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ओल्ड इस गोल्ड - शनिवार विशेष - जब गुड्डो दादी नें बताया पंडित बागा राम व पंडित हुस्नलाल के परिवार के साथ उनके पारिवारिक संबंध के बारे में

'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गानें रेकॉर्ड/ कैसेट्स/ सीडी'ज़ के ज़रिये अनंतकाल तक सुरक्षित रहेंगे, इसमें कोई शक़ नहीं है, और इसमें भी कोई संदेह नहीं कि सुनहरे दौर के फ़नकार भी अमर रहेंगे। लेकिन जब हम इन अमर फ़नकारों के बारे में आज जानना चाहते हैं तो कुछ किताबों, पत्र-पत्रिकाओं और विविध भारती के संग्रहालय में उपलब्ध कुछ साक्षात्कारों के अलावा कोई और ज़रिया नहीं है। इन कलाकारों के परिवार वालों से भी जानकारी मिल सकती है लेकिन उन तक पहुँचना हमेशा संभव नहीं होता। ऐसे में अगर हमें कोई मिल जाये जिन्होंने उस ज़माने के कलाकार को या उनके परिवार को करीब से देखा है, जाना है, तो उनसे बातचीत करनें में भी एक अलग ही रोमांच हो आता है। यह हमारा सौभाग्य है कि 'हिंद-युग्म आवाज़' परिवार के श्रोता-पाठकों में भी कई मित्र ऐसे हैं जिन्होंने न केवल उस ज़माने से ताल्लुख़ रखते हैं बल्कि स्वर्णिम युग के कुछ कलाकारों के संस्पर्श में भी आने का उन्हें सौभाग्य प्राप्त हुआ है। ऐसी ही एक शख़्स हैं हमारी गुड्डो दादी। अभी हाल ही में जब मुझे सजीव जी से पता चला कि ग

सुनो कहानी: जयशंकर प्रसाद की ममता

जयशंकर प्रसाद की कहानी ममता 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने संज्ञा टंडन की आवाज़ में स्वामी विवेकानन्द की कथा ' उपाय छोटा काम बड़ा ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं जयशंकर प्रसाद की कहानी " ममता ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 9 मिनट 6 सेकंड। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। झुक जाती है मन की डाली, अपनी फलभरता के डर में। ~ जयशंकर प्रसाद (30-1-1889 - 14-1-1937) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी ममता विधवा थी। उसका यौवन शोण के समान ही उमड़ रहा था। ( जयशंकर प्रसाद की "ममता" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।)

चलो हसीन गीत एक बनायें.....सुनिए कैसे 'शौक़ीन' दादामुनि अशोक कुमार ने स्वर दिया इस मजेदार गीत को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 635/2010/335 सि तारों की सरगम', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों द्वारा गाये गये फ़िल्मी गीत। राज कपूर, दिलीप कुमार, मीना कुमारी और नूतन के बाद आज बारी हम सब के चहेते अभिनेता दादामुनि अशोक कुमार की। दोस्तों, आपको शायद याद होगा कि इस शृंखला की पहली कड़ी में हमनें यह कहा था कि इस शंखला में हम 'सिंगिंग् स्टार्स' को शामिल नहीं कर रहे हैं। इसलिए दादामुनि का नाम सुन कर शायद आप यह सवाल करें कि दादामुनि तो फ़िल्मों के पहले दशक में अभिनय के साथ साथ गायन भी किया करते थे, तो फिर उनका नाम कैसे इस शृंखला में शामिल हो रहा है? दरअसल बात ऐसी है दोस्तों कि भले ही अशोक कुमार नें उस दौर में अपने पर फ़िल्माये गानें ख़ुद ही गाया करते थे, लेकिन उनका नाम 'सिंगिंग् स्टार्स' की श्रेणी में दर्ज करवाना शायद सही नहीं होगा। दादामुनि की ही तरह उस दौर में बहुत से ऐसे अभिनेता थे जिन्हें प्लेबैक की तकनीक के न होने की वजह से अपने गानें ख़ुद ही गाने पड़ते थे, जिनमें मोतीलाल, पहाड़ी सान्याल जैसे नाम उल्लेखनीय है।

ए मेरे हमसफ़र रोक अपनी नज़र...जितनी उत्कृष्ट अभिनेत्री थी नूतन उनकी गायिकी में भी उतना ही क्लास था

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 634/2010/334 प्रि य दोस्तों, नमस्कार और स्वागत है आपका आप ही के इस मनचाहे महफ़िल में जिसका नाम है 'ओल्ड इज़ गोल्ड'। इस स्तंभ में इन दिनों जारी है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम' जिसमें हम कुछ ऐसे गीत सुनवा रहे हैं जिन्हें गाया है अभिनेता - अभिनेत्रियों नें। जी नहीं, हम 'सिंगिंग् स्टार्स' की बात नहीं कर रहे, बल्कि हम केवल स्टार्स की बात कर रहे हैं जो मूलतः अभिनेता या अभिनेत्री हैं, लेकिन किसी न किसी फ़िल्म में एक या एकाधिक गीत गाया है। राज कपूर, दिलीप कुमार, और मीना कुमारी के बाद आज बारी है अभिनेत्री नूतन की। अभिनेत्री व फ़िल्म निर्मात्री शोभना समर्थ की बेटी नूतन को शोभना जी नें ही अपनी निर्मित फ़िल्म 'हमारी बेटी' में लौंच किया था, जिसमें नूतन नें एक गीत भी गाया था, जिसके बोल थे "तूने कैसा दुल्हा भाये री बाँकी दुल्हनिया"। 'हमारी बेटी' १९५० की फ़िल्म थी। इसके दस साल बाद, १९६० में शोभना समर्थ नें अपनी छोटी बेटी तनुजा को लौंच करने के लिए बनाई फ़िल्म 'छबिली' जिसमें मुख्य नायिका बनीं नूतन और इस फ़िल्म में संगीतकार

