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तुझको पुकारे मेरा प्यार.....पुनर्जन्म के प्रेमी की सदा रफ़ी साहब के स्वरों में भीगी हुई

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 574/2010/274 'मा नो या ना मानो' शृंखला में पिछले तीन अंकों में हमने आपको बताया देश विदेश की कुछ ऐसी जगहों के बारे में जिन्हे हौण्टेड माना जाता है, हालाँकि ऐसा मानने के पीछे कोई ठोस वजह अभी तक विज्ञान विकसित नहीं कर पाया है। ख़ैर, आगे बढ़ते हैं इस शृंखला में और आज हम चर्चा करेंगे पुनर्जनम की। जी हाँ, पुनर्जनम, जिसे लेकर भी लोगों में उत्सुक्ता की कोई कमी नहीं है। एक अध्ययन के अनुसार, भारत में ५०% जनता पुनर्जनम में यकीन रखता है। क्या आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इसके पीछे क्या कारण है? शायद हिंदु आध्यात्म, और शायद समय समय पर मीडिया में पुनर्जनम के क़िस्सों का दिखाया जाना। भोपाल के Government Arts & Commerce College के प्रिंसिपल डॊ. स्वर्णलता तिवारी पुनर्जनम का एक मशहूर उदाहरण है। उनके पुनर्जनम की कहानी दुनिया की उन ७ पुनर्जनम कहानियों में से है जिन पर वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं। एक मुलाक़ात में स्वर्णलता जी ने अपने तीन जन्मों के बारे में बताया है। आइए उनके इस दिलचस्प और रहस्यमय पुनर्जनम घटना क्रम को और थोड़ा करीब से देखा जाये। २ मार्च १९४८ में स्वर्णलता का

झूम झूम ढलती रात....सिहरन सी उठा जाती है लता की आवाज़ और कमाल है हेमन्त दा का संगीत संयोजन भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 573/2010/273 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, आप सभी को हमारा नमस्कार! पिछली दो कड़ियों में हमने आपको भारत के दो ऐसे जगहों के बारे में बताया जिनके बारे में लोगों की यह धारणा बनी हुई है कि वहाँ पर भूत-प्रेत का निवास है। हालाँकि वैज्ञानिक तौर पर कुछ भी प्रमाणित नहीं हो पाया है, लेकिन इस तरह की बातें एक बार फैल जाये तो ऐसी जगहों से लोग ज़रा दूर दूर रहना ही पसंद करते हैं। और हमने आपको दो ऐसी ही सस्पेन्स थ्रिलर फ़िल्मों की कहानियां भी बताई - 'महल' और 'बीस साल बाद', और इन फ़िल्मों से लता मंगेशकर के गाये दो हौण्टिंग् नंबर्स भी सुनवाये। दोस्तों, आज हम अपने देश की सीमाओं को लांघ कर ज़रा विदेश में जा निकलते हैं। यकीन मानिए, भूत प्रेत की जितनी कहानियाँ हमारे यहाँ मशहूर हैं, उतनी ही कहानियाँ हर देश में पायी जाती है। आइए अलग अलग देशों के कुछ ऐसी ही जगहों के बारे में आज आपको बतायी जाये। ऒस्ट्रेलिया के विक्टोरिया शहर में एक असाइलम है, जिसका नाम है 'बीचवर्थ लुनाटिक असाइलम'। कहते हैं कि यहाँ पर कई मरीज़ों की आत्माएँ निवास करती हैं। यह असाइलम १८६७ में

"यमला पगला दीवाना" का रंग चढाने में कामयाब हुए "चढा दे रंग" वाले अली परवेज़ मेहदी.. साथ है "टिंकू जिया" भी

