Skip to main content

Posts

दौलत ने पसीने को आज लात मारी है.....बगावती तेवर चितलकर के स्वर और सुरों का

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 568/2010/268 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'कितना हसीं है मौसम', सी. रामचन्द्र को सपर्पित इस लघु शृंखला में आज हम चितलकर और साथियों का गाया एक जोश भरा गीत सुनेंगे। इस गीत के बारे में बताने से पहले आपको याद दिला दें कि कल की कड़ी में हम ज़िक्र कर रहे थे लता मंगेशकर और सी. रामचन्द्र के बीच के अनबन के बारे में। हमने कुछ कही सुनी बातें तो जानी, सी. रामचन्द्र का राजु भारतन को दिए इंटरव्यु के बारे में भी जाना; लेकिन इस चर्चा को तब तक पूरी नहीं मानी जा सकती जब तक हम लता जी से इसके बारे में ना पूछ लें। और हमारे इस काम को अंजाम दिया अमीन सायानी साहब ने जिन्होंने लता जी से इसके बारे में पूछा और लता जी ने विस्तार से बताया। लीजिए पेश है उस इंटरव्यु का वही अंश, यह प्रस्तुत हुआ था 'सरगम के सितारों की महफ़िल' रेडियो प्रोग्राम में। अमीन सायानी: सी. रामचन्द्र से क्या बात हो गई, कैसे अनबन हो गई, क्यों हो गई, और ना होती तो कितना अच्छा होता? लता मंगेशकर: (हँसते हुए) नहीं, अगर आप ऐसे सोचें तो मेरा दुश्मन कोई नहीं है, ना ही मैं किसी की दुश्मन हूँ। पर

तुम मेरी जिंदगी में तूफ़ान बन कर आये.....कहीं लता जी का इशारा चितलकर पर तो नहीं था ?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 567/2010/267 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' में आप सभी का एक बार फिर बहुत बहुत स्वागत है। सी. रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों आप सुन और पढ़ रहे हैं। कल हमने आपसे वादा किया था कि आज की कड़ी में हम आपको सी. रामचन्द्र और लता मंगेशकर के बीच के अनबन के बारे में बताएँगे। दोस्तों, राजु भारतन लिखित लता जी की जीवनी को पढ़ने पर पता चला कि इस किताब के लिखने के दौरान भारतन साहब सी. रामचन्द्र से मिले थे और सी. रामचन्द्र ने कहा था, "she wanted to marry me, but i was already married.... all i wanted was some fun, but that was not to be.." इसी किताब में "ऐ मेरे वतन के लोगों" के किस्से के बारे में भी लिखा गया है कि शुरु शुरु में यह एक डुएट गीत के रूप में लिखा गया था जिसे लता और आशा, दोनों को मिलकर गाना था। लेकिन जिस दिन मंगेशकर बहनों को दिल्ली जाना था उस फ़ंक्शन के लिए, आशा जी ने सी. रामचन्द्र को फ़ोन कर यह कह दिया कि दीदी अकेली जा रही हैं और वो इससे ज़्यादा और कुछ नहीं कहना चाहतीं। इसी गीत को प्रस्तुत करते हुए द

कारी कारी कारी अंधियारी सी रात.....सावन की रिमझिम जैसी ठडक है अन्ना के संगीत में भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 566/2010/266 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की एक नई सप्ताह के साथ हम हाज़िर हैं दोस्तों। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के गीतों को सुनने और उनके बारे में जानने का सिलसिला जारी है। इन दिनों हम करीब से जान रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनके स्वरबद्ध और गाये हुए गानें हम शामिल कर रहे हैं उन पर केन्द्रित शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' में। दोस्तों, युं तो सी. रामचन्द्र ने ज़्यादातर युगल गानें लता जी के साथ ही गाये थे, लेकिन एक वक़्त ऐसा भी आया कि जब उन दोनों के बीच अनबन हो गई और लता जी ने उनके लिए गाना बंद कर दिया। इसके बारे में विस्तार से हम कल की कड़ी में चर्चा करेंगे, आज बस इतना कहते हैं कि लता का विकल्प आशा बनीं और ५० के दशक के आख़िर के कुछ सालों में अन्नासाहब ने आशा भोसले से कई गीत गवाये। तो आइए आज उन चंद सालों में सी. रामचन्द्र और आशा भोसले के संगम से उत्पन्न गीतों की बात करें। इन फ़िल्मों में जो नाम सब से उपर आता है, वह है १९५८ की फ़िल्म 'नवरंग'। आज इसी फ़िल्म से एक गीत आपको सुनवाने जा रहे हैं। वैसे इस फ़िल्म के दो गीत हम आपको सुनवा चुके हैं - "तू छुपी ह

