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अनुराग शर्मा की कहानी "जाके कभी न परी बिवाई"

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने नीरज बसलियाल की कहानी " फेरी वाला " का पॉडकास्ट अनुराग शर्मा की आवाज़ में सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं अनुराग शर्मा की एक सामयिक कहानी " जाके कभी न परी बिवाई ", जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी ने। कहानी "जाके कभी न परी बिवाई" का कुल प्रसारण समय 7 मिनट 43 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट बर्ग वार्ता ब्लॉग पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। कहानी कहानी होती है, उसमें लेखक की आत्मकथा ढूँढना ज्यादती है। ~ अनुराग शर्मा हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी "घातक हृदयाघात हुआ था पापा को ... और ... उन दुकानदारों ने जो कहा उस पर आज भी यकीन नहीं आता है" ( अनुराग शर्मा की "जाके कभी न परी बिवाई" से ए

मुकाबला हमसे करोगे तो तुम हार जाओगे...देखिये चुनौती का एक रंग ये भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 605/2010/305 ऒ स्ट्रेलिया, इंगलैण्ड, वेस्ट इंडीज़, पाकिस्तान, भारत, न्युज़ीलैण्ड, श्रीलंका और ईस्ट-अफ़्रीका; इन आठ देशों को लेकर १९७५ में पहला विश्वकप क्रिकेट आयोजित हुआ था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, और फिर एक बार विश्वकप क्रिकेट की कुछ बातें लेकर हम हाज़िर हैं इन दिनों चल रही लघु शृंखला 'खेल खेल में' में। पहले के तीन विश्वकप इंगलैण्ड में आयोजित की गई थी। १९८३ में भारत के विश्वकप जीतने के बाद १९८७ का विश्वकप आयोजित करने का अधिकार भारत ने प्राप्त कर लिया। इस बारे में विस्तार से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के उस वक़्त के प्रेसिडेण्ट एन.के.पी. साल्वे ने अपनी किताब 'The Story of the Reliance Cup' में लिखा है। साल्वे साहब ने उस किताब में लिखा है कि १९८३ में लॊर्ड्स के उस ऐतिहासिक विश्वकप फ़ाइनल के लिए उन्हें दो टिकट दिए गये थे। और जब भारत ने फ़ाइनल के लिए क्वालिफ़ाइ कर लिया तो उन्होंने MCC से दो और टिकटों के लिए आग्रह किया भारत से आये उनके दो दोस्तों के लिए। MCC ने उनकी माँग ठुकरा दी। यह बात साल्वे साहब को चुभ गई और वो जी जा

मुकाबला हमसे न करो....कभी कभी खिलाड़ी अपने जोश में इस तरह का दावा भी कर बैठते हैं

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 604/2010/304 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और स्वागत है आप सभी का इस स्तंभ में। तो कहिए दोस्तों, कैसा चल रहा है आपका क्रिकेट विश्वकप दर्शन? आपको क्या लगता है कौन है फ़ेवरीट इस बार? क्या भारत जीत पायेगा २०११ क्रिकेट विश्वकप? किन खिलाड़ियों से है ज़्यादा उम्मीदें? ये सब सवाल हम सब इन दिनों एक दूसरे से पूछ भी रहे हैं और ख़ुद भी अंदाज़ा लगाने की कोशिशें रहे हैं। लेकिन हक़ीक़त सामने आयेगी २ अप्रैल की रात जब विश्वकप पर किसी एक देश का आधिपत्य हो जायेगा। पर जैसा कि पहली कड़ी में ही हमने कहा था, जीत ज़रूरी है, लेकिन उससे भी जो बड़ी बात है, वह है पार्टिसिपेशन और स्पोर्ट्समैन-स्पिरिट। इसी बात पर आइए आज एक बार फिर कुछ रोचक तथ्य विश्वकप क्रिकेट से संबंधित हो जाए! • पहला विश्वकप मैच जो जनता के असभ्य व्यवहार की वजह से बीच में ही रोक देना पड़ा था, वह था १९९६ में कलकत्ते का भारत-श्रीलंका सेमी-फ़ाइनल मैच। • १९९६ में श्रीलंका पहली टीम थी जिसने बाद में बैटिंग कर विश्वकप फ़ाइनल मैच जीता। • २००३ विश्वकप में पाकिस्तान के शोएब अख़्तर ने क्रिकेट इतिहास में पहली बार १०० मा

आ देखे जरा, किस में कितना है दम....अब जब मैदान में आ ही गए हैं तो हो जाए मुकाबला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 603/2010/303 'खे ल खेल में' - इन दिनों विश्वकप क्रिकेट के नाम हम कर रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल इसी लघु शृंखला के ज़रिए। आज है इस शृंखला की तीसरी कड़ी। कल की कड़ी में हमने विश्वकप क्रिकेट से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको दिए, आइए आज उसी को आगे बढ़ाया जाये! • विश्वकप के इतिहास में दो देशों के लिए खेलने वाले एकमात्र खिलाड़ी हैं केप्लर वेसेल्स। वेसेल्स ने १९८३ का विश्वकप ऒस्ट्रेलिया के लिए खेला, और १९९२ में साउथ अफ़्रीका के कैप्टन बनें। • इंगलैण्ड तीन बार विश्वकप फ़ाइनल तक पहूँचे (१९७९, १९८७, १९९२), लेकिन कभी जीत नहीं सके। • वेस्ट इंडीज़ और ऒस्ट्रेलिया दो ऐसे देश हैं जिन्होंने विश्वकप पर एकाधिक बार अधिकार जमाया है। • लंदन वह शहर है जिसने सब से ज़्यादा विश्वकप फ़ाइनल होस्ट किये है (४ बार)। • तीसरे अम्पायर का कॊन्सेप्ट १९९६ के विश्वकप से लागू हुआ था। • पहले एक-दिवसीय मैच ६० ओवर्स के होते थे। १९८७ के विश्वकप में इसे ६० से ५० ओवर का कर दिया गया और उस साल विश्वकप भारत और पाकिस्तान ने होस्ट किया था। • "पिंच-हिटर" उस बल्लेबाज़ को कहा जाता है जि

