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सुनो कहानी: नीरज बसलियाल की फेरी वाला

नीरज बसलियाल की कहानी फेरी वाला 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में जयशंकर प्रसाद की कहानी ' विजया ' का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं नीरज बसलियाल की कहानी " फेरी वाला ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। कहानी का कुल प्रसारण समय है: 7 मिनट 6 सेकंड। इस कथा का टेक्स्ट काँव काँव पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। पौड़ी की सर्दियाँ बहुत खूबसूरत होती हैं, और उससे भी ज्यादा खूबसूरत उस पहाड़ी कसबे की ओंस से भीगी सड़कें। ~ नीरज बसलियाल हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी पता नहीं कितने सालों से, शायद जब से पैदा हुआ यही काम किया, ख्वाब बेचा। ( नीरज बसलियाल की "फेरी वाला" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार

धडकन जरा रुक गयी है....सुरेश वाडकर के गाये एल पी के इस गीत को सुनकर एक पल को धडकन थम ही जाती है

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 600/2010/300 न मस्कार! पिछली नौ कड़ियों से आप इस महफ़िल में सुनते आ रहे हैं फ़िल्म जगत के सुनहरे दौर के कुछ ऐसे नग़में जिनमें पियानो मुख्य साज़ के रूप में प्रयोग हुआ है। 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की आज दसवीं और अंतिम कड़ी में आज हम चर्चा करेंगे कुछ भारतीय पियानिस्ट्स की। पहला नाम हम लेना चाहेंगे स्टीफ़ेन देवासी का। कल ही इनका जन्मदिन था। २३ फ़रवरी १९८१ को प्लक्कड, केरल में जन्में स्टीफ़ेन ने १० वर्ष की आयु से पियानो सीखना शुरु किया लेज़ली पीटर से। उसके बाद त्रिसूर में चेतना म्युज़िक अकादमी में फ़्र. थॊमस ने उनका पियानो से परिचय करवाया, जहाँ पर उन्होंने त्रिनिती कॊलेज ऒफ़ म्युज़िक लंदन द्वारा आयोजित आठवी ग्रेड की परीक्षा उत्तीर्ण की। १८ वर्ष की आयु में उन्होंने जॊनी सागरिका की ऐल्बम 'इश्टमन्नु' में कुल ६ गीतों का ऒर्केस्ट्रेशन किया। उसके बाद वो गायक हरिहरण के साथ यूरोप की टूर पर गये। वायलिन मेस्ट्रो एल. सुब्रह्मण्यम के साथ उन्होंने लक्ष्मीनारायण ग्लोबल म्युज़िक फ़ेस्टिवल में पर्फ़ॊर्म किया। १९ वर्ष की उम्र में स्टीफ़ेन ने एक म्युज़िक

जिंदगी हर कदम एक नयी जंग है....जबरदस्त सकारात्मक ऊर्जा है इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 599/2010/299 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और फिर एक बार स्वागत है इस महफ़िल में जिसमें हम इन दिनों पियानो की बातें कर रहे हैं। आइए आज पियानो का वैज्ञानिक पक्ष आज़माया जाए। सीधे सरल शब्दों में जब भी किसी 'की' पर वार होता है, एक चेन रीऐक्शन होता है जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है। पहले 'की' 'विपेन' को उपर उठाता है, जो 'जैक' को 'हैमर रोलर' पर वार करवाता है। उसके बाद हैमर रोलर लीवर को उपर उठाता है। 'की' 'डैम्पर' को भी उपर की तरफ़ उठाता है, और जैसे ही 'हैमर' 'वायर' को स्ट्राइक करके ही वापस अपनी जगह चला जाता है और वायर में वाइब्रेशन होने लगती है, रेज़ोनेट होने लगता है। जब 'की' को छोड़ दिया जाता है, तो डैम्पर वापस स्ट्रिंग्स पर आ जाता है जिससे कि वायर का वाइब्रेशन बंद हो जाता है। वाइब्रेटिंग पियानो स्ट्रिंग्स से उत्पन्न ध्वनियाँ इतनी ज़ोरदार नहीं होती कि सुनाई दे, इसलिए इस वाइब्रेशन को एक बड़े साउण्ड-बोर्ड में पहुँचा दिया जाता है जो हवा को हिलाती है, और इस तरह से उर्जा ध्वनि त

जीवन के दिन छोटे सही, हम भी बड़े दिलवाले....किशोर दा समझा रहे हैं जीने का ढंग...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 598/2010/298 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर इन दिनों आप इस लघु शृंखला का आनंद ले रहे हैं। विश्व के जाने माने पियानिस्ट्स में से दस पियानिस्ट्स के बारे में हम इस शृंखला में जानकारी दे रहे हैं। पाँच नाम शामिल हो चुके हैं, आइए आज की कड़ी में बाकी के पाँच नामों का ज़िक्र करें। शुरुआत कर रहे हैं महान संगीत-शिल्पी मोज़ार्ट से। वूल्फ़गैंग मोज़ार्ट भी एक आश्चर्य बालक थे, जिसे अंग्रेज़ी में हम child prodigy कहते हैं। केवल तीन वर्ष की उम्र में उनके हाथों की नाज़ुक उंगलियाँ पियानो के की-बोर्ड पर फिरती हुई देखी गई, और पाँच वर्ष के होते होते वो गानें कम्पोज़ करने लग गये, और पता है ये गानें किनके लिखे होते थे? उनके पिता के लिखे हुए। और बहुत ही छोटी उम्र से वो स्टेज-कॊण्सर्ट्स भी करने लगे, और आगे चलकर एक महान संगीतकार बन कर संगीताकाश में चमके। उन्हीं की सिम्फ़नी को आधार बना कर संगीतकार सलिल चौधरी ने फ़िल्म 'छाया' का वह गीत कम्पोज़ किया था, "इतना ना मुझसे तू प्यार बढ़ा..."। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं, और अब जो नाम मैं लेना चाहत