सुर संगम में आज - भैरवी ठुमरी - उस्ताद विलायत ख़ान (सितार) और उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान (शहनाई)

सुर संगम - 02 उन दोनों में जो आपसी सम्मान और प्यार था, वो उनकी प्रस्तुतिओं में साफ़ महसूस की जा सकती थी। जब भी ये दोनों साथ में कॊन्सर्ट्स करते थे तो शो हाउसफ़ुल हुआ करता था, और जब दोनों साथ में रेकॊर्डिंग् करते थे तो उनके रेकॊर्ड्स भी हज़ारों, लाखों की तादाद में बिकते और आज भी बिकते हैं। सु प्रभात! रविवार की इस ठिठुरती सुबह में शास्त्रीय संगीत के इस स्तंभ 'सुर संगम' के साथ मैं, सुजॊय हाज़िर हूँ। पिछले सप्ताह से इस साप्ताहिक स्तंभ की शुरुआत हुई थी और हमने सुनी थी उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब की गाई राग गुणकली। आज बारी एक जुगलबंदी की, और जिन दो कलाकारों की यह जुगलबंदी है, वे दोनों ही अपनी अपनी विधाओं में, अपने अपने साज़ों में बहुत ऊँचा मुकाम बनाया है, महारथ हासिल है। इनमें से एक हैं सुविख्यात सितार वादक उस्ताद विलायत ख़ान और दूसरे हैं शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान। सन् १९६७ में इन दोनों के जुगलबंदी की एक रेकॊर्ड जारी हुई थी 'Duets From India' के शीर्षक से। हमने जुगलबंदी तो कहा, लेकिन तकनीकी दृष्टि से इसे जुगलबंदी नहीं कहेंगे, बल्कि यह एक भैरवी आधारित ठुमरी है।

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने....मिलिए महेंद्र कपूर के बेटे रोहन कपूर से सुजॉय से साथ

महेन्द्र कपूर के बेटे रोहन कपूर से सुजॊय की बातचीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार और स्वागत है इस साप्ताहिक विशेषांक में। युं तो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' रविवार से लेकर गुरुवार तक प्रस्तुत होता रहता है, लेकिन शनिवार के इस ख़ास पेशकश में कुछ अलग हट के हम करने की कोशिश करते हैं। इस राह में और हमारे इस प्रयास में आप पाठकों का भी हमें भरपूर सहयोग मिलता रहता है और हम भी अपनी तरफ़ से कोशिश में लगे रहते हैं कि कलाकारों से बातचीत कर उसे आप तक पहूँचाएँ। दोस्तों, आज ८ जनवरी है, और कल, यानी ९ जनवरी को जयंती है फ़िल्म जगत के सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक महेन्द्र कपूर जी का। उनकी याद में और उन्हें श्रद्धांजली स्वरूप हमने आमंत्रित किया उन्हीं के सुपुत्र रोहन कपूर को अपने पिता के बारे में हमें बताने के लिए। ज़रिया वही था, जी हाँ, ईमेल। तो लीजिए ईमेल के बहाने आज अपने पिता महेन्द्र कपूर की यादों से रोशन हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह महफ़िल। ******************************************* सुजॊय - रोहन जी, जब हर साल २६ जनवरी और १५ अगस्त के दिन पूरा राष्ट्र "मेरे देश की धरती" और

ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है...कितना दर्दीला है ये युगल गीत लता चितलकर का गाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 565/2010/265 सी . रामचन्द्र के स्वरबद्ध किए और उन्हीं के गाये हुए गीतों से सजी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' की पाँचवीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। दोस्तों, अब तक इस शृंखला में हमने चितलकर की आवाज़ में दो एकल गीत सुनें और बाक़ी के दो गीत उन्होंने लता जी के साथ गाया था। आइए आज एक बार फिर एक मशहूर लता-चितलकर डुएट सुना जाये। यह गीत है १९४९ की फ़िल्म 'सिपहिया' का, जिसके बोल हैं "ऐ आँख अब ना रोना, रोना तो उम्रभर है, पी जाएँ आँसूओं को, बस वो जिगर जिगर है"। गीतकार हैं राम चतुरवेदी। आइए आज अपको एक फ़ेहरिस्त दी जाये लता-चितलकर डुएट्स की। अलबेला (१९५१) - भोली सूरत दिल के खोटे, महफ़िल में मेरी कौन ये दीवाना आया, मेरे दिल की घड़ी करे टिक टिक टिक, शाम ढले खिड़की तले, शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के। आज़ाद (१८५४) - कितना हसीं है मौसम। बारिश (१९५७) - कहते हैं प्यार किस को पंछी, फिर वही चाँद वही हम वही तन्हाई। भेदी बंगला (१९४९) - आँसू ना बहाना कांटों भरी राह से। हंगामा (१९५२) - झूम झूम झूम राही प्यार की दुनिया, उल्फ़त की ज़