Taaza Sur Taal 02/2011 - Yamla Pagla Deewana "अपने तो अपने होते हैं" शायद यही सोच लेकर अपना चिर-परिचित देवल परिवार "अपने" के बाद अपनी तिकड़ी लेकर हम सब के सामने फिर से हाजिर हुआ है और इस बार उनका नारा है "यमला पगला दीवाना"। फिल्म पिछले शुक्रवार को रीलिज हो चुकी है और जनता को खूब पसंद भी आ रही है। यह तो होना हीं था, जबकि तीनों देवल अपना-अपना जान-पहचाना अंदाज़ लेकर परदे पर नज़र आ रहे हों। "गरम-धरम" , "जट सन्नी" और "सोल्ज़र बॉबी"... दर्शकों को इतना कुछ एक हीं पैकेट में मिले तो और किस चीज़ की चाह बची रहेगी... हाँ एक चीज़ तो है और वो है संगीत.. अगर संगीत मन का नहीं हुआ तो मज़े में थोड़ी-सी खलल पड़ सकती है। चूँकि यह एक पंजाबी फिल्म है, इसलिए इससे पंजाबी फ़्लेवर की उम्मीद तो की हीं जा सकती है। अब यह देखना रह जाता है कि फ़िल्म इस "फ़्रंट" पर कितनी सफ़ल हुई है। तो चलिए आज की "संगीत-समीक्षा" की शुरूआत करते हैं। "यमला पगला दीवाना" में गीतकारों-संगीतकारों और गायक-गायिकाओं की एक भीड़-सी जमा है। पहले संगीतकारों

कहीं दीप जले कहीं दिल.....एक ऐसा गीत जिसने लता जी का खोया आत्मविश्वास लौटाया

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 572/2010/272 'मा नो या ना मानो' - दोस्तों, 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर कल से हमने शुरु की है यह लघु शृंखला। भूत-प्रेत और आत्मा के अस्तित्व के बारे में बहस लम्बे समय से चली आ रही है, जिसकी अभी तक कोई ठोस वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो पायी है। दुनिया के हर देश में भूत प्रेत की कहानियाँ और क़िस्से सुनने को मिलते हैं, और हमारे देश में भी बहुत ऐसे उदाहरण पाये जाते हैं। आज के ज़माने में अधिकांश लोगों को भले ही ये सब बातें ढोंगी लोगों की करतूत लगे, लेकिन उसे आप क्या कहेंगे अगर Archaeological Survey of India ही ऐसा बोर्ड लगा दे कि रात के बाद फ़लाने जगह पर जाना खतरनाक या हानीकारक हो सकता है? जी हाँ, राजस्थान में भंगढ़ नामक जगह है जहाँ पर ASI ने एक साइनबोर्ड लगा दिया है, जिस पर लिखा है - "Entering the borders of Bhangarh before sunrise and after sunset is strictly prohibited." जो पर्यटक वहाँ जाते हैं, वो कहते हैं कि भंगढ़ की हवाओं में एक अजीब सी बात महसूस की जा सकती है जो दिल में बेचैनी पैदा करती है। आइए इस जगह के इतिहास के बारे में आपको कुछ बताया जाये। १७-वी

मुश्किल है बहुत मुश्किल चाहत का भुला देना....और भुला पाना उन फनकारों को जिन्होंने हिंदी सिनेमा में सस्पेंस थ्रिलर की नींव रखी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 571/2010/271 न मस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस नए सप्ताह में आप सभी का फिर एक बार हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, बचपन में आप सभी ने कभी ना कभी अपनी दादी-नानी से भूत-प्रेत की कहानियाँ तो ज़रूर सुनी होंगी। सर्दी की रातों में खाना खाने के बाद रजाई ओढ़कर मोमबत्ती या लालटेन की रोशनी में दादी-नानी से भूतों की कहानी सुनने का मज़ा ही कुछ अलग होता था, है न? और कभी कभी तो बच्चे अगर ज़िद करे या शैतानी करे तो भी उन्हें भूत-प्रेत का डर दिखाकर सुलाया जाता है, आज भी। लेकिन जब हम धीरे धीरे बड़े होते है, तब हमें अहसास होने लगता है कि ये भूत-प्रेत बस कहानियों में ही वास करते हैं। हक़ीक़त में इनका कोई वजूद नहीं है। लेकिन क्या वाक़ई यह सच है कि आत्मा या भूत-प्रेत का कोई वजूद नहीं, बस इंसान के मन का भ्रम या भय है? दोस्तों, सदियों से सिर्फ़ हमारे देश में ही नही, बल्कि समूचे विश्व में भूत-प्रेत की कहानियाँ तो प्रचलित हैं ही, बहुत सारे क़िस्से ऐसे भी हुए हैं जिनके द्वारा लोगों ने यह साबित करने की कोशिश की है कि भूत-प्रेत और आत्माओं का अस्तित्व है। हर देश में इस तरह के किस्से, इस तर