जिंदगी है खेल कोई पास कोई फेल....भई कोई जीतेगा तो किसी की हार भी निश्चित है, जीवन दर्शन ही तो है ये खेल भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 602/2010/302 क्रि केट-फ़ीवर से आक्रांत सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार, और बहुत स्वागत है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। २०११ विश्वकप क्रिकेट जारी है इन दिनों और हम भी इस महफ़िल में बातें कर रहे हैं क्रिकेट विश्वकप की लघु शृंखला 'खेल खेल में' के माध्यम से। आइए आज विश्वकप से जुड़े कुछ रोचक तथ्य आपको बताएँ। • १९९९ विश्वकप में बंगलादेश ने एक मैच में पाकिस्तान को हराकर पूरे विश्व को चकित कर दिया था। ५ मार्च को नॊर्थम्प्टन में यह मैच खेला गया था। इसके अगले संस्करण में बांग्लादेश के भारत को पछाड कर हमारे कप के अभियान को मिट्टी में मिला दिया था, विश्व कप में अक्सर छोटी टीमें इस तरह के चमत्कार कर रोमाच बनाये रखती है, और यहीं से ये छोटी टीमें ताकतवर टीमों में तब्दील होती रहीं है, गौरतलब है कि १९८३ में भारत की गिनती भी एक कमजोर टीम में होती थी, मगर भारत का करिश्मा एक मैच तक नहीं वरन विश्व कप जीतने तक जारी रहा. • विश्वकप में अब तक सर्वश्रेष्ठ बोलिंग रेकॊर्ड रहा है वेस्ट-ईंडीज़ के विन्स्टन डेविस का, जिन्होंने १९८३ के विश्वकप में ऒस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ ५१ रन दे

हमको मन की शक्ति देना मन विजय करें....विश्व कप के लिए लड़ रहे सभी प्रतिभागियों के नाम आवाज़ का पैगाम

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 601/2010/301 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले बृहस्पतिवार १७ फ़रवरी को २०११ विश्वकप क्रिकेट का ढाका में भव्य शुभारंभ हुआ और इन दिनों 'क्रिकेट फ़ीवर' से केवल हमारा देश ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया ग्रस्त है। दक्षिण एशिया और तमाम कॊमन-वेल्थ देशों में क्रिकेट सब से लोकप्रिय खेल है और हमारे देश में तो साहब आलम कुछ ऐसा है कि फ़िल्मी नायक नायिकाओं से भी ज़्यादा लोकप्रिय हैं क्रिकेट के खिलाड़ी। ऐसे मे ज़ाहिर सी बात है कि क्रिकेट विश्वकप को लेकर किस तरह का रोमांच हावी रहता होगा हम सब पर। और जब यह विश्वकप हमारे देश में ही आयोजित हो रही हो, ऐसे में तो बात कुछ और ही ख़ास हो जाती है। इण्डियन पब्लिक की इसी दीवानगी के मद्दे नज़र हाल ही में 'पटियाला हाउस' फ़िल्म रिलीज़ हुई है जिसकी कहानी भी एक क्रिकेटर के इर्द गिर्द है। ऐसे में इस क्रिकेट-बुख़ार की गरमाहट 'ओल्ड इज़ गोल्ड' को ना लगे, ऐसा कैसे हो सकता है! विश्वकप क्रिकेट २०११ में भाग लेने वाले सभी खिलाड़ियों को शुभकामना हेतु आज से 'ओल्ड इज़ गोल्ड'

सुर संगम में आज - परवीन सुल्ताना की आवाज़ का महकता जादू

सुर संगम - 09 - बेगम परवीन सुल्ताना अपने एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा था कि जितना महत्वपूर्ण एक अच्छा गुरू मिलना होता है, उतना ही महत्वपूर्ण होता है गुरू के बताए मार्ग पर चलना। संभवतः इसी कारण वे कठिन से कठिन रागों को सहजता से गा लेती हैं, उनका एक धीमे आलाप से तीव्र तानों और बोल तानों पर जाना, उनके असीम आत्मविश्वास को झलकाता है, जिससे उस राग का अर्क, उसका भाव उभर कर आता है। चाहे ख़याल हो, ठुमरी हो या कोई भजन, वे उसे उसके शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर सबका मन मोह लेती हैं। सु र-संगम की इस लुभावनी सुबह में मैं सुमित चक्रवर्ती आप सभी संगीत प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। हिंद-युग्म् के इस मंच से जुड़ कर मैं अत्यंत भाग्यशाली बोध कर रहा हूँ। अब आप सब सोच रहे होंगे कि आज 'सुर-संगम' सुजॉय जी प्रस्तुत क्यों नही कर रहे। दर-असल अपने व्यस्त जीवन में समय के अभाव के कारण वे अब से सुर-संगम प्रस्तुत नहीं कर पाएँगे। परन्तु निराश न हों, वे 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के ज़रिये इस मंच से जुड़े रहेंगे। ऐसे में उन्होंने और सजीव जी ने 'सुर-संगम' का उत्तरदायित्व मेरे कन्धों पर सौंपा है।