ज़रा ओ जाने वाले.....और जाने वाला कब लौटता है, आवाज़ परिवार याद कर रहा है आज सी रामचंद्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 564/2010/264 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार, और बहुत बहुत स्वागत है इस स्तंभ में। आज है ५ जनवरी, और आज ही के दिन सन् १९८२ में हमसे हमेशा के लिए जुदा हुए थे वो संगीतकार और गायक जिन्हें हम चितलकर रामचन्द्र के नाम से जानते हैं। उन्हीं के स्वरबद्ध और गाये गीतों से सजी लघु शृंखला 'कितना हसीं है मौसम' इन दिनों जारी है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर और आज इस शृंखला की है चौथी कड़ी। दोस्तों, सी. रामचन्द्र का ५ जनवरी १९८२ को बम्बई के 'के. ई. एम. अस्पताल' में निधन हो गया। पिछले कुछ समय से वे अल्सर से पीड़ित थे। २२ दिसम्बर १९८१ को उन्हें जब अस्पताल में भर्ती किया गया था, तभी से उनकी हालत नाज़ुक थी। अपने पीछे वे पत्नी, एक पुत्र तथा एक पुत्री छोड़ गये हैं। दोस्तों, अभी कुछ वर्ष पहले जब मैं पूना में कार्यरत था, तो मैं एक दिन सी. रामचन्द्र जी के बंगले के सामने से गुज़रा था। यकीन मानिए कि जैसे एक रोमांच हो आया था उस मकान को देख कर कि न जाने कौन कौन से गीत सी. रामचन्द्र जी ने कम्पोज़ किए होंगे इस मकान के अंदर। मेरा मन तो हुआ था एक बार अदर जाऊँ और उनके

नव दधीचि हड्डियां गलाएँ, आओ फिर से दिया जलाएँ... अटल जी के शब्दों को मिला लता जी की आवाज़ का पुर-असर जादू

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०७ रा जनीति और साहित्य साथ-साथ नहीं चलते। इसका कारण यह नहीं कि राजनीतिज्ञ अच्छा साहित्यकार नहीं हो सकता या फिर एक साहित्यकार अच्छी राजनीति नहीं कर सकता.. बल्कि यह है कि उस साहित्यकार को लोग "राजनीति" के चश्मे से देखने लगते हैं। उसकी रचनाओं को पसंद या नापसंद करने की कसौटी बस उसकी प्रतिभा नहीं रह जाती, बल्कि यह भी होती है कि वह जिस राजनीतिक दल से संबंध रखता है, उस दल की क्या सोच है और पढने वाले उस सोच से कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं। अगर पढने वाले उसी सोच के हुए या फिर उस दल के हिमायती हुए तब तो वो साहित्यकार को भी खूब मन से सराहेंगे, लेकिन अगर विरोधी दल के हुए तो साहित्यकार या तो "उदासीनता" का शिकार होगा या फिर नकारा जाएगा... कम हीं मौके ऐसे होते हैं, जहाँ उस राजनीतिज्ञ साहित्यकार की प्रतिभा का सही मूल्यांकन हो पाता है। वैसे यह बहस बहुत ज्यादा मायना नहीं रखती, क्योंकि "राजनीति" में "साहित्य" और "साहित्यकार" के बहुत कम हीं उदाहरण देखने को मिलते है, जितने "साहित्य" में "राजनीति" के। "साहित्य" में

कितना हसीं है मौसम, कितना हसीं सफर है....जब चितलकर की आवाज़ को सुनकर तलत साहब का भ्रम हुआ शैलेन्द्र को

