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शनिवार विशेष - 'अफसाना' के गीतों से उन्होने अपनी लेखनी का लोहा मनवा लिया...

फिल्म-जगत के सुप्रसिद्ध शायर / गीतकार असद भोपाली के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनके सुपुत्र पटकथा-संवाद लेखक ग़ालिब खाँ से एक साक्षात्कार शनिवार विशेषांक (प्रथम भाग) ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी गीत-संगीत प्रेमियों को कृष्णमोहन मिश्र का सादर अभिवादन, और स्वागत है आप सभी का इस 'शनिवार विशेषांक' के मंच पर। दोस्तों, फिल्म-जगत में कुछ ऐसे भी सृजनशील रचनाकार हुए हैं, जिन्होने गुणबत्ता से कभी भी समझौता नहीं किया, चाहे फिल्म उन्हें किसी भी श्रेणी की मिली हो। फिल्म-जगत के एक ऐसे ही प्रतिभावान, स्वाभिमानी और संवेदनशील शायर-गीतकार असद भोपाली के व्यक्तित्व और कृतित्व पर इस बार के शनिवार विशेषांक में हम चर्चा करेंगे। पिछले दिनों फिल्म और टेलीविज़न धारावाहिक के पटकथा, संवाद और गीत लेखक ग़ालिब खाँ से हमारा सम्पर्क हुआ। मालूम हुआ कि अपने समय के चर्चित गीतकार असद भोपाली के आप सुपुत्र हैं। अपने स्वाभिमानी पिता से ही प्रेरणा पाकर ग़ालिब खाँ फिल्म और टेलीविज़न के क्षेत्र में सफलतापूर्वक सक्रिय हैं। हमने ग़ालिब साहब से अनुरोध किया कि वो अपने पिता असद भोपाली के बारे में हमारे साथ बातचीत करें। अपनी व्यस

अनुराग शर्मा की कहानी सौभाग्य

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने पंडित सुदर्शन की मार्मिक कहानी " तीर्थयात्रा " का पॉडकास्ट अर्चना चावजी की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक कहानी " सौभाग्य ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा और डॉ. मृदुल कीर्ति ने।कहानी "सौभाग्य" का कुल प्रसारण समय 27 मिनट 31 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पतझड़ में पत्ते गिरैं, मन आकुल हो जाय। गिरा हुआ पत्ता कभी, फ़िर वापस ना आय।। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "इसका मतलब यह तो नहीं कि एक नौकरानी की तरह इस आदमी का हर काम करती रहूँ।" ( अनुराग शर्मा की "सौभाग्य" से एक अंश

कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना...शोखियों में डूबा एक नशीला गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 735/2011/175 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में शमशाद बेगम की खनकती आवाज़ इन दिनों गूंज रही है उन्हीं को समर्पित लघु शृंखला 'बूझ मेरा क्या नाव रे' में। आज हम जिस संगीतकार की रचना सुनवाने जा रहे हैं, उन्होंने भी शमशाद बेगम को एक से एक लाजवाब गीत दिए, और उनकी आवाज़ को 'टेम्पल बेल वॉयस' की उपाधि देने वाले ये संगीतकार थे ओ. पी. नय्यर। नय्यर साहब के अनुसार दो गायिकाएँ जिनकी आवाज़ ऑरिजिनल आवाज़ें हैं, वे हैं गीता दत्त और शमशाद बेगम। दोस्तों, विविध भारती पर नय्यर साहब की एक लम्बी साक्षात्कार प्रसारित हुआ था 'दास्तान-ए-नय्यर' शीर्षक से। उस साक्षात्कार में कई कई बार शमशाद जी का ज़िक्र छिड़ा था। आज और अगली कड़ी में हम उसी साक्षात्कार के चुने हुए अंशों को पेश करेंगे जिनमें नय्यर साहब शमशाद जी के बारे में बताते हैं। जब उनसे पूछा गया कि क्या वो अपना पहला पॉपुलर गीत "प्रीतम आन मिलो" को मानते हैं, तो नय्यर साहब का जवाब था, ""कभी आर कभी पार लागा तीर-ए-नज़र", 'आर-पार' का पहला सुपरहिट गाना शमशाद जी का"। शमशाद बेगम के गाये ग