सुर संगम में आज - उस्ताद अमीर ख़ान का गायन - राग मालकौन्स

सुर संगम - 03 उस्ताद अमीर ख़ान ने "अतिविलंबित लय" में एक प्रकार की "बढ़त" ला कर सबको चकित कर दिया था। इस बढ़त में आगे चलकर सरगम, तानें, बोल-तानें, जिनमें मेरुखण्डी अंग भी है, और आख़िर में मध्यलय या द्रुत लय, छोटा ख़याल या रुबाएदार तराना पेश किया। जा ड़ों की नर्म धूप और आंगन में लेट कर, आँखों पे खींच कर तेरे दामन के साये को, आंधे पड़े रहे, कभी करवट लिए हुए"। गुलज़ार के इन अल्फ़ाज़ों से बेहतर शायद ही कोई अल्फ़ाज़ होंगे जाड़ों की इस सुहानी सुबह के आलम का बयाँ करने के लिए। 'आवाज़' के दोस्तों, सर्दी की इस सुहाने रविवार की सुबह में मैं आप सभी का 'आवाज़' के इस साप्ताहिक स्तंभ 'सुर-संगम' में स्वागत करता हूँ। आज इस स्तंभ का तीसरा अंक है। पहले अंक में आपने उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ाँ साहब का गायन सुना था राग गुनकली में, और दूसरे अंक में उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ान और उस्ताद विलायत ख़ान से शहनाई और सितार पर एक भैरवी ठुमरी। आज हम लेकर आये हैं उस्ताद अमीर ख़ान का गायन, राग है मालकौन्स। उस्ताद अमीर ख़ान का जन्म १५ अगस्त १९१२ को इंदौर में एक संगीत परिवार

ई मेल के बहाने यादों के खजाने (२५), आईये आपका परिचय कराएँ सुजॉय के एक खास मित्र से

'ओल्ड इस गोल्ड' के सभी दोस्तों को हमारा नमस्कार! इस शनिवार विशेष प्रस्तुति में आप सभी का हार्दिक स्वागत है| जिस तरह से 'ओल्ड इज गोल्ड' का नियमित स्तम्भ ५६० अंक पूरे कर चूका है, वैसे ही यह शनिवार विशेष भी आज पूरा कर रहा है अपना २५-वां सप्ताह| शनिवार की इस ख़ास प्रस्तुति में आपने ज़्यादातर 'ईमेल के बहाने यादों के खजाने' पढ़े और इस और आप सब का भरपूर सहयोग हमें मिला जिस वजह से हम इस साप्ताहिक पेशकश की आज 'रजत जयंती अंक' प्रस्तुत कर पा रहे हैं| आप सभी को बहुत बहुत धन्यवाद, और उन दोस्तों से, जो हमारी इस महफ़िल में शामिल तो होते हैं, लेकिन हमें इमेल नहीं भेजते, उनसे ख़ास गुजारिश है की वो अपने जीवन की खट्टी मीठी यादों को संजो कर हमें ईमेल करें जिन्हें हम पूरी दुनिया के साथ बाँट सके| दोस्तों, आज मैं जिस ईमेल को यहाँ शामिल कर रहा हूँ, उसके लिखने वाले के लिए मुझे किसी औपचारिक भाषा के प्रयोग करने की कोई ज़रुरत नहीं है, क्योंकि वह शख्स मेरा बहुत अच्छा दोस्त भी है और मेरा छोटा भाई भी, जिसे कहते हैं 'फ्रेंड फिलोसोफर एंड गाइड'| आईये आज मेरे इस दोस्त सुमित चक्रवर