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सुनसान रातों में जब तू नहीं आता.....जानिए कमल शर्मा से कि क्या क्या हैं हिंदी होर्रर फिल्मों के भूतों की पसंद

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 579/2010/279 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी दोस्तों को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ! 'मानो या ना मानो' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला का इन दिनों आप आनंद ले रहे हैं। पिछले कुछ दिनों से इस स्तंभ का माहौल थोड़ा भारी सा हो रहा था, इसलिए हमने सोचा कि आज माहौल कुछ हल्का किया जाए। अब आप यह भी सोच रहे होंगे कि भूत-प्रेत और आत्माओं की बातें हो रही है, सस्पेन्स फ़िल्मों के शीर्षक गानें बज रहे हैं, तो माहौल हल्का कैसे हो सकता है भला! दोस्तों, एक बार विविध भारती के 'छाया गीत' कार्यक्रम में वरिष्ठ उद्घोषक कमल शर्मा ने कार्यक्रम पेश किया था जिसका शीर्षक था 'फ़िल्मी आत्माएँ'। हमारी फ़िल्मों में जब भी भूत-प्रेत या आत्मा या सस्पेन्स को दिखाने की बात चलती है तो सभी निर्देशक कुछ फ़ॊर्मुला चीज़ें इख़्तियार करते हैं। इन्हीं फ़ॊर्मुला बातों की हास्यास्पद खिंचाई करते हुए कमल जी ने उस कार्यक्रम का आलेख लिखा था। आइए आज उसी आलेख को यहाँ प्रस्तुत कर आपको ज़रा गुदगुदाया जाये। "छाया गीत सुनने वाले सभी श्रोताओं को कमल शर्मा का नमस्कार! एक हव

अपने पडो़सी दिल से भीनी-भीनी भोर की माँग कर बैठे गोटेदार गुलज़ार साहब, आशा जी एवं राग तोड़ी वाले पंचम दा

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #१०९ गु लज़ार और पंचम - ये दो नाम दो होते हुए भी एक से लगते हैं और जब भी इन दोनों का नाम साथ में आता है तो सुनने वालों को मालूम हो जाता है कि कुछ नया कुछ अलबेला पक के आने वाला है बाहर.. अभी-अभी पतीला खुलेगा और कोई मीठी-सी नज़्म छलकते हुए हमारे कानों तक पहुँच जाएगी। ये दोनों फ़नकार एक-दूसरे के पूरक-से हो चले थे। कैसी भी घुमावदार सोच हो, किसी भी मोड़ पर बिन कहे मुड़ने वाले मिसरे हों या फिर किसी अखबार की सुर्खियाँ हीं क्यों न हो.. गुलज़ार के हरेक शब्द-नुमा ईंट का जवाब पंचम अपने सुरों के पत्थर (अजीब उपमा है.. यूँ होना तो फूल चाहिए, लेकिन मुहावरा बनाने वाले ने हमारे पास कम हीं विकल्प छोड़े हैं) से दिया करते थे... और जवाब ऐसा कि "साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे".. गुलज़ार के शब्द जहाँ शिखर पर हीं मौजूद रहें, वहीं उसी के इर्द-गिर्द पंचम अपनी पताका भी लहरा आएँ... तभी तो दोनों की जोड़ी आजतक प्यार और गुमान से याद की जाती है। लेकिन यह जोड़ी ज्यादा दिनों तक रह नहीं पाई। गुलज़ार को राह में अकेले छोड़कर पंचम दुसरी दुनिया में निकल लिए। पंचम के गुजरने का असर गुलज़ार पर किस हद

साथी रे...तुझ बिन जिया उदास रे....मानो या न मानो व्यावसायिक दृष्टि से ये होर्रर फ़िल्में दर्शकों को लुभाने में सदा कामियाब रहीं हैं

