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सुर संगम में आज - गंभीर प्रकृति के राग यमन की बात

सुर संगम - २५ - राग यमन प्रचीन काल से यह राग 'कल्याण' के नाम से ही प्रचलित था परंतु मुग़ल शासन काल के दौरान इस राग का नाम 'राग ईमान' या 'राग यमन' पड़ा। यो ऽयं ध्वनि-विशेषस्तु स्वर-वर्ण-विभूषित:। रंजको जनचित्तानां स राग कथितो बुधै:।। उपरोक्त श्लोक का अर्थ है - स्वर और वर्ण से विभूषित ध्वनि, जो मनुष्यों का मनोरंजन करे, राग कहलाता है। सुर-संगम के २५वें साप्ताहिक अंक में मैं सुमित चक्रवर्ती आप सभी संगीत प्रेमियों का स्वागत करता हूँ। सुर-संगम का स्तंभ मूलत: आधारित है भारतीय शास्त्रीय संगीत पर। तो हमने सोचा कि क्यों न आज के इस विशेष अंक में चर्चा की जाए भारतीय शास्त्रीय संगीत के अर्क की - यानी 'राग' की। राग सुरों के आरोहण और अवतरण का ऐसा नियम है जिससे संगीत की रचना की जाती है। कोई भी राग कम से कम पाँच और अधिक से अधिक ७ स्वरों के मेल से बनता है। राग का प्राचीनतम उल्लेख सामवेद में मिलता है। वैदिक काल में ज्यादा राग प्रयुक्त होते थे, किन्तु समय के साथ-साथ उपयुक्त राग कम होते गये। सुगम संगीत व अर्धशास्त्रीय गायनशैली में किन्ही गिने चुने रागों व तालों का प्रयोग होत

ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 46 - "मेरे पास मेरा प्रेम है"

पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री लावण्या शाह से लम्बी बातचीत - भाग-2 पहले पढ़ें भाग १ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का 'शनिवार विशेषांक' में। पिछले शनिवार से हमनें इसमें शुरु की है शृंखला 'मेरे पास मेरा प्रेम है', जो कि केन्द्रित है सुप्रसिद्ध कवि, साहित्यकार और गीतकार पंडित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री श्रीमती लावण्या शाह से की गई हमारी बातचीत पर। आइए आज प्रस्तुत है इस शृंखला की दूसरी कड़ी। सुजॉय - लावण्या जी, एक बार फिर हम आपका स्वागत करते है 'आवाज़' पर, नमस्कार! लावण्या जी - नमस्ते! सुजॉय - लावण्या जी, पिछले हफ़्ते हमारी बातचीत आकर रुकी थी पंडित जी के आयुर्वेद ज्ञान की चर्चा पर। साथ ही आपनें पंडित जी के शुरुआती दिनों के बारे में बताया था। आज बातचीत हम शुरु करते हैं उस मोड़ से जहाँ पंडित जी मुंबई आ पहुँचते हैं। हमने सुना है कि पंडित जी ३० वर्ष की आयु में बम्बई आये थे भगवती चरण वर्मा के साथ। यह बताइए कि इससे पहले उनकी क्या क्या उपलब्धियाँ थी बतौर कवि और साहित्यिक। बम्बई आकर फ़िल्म जगत से जुड़ना क्यों ज़रूरी हो गया? लावण्या जी -

रबीन्द्र नाथ ठाकुर की कहानी "काबुलीवाला"

सुनो कहानी: रबीन्द्र नाथ ठाकुर की "काबुलीवाला" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने क़ैस जौनपुरी की कहानी " सफ़ीना " का पॉडकास्ट सुना था उन्हीं के स्वर में। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं रबीन्द्र नाथ ठाकुर की एक कहानी " काबुलीवाला ", जिसको स्वर दिया है संज्ञा टंडन ने। कहानी का कुल प्रसारण समय 7 मिनट 37 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पक्षी समझते हैं कि मछलियों को पानी से ऊपर उठाकर वे उनपर उपकार करते हैं। ~ रबीन्द्र नाथ ठाकुर (1861-1941) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी आकाश में हाथी सूँड से पानी फेंकता है, इसी से वर्षा होती है। ( रबीन्द्र नाथ ठाकुर की "काबुलीवाला" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्