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 563/2010/263 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार। आज ४ जनवरी है, यानी कि संगीतकार राहुल देव बर्मन की पुण्यतिथि। 'आवाज़' परिवार की तरफ़ से हम पंचम को दे रहे हैं श्रद्धांजली। आपको याद होगा पिछले साल इस समय हमने पंचम के गीतों से सजी लघु शृंखला ' दस रंग पंचम के ' प्रस्तुत किया था। और इस साल हम याद कर रहे हैं सी. रामचन्द्र को जिनकी कल, यानी ५ जनवरी को पुण्यतिथि है। 'कितना हसीं है मौसम' - सी. रामचन्द्र के गाये और स्वरबद्ध किए गीतों के इस लघु शृंखला की आज तीसरी कड़ी है। शुरुआती दिनों में सी. रामचन्द्र ने कई फ़िल्मों में संगीत दिया जिनमें से कुछ के नाम हैं 'सगाई', 'नमूना', 'उस्ताद पेड्रो', 'हंगामा', 'शगुफ़ा', '२६ जनवरी' वगेरह। पर जिन दो फ़िल्मों के संगीत से वे कामयाबी के शिखर पर पहुँचे, वो दो फ़िल्में थीं 'शहनाई' और 'अलबेला'। जैसा कि कल हमने आपको बताया था कि 'अलबेला' के गीतों ने उस फ़िल्म को चार चांद लगाये। सारे गानें हिट हुए और गली गली गूंजे। सिनेमाघरों में लोग खड़

दिल तो बच्चा है जी.....मधुर भण्डारकर की रोमांटिक कोमेडी में प्रीतम ने भरे चाहत के रंग

Taaza Sur Taal 01/2011 - Dil Toh Bachha Hai ji 'दिल तो बच्चा है जी'...जी हाँ साल २०१० के इस सुपर हिट गीत की पहली पंक्ति है मधुर भंडारकर की नयी फिल्म का शीर्षक भी. मधुर हार्ड कोर संजीदा और वास्तविक विषयों के सशक्त चित्रिकरण के लिए जाने जाते हैं. चांदनी बार, पेज ३, ट्राफिक सिग्नल, फैशन, कोपरेट, और जेल जैसी फ़िल्में बनाने के बाद पहली बार उन्होंने कुछ हल्की फुल्की रोमांटिक कोमेडी पर काम किया है, चूँकि इस फिल्म में संगीत की गुंजाईश उनकी अब तक की फिल्मों से अधिक थी तो उन्होंने संगीतकार चुना प्रीतम को. आईये सुनें कि कैसा है उनके और प्रीतम के मेल से बने इस अल्बम का ज़ायका. नीलेश मिश्रा के लिखे पहले गीत “अभी कुछ दिनों से” में आपको प्रीतम का चिर परिचित अंदाज़ सुनाई देगा. मोहित चौहान की आवाज़ में ये गीत कुछ नया तो नहीं देता पर अपनी मधुरता और अच्छे शब्दों के चलते आपको पसंद न आये इसके भी आसार कम है. “है दिल पे शक मेरा...” और प्रॉब्लम के लिए “प्रोब” शब्द का प्रयोग ध्यान आकर्षित करता है. दरअसल ये एक सामान्य सी सिचुएशन है हमारी फिल्मों की जहाँ नायक अपने पहली बार प्यार में पड़ने की अनुभूति व्यक

दाने दाने पे लिखा है खाने वाले का नाम...क्या खूब प्रयोग किया राजेन्द्र कृष्ण साहब ने इस मुहावरे का गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 562/2010/262 'कि तना हसीं है मौसम' - चितलकर रामचन्द्र के स्वरबद्ध और गाये गीतों की इस लघु शृंखला की दूसरी कड़ी में आप सभी का स्वागत है। सी. रामचन्द्र का जन्म महाराष्ट्र के अहमदनगर के पुणेताम्बे में १२ जून १९१५ को हुआ था। उनके पिता रेल्वे में सहायक स्टेशन मास्टर की नौकरी किया करते थे। अपने बेटे की संगीत के प्रति लगाव और रुझान को देख कर उन्हें नागपुर के एक संगीत विद्यालय में भर्ती करवा दिया। फिर उन्होंने पुणे में विनायकबुआ पटवर्धन से गंधर्व महाविद्यालय म्युज़िक स्कूल में संगीत की शिक्षा प्राप्त की। उन दिनों मूक फ़िल्मों का दौड़ था, वे कोल्हापुर आ गये और कई फ़िल्मों में अभिनय किया। पर उनकी क़िस्मत में तो लिखा था संगीतकार बनकर चमकना। कोल्हापुर से बम्बई में आने के बाद सी. रामचन्द्र सोहराब मोदी की मशहूर मिनर्वा मूवीटोन में शामिल हो गए जहाँ पर उन्हें उस दौर के नामचीन संगीतकारों, जैसे कि हबीब ख़ान, हूगन और मीरसाहब के सहायक बनने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हूगन से उन्होंने पाश्चात्य संगीत सीखा जो बाद में उनके संगीत में नज़र आने लगा, और शायद उनका यही वेस्टर्ण स्टाइल उ