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 578/2010/278 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के सभी चाहनेवालों का इस सुरीली महफ़िल में बहुत बहुत स्वागत है। यह निस्संदेह सुरीली महफ़िल है, लेकिन कुछ दिनों से इस महफ़िल में एक और रंग भी छाया हुआ है, सस्पेन्स का रंग, रहस्य का रंग। 'मानो या ना मानो' लघु शृंखला में अब तक हमने अलग अलग जगहों के प्रचलित भूत-प्रेत, आत्मा, और पुनर्जनम के किस्सों के बारे में जाना, और पिछली कड़ी में हमने वैज्ञानिक दृष्टि से इन सब चीज़ों की व्याख्यान पर भी नज़र डाला। आज इस शृंखला की आठवीं कड़ी में मैं, आपका दोस्त सुजॊय, दो ऐसे किस्से आपको सुनवाना चाहूँगा जो मैंने मेरे दो बहुत ही करीब के लोगों से सुना है। इन दो व्यक्तियों मे एक है मेरे स्वर्गीय नानाजी, और दूसरा है मेरा इंजिनीयरिंग कॊलेज का एक बहुत ही क्लोज़ फ़्रेण्ड। पहले बताता हूँ अपने नाना जी की अपनी एक निजी भौतिक अभिज्ञता। उस रात बिजली गई हुई थी। मेरी नानी कहीं गई हुईं थी, इसलिए ऒफ़िस से लौट कर मेरे नाना जी ने लालटेन जलाया और मुंह हाथ धोने बाथरूम चले गये। वापस लौट कर जैसे ही ड्रॊविंग् रूम में प्रवेश किया तो देखा कि कुर्सी पर कोई बैठा ह

संगीत समीक्षा - ये साली जिंदगी : मशहूर सितार वादक निशात खान साहब के सुरों से मिली स्वानंद की दार्शनिकता तो उठे कई सवाल जिंदगी के नाम

Taaza Sur Taal (TST) - 03/2011 - YE SAALI ZINDAGI जिंदगी को कभी किसी ने नाम दिया पहेली का तो कभी इसे एक खूबसूरत सपना कहा गया. समय बदला और नयी सदी के सामने जब जिंदगी के पेचो-ख़म खुले तो इस पीढ़ी ने जिंदगी को ही कठघरे में खड़ा कर दिया और सवाल किया “तुझसे करूँ वफ़ा या खुद से करूँ....”. मगर शायद चुप ही रही होगी ये "साली" जिंदगी या फिर संभव है कि नयी सदी की जिंदगी भी अब तेवर बदल नए जवाब ढूंढ चुकी हो...पर ये तो तय है कि इस नए संबोधन से जिंदगी कुछ सकपका तो जरूर गयी होगी....बहरहाल हम बात कर रहे हैं निशात खान और स्वानंद किरकिरे के संगम से बने नए अल्बम “ये साली जिंदगी” के बारे में. अल्बम का ये पहला गीत सुनिधि और कुणाल की युगल आवाजों में है. ये फ़िल्मी गीत कम और एक सोफ्ट रौक् नंबर ज्यादा लगता है जहाँ गायकों ने फ़िल्मी परिधियों से हटकर खुल कर अपनी आवाजों का इस्तेमाल किया है. सुनिधि की एकल आवाज़ में भी है एक संस्करण जो अधिक सशक्त है. स्वानंद के बोंल शानदार हैं. “सारा रारा...” सुनने में एक मस्ती भरा गीत लगता है, पर इसमें भी वही सब है -जिंदगी से शिकवे गिले और कुछ छेड छाड भी, स्वानंद के शब्द

नैना बरसे रिमझिम रिमझिम.....मदन मोहन साहब का रूहानी संगीत और लता की दिव्य आवाज़ ...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 577/2010/277 हा लाँकि हमने या आपने कभी भूत नहीं देखा है न महसूस किया है, लेकिन आये दिन अख़बारों में या किसी और सूत्र से सुनाई दे जाती है लोगों के भूत देखने की कहानियाँ। भूत-प्रेत की कहानियाँ सैंकड़ों सालों से चली आ रही है, लेकिन विज्ञान अभी तक इसके अस्तित्व की व्याख्या नहीं कर सका है। कई लोग अपने कैमरों में कुछ ऐसी तस्वीरें क़ैद कर ले आते हैं जिनमें कुछ अजीब बात होती है। वो लाख कोशिश करे उन तस्वीरों को भूत-प्रेत के साथ जोडने की, लेकिन हर बार यह साबित हुआ है कि उन तस्वीरों के साथ छेड़-छाड़ हुई है। अभिषेक अगरवाल एक ऐसे शोधकर्ता हैं जिन्होंने भूत-प्रेत के अस्तित्व संबंधी विषयों पर ना केवल शोध किया है, बल्कि एक पुस्तक भी प्रकाशित की है 'Astral Projection Underground' के शीर्षक से। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार, और स्वागत है आप सभी का इस अजीब-ओ-ग़रीब लघु शृंखला में जिसका नाम है 'मानो या ना मानो'। आज के अंक में हम अभिषेक अगरवाल के उसी शोध में से छाँट कर कुछ बातें आपके सम्मुख रखना चाहते हैं। अभिषेक के अनुसार अगर हम 'Law of Thermodynam

