी फिल्म "विथ लव डेल्ही" के बनने की कहानी -

एक राधा एक मीरा, दोनों ने श्याम को चाहा...दादु की दिव्य चेतना में कायम रहे उनकी संगीत साधना

टी.पी. साहब ने ज़िक्र किया कि दादु, राज साहब को गाना सुनाओ। यह गीत मैंने 'जीवन' फ़िल्म के लिए लिखा था, 'राजश्री' वालों के लिए। दो ऐसे गीत हैं जो दूसरी फ़िल्म में आ गए, उसमें से एक है 'अखियों के झरोखों से' का टाइटल सॉंग, सिप्पी साहब के लिए लिखा था जो 'घर' फ़िल्म बना रहे थे, लेकिन वो कुछ ऐसी बात हो गई कि उनके डिरेक्टर को पसन्द नहीं आया, उनको गाना ठंडा लगा। तो मैंने राज बाबू को सुना दिया तो उन्होंने यह टाइटल रख लिया। फिर सिप्पी साहब ने वही गाना माँगा मुझसे, मैंने कहा कि अब तो मैंने गाना दे दिया किसी को। बाद में ज़रा वो नाख़ुश भी हो गए थे। तो यह गाना 'जीवन' फ़िल्म के लिए, प्रशान्त नन्दा जी डिरेक्ट करने वाले थे, उसके लिए "एक राधा एक मीरा" लिखा था मैंने। तो राज साहब वहाँ बैठे थे। तो यह गाना जब सुनाया तो राज साहब ने दिव्या से पूछा कि यह गीत किसी को दिया तो नहीं? मैंने कहा कि नहीं, दिया तो नहीं! राज साहब तीन दिन थे और तीनो दिन वो मुझसे यह गाना सुनते रहे। और टी.पी. भाईसाहब से सवा रुपय लिया और मुझे देकर कहा कि आज से यह गाना मेरा हो गया, मुझे दे द

सांची कहे तोरे आवन से हमरे....याद आया ये मासूम सा गीत दादु के संगीत से संवरा

आज के अंक में हम आपको सुनवा रहे हैं फिर एक बार 'राजश्री' और 'रवीन्द्र जैन की जोड़ी की एक और ज़बरदस्त हिट फ़िल्म 'नदिया के पार' (१९८२) का गीत जसपाल सिंह की आवाज़ में। बोल हैं "सांची कहे तोरे आवन से हमरे अंगना में आये बहार भौजी"। फ़िल्म का पार्श्व ग्रामीण था, इसलिए फ़िल्म के गीतों में संगीत भी भोजपुरी शैली के थे। पर जब 'राजश्री' ने ९० के दशक में इसी फ़िल्म का शहरी रूपान्तर कर 'हम आपके हैं कौन' के रूप में पेश किया, तब इसी गीत का शहरी रूप बन गया "धिकताना धिकताना धिकताना, भाभी तुम ख़ुशियों का ख़ज़ाना"।