शाम ढले, खिडकी तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो....हिंदी फिल्म संगीत जगत के एक क्रान्तिकारी संगीतकार को समर्पित एक नयी शृंखला

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 561/2010/261 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और आप सभी को एक बार फिर से नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ! साल २०११ आपके जीवन में अपार सफलता, यश, सुख और शांति लेकर आये, यही हमारी ईश्वर से कामना है। और एक कामना यह भी है कि हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के माध्यम से फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर के अनमोल मोतियों को इसी तरह आप सब की ख़िदमत में पेश करते रहें। तो आइए नये साल में नये जोश के साथ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के कारवाँ को आगे बढ़ाया जाये। दोस्तों, फ़िल्म संगीत के इतिहास में कुछ संगीतकार ऐसे हुए हैं जिनके संगीत ने उस समय की प्रचलित धारा को मोड़ कर रख दिया था, यानी दूसरे शब्दों में जिन्होंने फ़िल्म संगीत में क्रांति ला दी थी। जिन पाँच संगीतकारों को क्रांतिकारी संगीतकारों के रूप में चिन्हित किया गया है, उनके नाम हैं मास्टर ग़ुलाम हैदर, सी. रामचन्द्र, ओ. पी. नय्यर, राहुल देव बर्मन और ए. आर. रहमान। इनमें से एक क्रांतिकारी संगीतकार को समर्पित है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की आज से शुरु होने वाली लघु शृंखला। ये वो संगीतकार हैं, जो फ़िल्म जगत में आये तो थे नायक ब

सुर संगम में आज - गायन -उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान, राग - गुनकली

सुर संगम - 01 अगर हर घर में एक बच्चे को हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत सिखाया गया होता तो इस देश का कभी भी बंटवारा नहीं होता सु प्रभात! दोस्तों, नये साल के इस पहले रविवार की इस सुहानी सुबह में मैं, सुजॊय चटर्जी, आप सभी का 'आवाज़' पर स्वागत करता हूँ। युं तो हमारी मुलाक़ात नियमित रूप से 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर होती रहती है, लेकिन अब से मैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अलावा भी हर रविवार की सुबह आपसे मुख़ातिब हो‍ऊँगा इस नये स्तंभ में जिसकी हम आज से शुरुआत कर रहे हैं। दोस्तों, प्राचीनतम संगीत की अगर हम बात करें तो वो है हमारा शास्त्रीय संगीत, जिसका उल्लेख हमें वेदों में मिलता है। चार वेदों में सामवेद में संगीत का व्यापक वर्णन मिलता है। सामवेद ऋगवेद से निकला है और उसके जो श्लोक हैं उन्हे सामगान के रूप में गाया जाता था। फिर उससे 'जाती' बनी और फिर आगे चलकर 'राग' बनें। ऐसी मान्यता है कि ये अलग अलग राग हमारे अलग अलग 'चक्र' (उर्जाबिंदू) को प्रभावित करते हैं। ये अलग अलग राग आधार बनें शास्त्रीय संगीत का और युगों युगों से इस देश के सुरसाधक इस परम्परा को निरंतर आगे बढ

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (23), फिर एक बार साल की शुरूआत हो रही है मन्ना दा की स्वर साधना से

नमस्कार! पूरे 'आवाज़' और 'हिंद-युग्म' परिवार की तरफ़ से आप सभी को नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएँ। २०११ का यह नया साल आप सब के जीवन में ढेरों ख़ुशियाँ व सफलताएँ लेकर आए, यह हमारी शुभेच्छा है आप सब के लिए। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' शनिवार की विशेष प्रस्तुति 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने' में आप सभी का स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ के ज़रिए आप अपनी खट्टी मीठी यादों को पूरी दुनिया के साथ बाँट सकते हैं, या फिर कोई ख़ास गीत अगर आप सुनवाना चाहें, या 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए अपनी राय और सुझाव भेजना चाहें, उनकी भी व्यवस्था है इस साप्ताहिक पेशकश में। किसी दायरे में हमने इस विशेषांक को नहीं बांधा है, इसलिए आप अपने तरीके से कुछ भी इसमें भेज सकते हैं जो आपको लगे कि सब से साथ बांटा जा सकता है। आज हम हमारे जिन दोस्त का ईमेल शामिल कर रहे हैं, वो हैं कृष्णमोहन मिश्र, जिनके मनपसंद गायक हैं मन्ना डे। तो चलिए आज का यह अंक कृष्णमोहन जी और मन्ना दा के नाम करते हैं। ****************************** प्रिय सजीव सारथी एवं सुजॉय चटर्जी, आप दोनों को मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ; इसलि