गीत गाता हूँ मैं, गुनगुनाता हूँ मैं....एक दर्द में डूबी शाम, किशोर दा की आवाज़ और पियानो का साथ

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 597/2010/297 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' शृंखला की सातवीं कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के महफ़िल की शमा जलाने को। कल की कड़ी में हमने दुनिया भर से पाँच बेहद नामचीन पियानिस्ट्स का ज़िक्र किया था और आप से यह वादा भी किया था कि आगे किसी अंक में और पाँच नामों को शामिल करेंगे। हम अपने वादे पे ज़रूर कायम हैं, लेकिन वह अंक आज का अंक नहीं है। आज के अंक में तो हम एक फ़िल्मी पियानिस्ट की बात करेंगे जिन्होंने संगीतकार जोड़ी शंकर-जयकिशन के लिए बेशुमार गीतों में पियानो बजाया है। हम जिस पियानिस्ट की बात कर रहे हैं, उनका नाम है रॊबर्ट कोर्रिया (Robert Correa)| दोस्तों, जैसे ही मुझे अपने किसी मित्र से यह पता चला कि रॊबर्ट कोर्रिया एस.जे. के लिए बजाते थे, तो मैं इस म्युज़िशियन के बारे में जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश में जुट गया। और इसी खोजबीन के दौरान मुझे रॊबर्ट कोरीया के बेटे युजीन कोर्रिया के बारे में पता चला किसी ब्लॊग में लिखे उनकी टिप्पणी के ज़रिए। दरअसल उस ब्लॊग में शंकर जयकिशन पर एक लेख पोस्ट हुआ था, और उसकी टिप्पणी में युजीन कोरीया ने

दिल के झरोखे में तुझको बिठाकर....जब दर्द को ऊंचे सुरों में ढाला रफ़ी साहब ने एस जे की धुन पर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 596/2010/296 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर एक नए सप्ताह के साथ हम वापस हाज़िर हैं और आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। इन दिनों आप सुन और पढ रहे हैं पियानो साज़ पर केन्द्रित हमारी लघु शृंखला 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़'। जैसा कि शीर्षक से ही प्रतीत हो रहा है कि इसमें हम कुछ ऐसे फ़िल्मी गीत सुनवा रहे हैं जिनमें पियानो मुख्य साज़ के तौर पर प्रयोग हुआ है; लेकिन साथ ही साथ हम पियानो संबंधित तमाम जानकारियाँ भी आप तक पहुँचाने की पूरी पूरी कोशिश कर रहे हैं। पिछली पाँच कड़ियों में हमने जाना कि पियानो का विकास किस तरह से हुआ और पियानो के शुरु से लेकर अब तक के कैसे कैसे प्रकार आये हैं। आज से अगली पाँच कड़ियों में हम चर्चा करेंगे कुछ मशहूर पियानो वादकों की, और उनमें कुछ ऐसे नाम भी आयेंगे जिन्होंने फ़िल्मी गीतों में पियानो बजाया है। दुनिया भर की बात करें तो पियानो के आविष्कार से लेकर अब तक करीब करीब ५०० पियानिस्ट्स हुए हैं, जिनमें से गिने चुने पियानिस्ट्स ही लोकप्रियता के चरम शिखर तक पहुँच सके हैं। और जो पहुँचे हैं, उन सब ने ब

सुर संगम में आज - बीन का लहरा और इस वाध्य से जुडी कुछ बातें

सुर संगम - 08 पुंगी या बीन के चाहे कितने भी अलग अलग नाम क्यों न हो, इस साज़ का जो गठन है, वह लगभग एक जैसा ही है। इसकी लम्बाई करीब एक से दो फ़ूट की होती है। पारम्परिक तौर पर पुंगी एक सूखी लौकी से बनाया जाता है, जिसका इस्तमाल एयर रिज़र्वर के लिए किया जाता है। इसके साथ बांस के पाइप्स लगाये जाते हैं जिन्हें जिवाला कहा जाता है। सु प्रभात! 'सुर संगम' की आठवीं कड़ी में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। दोस्तों, पिछले सात अंकों में आप ने इस स्तंभ में या तो शास्त्रीय गायकों के गायन सुनें या फिर भारतीय शास्त्रीय यंत्रों का वादन, जैसे कि सितार, शहनाई, सरोद, और विचित्र वीणा। आज भी हम एक वादन ही सुनने जा रहे हैं, लेकिन यह कोई शास्त्रीय साज़ नहीं है, बल्कि इसे हम लोक साज़ कह सकते हैं, क्योंकि इसका प्रयोग लोक संगीत मे होता है, या कोई समुदाय विशेष इसका प्रयोग अपनी जीविका उपार्जन के लिए करता है। आज हम बात कर रहे हैं बीन की। जी हाँ, वही बीन, जिसे हम अक्सर सपेरों और सांपों से जोड़ते हैं। बीन पूरे भारतवर्ष में अलग अलग इलाकों में अलग अलग नामों से जाना जाता है। उत्तर और पूर्व भारत में इसे पुंगी, तुम्बी