ए मेरे दिले नादाँ तू गम से न घबराना....एक एक बढ़कर एक गीत हुए हैं इन सस्पेंस थ्रिल्लर फिल्मों में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 576/2010/276 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस नई सप्ताह में आप सभी का फिर एक बार हम हार्दिक स्वागत करते हैं। इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है लघु शृंखला 'मानो या ना मानो', जिसमें हम चर्चा कर रहे हैं अजीब-ओ-ग़रीब घटनाओं की जिनका ताल्लुख़ आत्मा, भूत-प्रेत और पुनर्जनम से है। हालाँकि विज्ञान कुछ और ही कहता है, लेकिन कभी कभी कुछ ऐसी घटनाएँ हो जाती हैं जिसकी व्याख्या विज्ञान भी नहीं कर पाता। पिछली दो कड़ियों में ऐसे ही कुछ पुनर्जनम के किस्से हमने पढ़े। आइए आज वापस लौटते हैं 'हौण्टिंग् हाउसेस' पर। हमने आपसे वादा किया था कि एक कड़ी हम ऐसी रखेंगे जिसमें हम आपको इंगलैण्ड के कुछ भौतिक जगहों के बारे में बताएँगे, क्योंकि पूरे विश्व के अंदर इंगलैण्ड में भूत-प्रेत की कहानियाँ सब से ज़्यादा मात्रा में पायी जाती है। द्वितीय विश्वयुद्ध में बहुत से वायुसैनिक मारे गये थे। कहा जाता है कि कई एयरफ़ील्ड्स में आज भी अजीब-ओ-गरीब चीज़ें महसूस की जा सकती हैं। इन एयरफ़ील्ड्स में शामिल हैं RAF Bircham Newton Norfolk, RAF East Kirkby Lincolnshire, और RAF Ea

सुर संगम में आज - पंडित बृज नारायण का सरोद वादन - राग श्री

सुर संगम - 04 राग श्री, एक प्राचीन उत्तर भारतीय राग है पूर्वी ठाट का। इसे भगवान शिव से जोड़ा जाता है। यह राग सिख धर्म में गाया जाता है गुरु ग्रंथ साहिब के तहत। गुरु ग्रंथ साहिब में कुल ३१ राग हैं और उसमें राग श्री सब से पहले आता है। गुरु ग्रंथ साहिब के १४ से लेकर ९४ पृष्ठों में जो कम्पोज़िशन है, वो इसी राग में है। सु प्रभात! सुर-संगम स्तंभ के सभी पाठकों व श्रोताओं का स्वागत है आज के इस अंक में। आज इसमें हम चर्चा करेंगे सुप्रसिद्ध सरोद वादक पंडित बृज नारायण की, जिनका बजाया हुआ राग श्री आपको सुनवाएँगे। साथ ही एक ऐसी फ़िल्मी रचना भी सुनवाएँगे जिसमें पंडित जी ने सरोद बजाया है और उस गीत में सरोद का बड़ा ही प्रॊमिनेण्ट प्रयोग हुआ है। बृज नारायण सुप्रसिद्ध सारंगी वादक पंडित राम नारायण के बड़े बेटे हैं। उनका जन्म २५ अप्रैल १९५२ को राजस्थान के उदयपुर में हुआ था। वैसे तो पिता के ज़रिये वो सारंगी भी बजा लेते थे, लेकिन धीरे धीरे उनकी रुचि सरोद में हो गई। बहुत ही कम उम्र से सीखने की वजह से उन्होंने इस विधा में महारथ हासिल की और एक नामचीन सरोद वादक के रूप में जाने गये। बृज नारायण कुछ समय तक अपने चाच