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धीरे धीरे मचल ए दिले बेकरार कोई आता है....सन्देश दे रही हैं नायिका को पियानो की स्वरलहरियां

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 595/2010/295 पि यानो के निरंतर विकास की दास्तान पिछले चार दिनों से आप पढ़ते आये हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। यह दास्तान इतनी लम्बी है कि अगर हम इसके हर पहलु पर नज़र डालने जायें तो पूरे पूरे दस अंक इसी में निकल जाएँगे। इसलिए आज से हम पियानो संबंधित कुच अन्य बातें बताएँगे। दोस्तों नमस्कार, 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' लघु शृंखला में आप सभी का फिर एक बार बहुत बहुत स्वागत है। आइए आज बात करें पियानो के प्रकारों की। मूलत: पियानो के दो प्रकार हैं - ग्रैण्ड पियानो तथा अप-राइट पियानो। ग्रैण्ड पियानो में फ़्रेम और स्ट्रिंग्स होरिज़ोण्टल होते हैं और स्ट्रिंग्स की-बोर्ड से बाहर की तरफ़ निकलते हुए नज़र आते हैं। ध्वनि जो उत्पन्न होती है, वह कार्य स्ट्रिंग्स के नीचे होता है और मध्याकर्षण की तकनीक से स्ट्रिंग्स अपने रेस्ट पोज़िशन पर वापस आते हैं। उधर दूसरी तरफ़ अप-राइट पियानो, जिन्हें वर्टिकल पियानो भी कहते हैं, आकार में छोटे होते हैं क्योंकि फ़्रेम और स्ट्रिंग्स वर्टिकल होते हैं। हैमर्स होरिज़ोण्टली अपनी जगह से हिलते हैं और स्प्रिंग्स के ज़रिए अपने र

जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला....पूरी तरह पियानो पर रचा बुना एक अमर गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 594/2010/294 'पि यानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़', इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है यह शृंखला, जिसमें हम आपको पियानो के बारे में जानकारी भी दे रहे हैं, और साथ ही साथ फ़िल्मों से चुने हुए कुछ ऐसे गानें भी सुनवा रहे हैं जिनमें मुख्य साज़ के तौर पर पियानो का इस्तमाल हुआ है। पिछली तीन कड़ियों में हमने पियानो के इतिहास और उसके विकास से संबम्धित कई बातें जानी, आइए आगे पियानो की कहानी को आगे बढ़ाया जाए। साल १८२० के आते आते पियानो पर शोध कार्य का केन्द्र पैरिस बन गया जहाँ पर प्लेयेल कंपनी उस किस्म के पियानो निर्मित करने लगी जिनका इस्तमाल फ़्रेडरिक चौपिन करते थे; और ईरार्ड कंपनी ने बनाये वो पियानो जो इस्तमाल करते थे फ़्रांज़ लिस्ज़्ट। १८२१ में सेबास्टियन ईरार्ड ने आविष्कार किया 'डबल एस्केपमेण्ट ऐक्शन' पद्धति का, जिसमें एक रिपिटेशन लीवर, जिसे बैलेन्सर भी कहा जाता है, का इस्तमाल हुआ जो किसी नोट को तब भी रिपीट कर सकता था जब कि वह 'की' अपने सर्वोच्च स्थान तक अभी वापस पहुंचा नहीं था। इससे फ़ायदा यह हुआ कि किसी नोट को बार बार और तुरंत रिपीट करना

ऐ जान-ए-जिगर दिल में समाने आजा....पियानों के तार खनके और मुकेश की आवाज़ में गूंजा अनिल दा नग्मा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 593/2010/293 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार और स्वागत है आप सभी का इन दिनों चल रही लघु शृंखला 'पियानो साज़ पर फ़िल्मी परवाज़' में। साल १७९० से लेकर १८६० के बीच मोज़ार्ट के दौर के पियानों में बहुत सारे बदलाव आये, पियानो का निरंतर विकास होता गया, और १८६० के आसपास जाकर पियानो ने अपना वह रूप ले लिया जो रूप आज के पियानो का है। पियानो के इस विकास को एक क्रांति की तरह माना जा सकता है, और इस क्रांति के पीछे कारण था कम्पोज़र्स और पियानिस्ट्स के बेहतर से बेहतर पियानो की माँग और उस वक़्त चल रही औद्योगिक क्रांति (industrial revolution), जिसकी वजह से उत्तम क्वालिटी के स्टील विकसित हो रहे थे और उससे पियानो वायर का निर्माण संभव हुआ जिसका इस्तमाल स्ट्रिंग्स में हुआ। लोहे के फ़्रेम्स भी बनें प्रेसिशन कास्टिंग् पद्धति से। कुल मिलाकर पियानो के टोनल रेंज में बढ़ौत्री हुई। और यह बढ़ौत्री थी मोज़ार्ट के 'फ़ाइव ऒक्टेव्स' से ७-१/४ या उससे भी ज़्यादा ऒक्टेव्स तक की, जो आज के पियानो में पायी जाती है। पियानो की शुरुआती विकास में एक और उल्लेखनीय नाम है ब्रॊडव