बोल रे बोल रे मेरे प्यारे पपीहे बोल रे....गायन में भी खुद को आजमाया महान अभिनेत्री मीना कुमारी ने

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 633/2010/333 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के श्रोता-पाठकों को हमारा नमस्कार! 'सितारों की सरगम' शृंखला में ट्रैजेडी किंग् दिलीप कुमार के बाद आज बारी है ट्रैजेडी क्वीन के आवाज़ की। जी हाँ, मीना कुमारी, जिन्हें हिंदी सिनेमा का ट्रैजेडी क्वीन कहा जाता है। मीना कुमारी जितनी सशक्त अदाकारा थीं उतनी ही अच्छी शायरा भी थीं। उनकी शायरी का संकलन 'I write, I recite' के शीर्षक से जारी हुआ था, जिसको संगीतबद्ध किया था ख़य्याम साहब नें। विनोद मेहता नें मीना कुमारी की जीवनी लिखी जो प्रकाशित हुई थी सन् १९७२ में। इस किताब में मीना जी की शायराना अंदाज़ उन्होंने कुछ इन शब्दों में व्यक्त किया था - " Her poetry is sad, joyless, pessimistic, morbid, but then what do you expect from a women of the temperament of Meena Kumari? Her verses were entirely in character with her life, or at least her comprehension of her life. My heroine was not an outstanding poet, nor a detached poet, nor a penetrating poet, nor a classical poet. She was a learning poet who translated her li

पोर-पोर गुलमोहर खिल गए..जब गुलज़ार, विशाल और सुरेश वाडकर की तिकड़ी के साथ "मेघा बरसे, साजन बरसे"

Taaza Sur Taal (TST) - 08/2011 - BARSE BARSE कुछ चीजें जितनी पुरानी हो जाएँ, उतनी ज्यादा असर करती हैं, जैसे कि पुरानी शराब। ज्यों-ज्यों दिन बीतता जाए, त्यों-त्यों इसका नशा बढता जाता है। यह बात अगर बस शराब के लिए सही होती, तो मैं यह ज़िक्र यहाँ छेड़ता हीं नहीं। यहाँ मैं बात उन शख्स की कर रहा हूँ, जिनकी लेखनी का नशा शराब से भी ज्यादा है और जिनके शब्द अल्कोहल से भी ज्यादा मारक होते हैं। पिछले आधे दशक से इस शख्स के शब्दों का जादू बरकरार है... दर-असल बरकरार कहना गलत होगा, बल्कि कहना चाहिए कि बढता जा रहा है। हमने इनके गानों की बात ज्यादातर तब की है, जब ये किसी फिल्म का हिस्सा रहे हैं, लेकिन "ताज़ा सुर ताल" के अंतर्गत पहली बार हम एक एलबम के गानों को इनसे जोड़कर लाए हैं। हमने "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" में इनके कई सारे गैर-फिल्मी गाने सुनें हैं और सुनते रहेंगे। हम अगर चाहते तो इस एलबम को भी महफ़िल-ए-ग़ज़ल का हिस्सा बनाया जा सकता था, लेकिन चुकी यह "ताज़ा एलबम" है, तो "ताज़ा सुर ताल" हीं सही उम्मीदवार साबित होता है। अभी तक की हमारी बातों से आपने उन शख्स को पहचान तो

लागी नाहीं छूटे....देखिये अज़ीम कलाकार दिलीप साहब ने भी क्या तान मिलायी थी लता के साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 632/2010/332 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ ओल्ड' पर कल से हमनें शुरु की है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम'। पहली कड़ी में कल आपने सुना राज कपूर का गाया गीत। 'शोमैन ऒफ़ दि मिलेनियम' के बाद आज बारी 'अभिनय सम्राट' की, जिन्हें 'ट्रेजेडी किंग्' भी कहा जाता है। जी हाँ, यूसुफ़ ख़ान यानी दिलीप कुमार। युं तो हम दिलीप साहब को एक अभिनेता के रूप में ही जानते हैं, पुराने फ़िल्म संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों को मालूम होगा दिलीप साहब के गाये कम से कम एक गीत के बारे में, जो है फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का, "लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाये"। लता मंगेशकर के साथ गाया यह एक युगल गीत है, जिसका संगीत तैयार किया था सलिल चौधरी नें। 'फ़िल्म-ग्रूप' बैनर तले निर्मित इसी फ़िल्म से ऋषिकेश मुखर्जी नें अपनी निर्देशन की पारी शुरु की थी। १९५७ में प्रदर्शित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे दिलीप कुमार, उषा किरण और सुचित्रा सेन। पूर्णत: शास्त्रीय संगीत पर आधारित बिना ताल के इस गीत को सुन कर दिलीप साहब को सलाम करने का दिल करता है। एक तो कोई साज़ नहीं,