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जुल्मी नैना बलम के मार गए....फिल्म असफल रही तो भुला दिया गया लता के ये दुर्लभ गीत भी

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 486/2010/186 ल ता मंगेशकर के गाए हुए १० बेहद दुर्लभ गीतों की इस शृंखला 'लता के दुर्लभ दस' में इन दिनों एक के बाद एक हम आपको साल १९५० के पाँच गीत सुनवा रहे हैं। पिछले हफ़्ते आपने 'छोटी भाभी' और 'अनमोल रतन' फ़िल्मों के गानें सुने थे। आइए इसी लड़ी को आगे बढ़ाते हुए आज सुनते हैं १९५० की फ़िल्म 'बावरा' का एक बड़ा ही दुर्लभ गीत। इस ख़ुशरंग गीत के बोल हैं "जुल्मी नैना बलम के मार गए, तुम जीते सजन हम हार गए"। श्री दुर्गा पिक्चर्स के बैनर तले इस फ़िल्म का निर्माण हुआ था जिसका निर्देशन किया था जी. राकेश ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे राज कपूर, निम्मी, ललिता पवार, के. एन. सिंह, हीरालाल, सुंदर और रतन कुमार। १९४९ में 'बरसात' की सफलता के बाद १९५० में राज कपूर ने आर. के फ़िल्म्स के बैनर तले तो कोई फ़िल्म नहीं बनाई लेकिन दूसरे फ़िल्मकारों की कई फ़िल्मों में नायक की भूमिका अदा की। 'बावरा' का ज़िक्र तो कर चुके हैं, बाक़ी की फ़िल्में थीं - किदार शर्मा की फ़िल्म 'बावरे नैन', जिसमें उनकी नायिका बनी गीता बाली; ए. आर. कार

ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने - जब १९५२ में लता ने जनमदिन की बधाई दी थी नूरजहाँ को

ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में आप सभी का बहुत बहुत स्वागत है। इस साप्ताहिक स्तंभ में हम आप तक हर हफ़्ते पहूँचाते हैं आप ही के ईमेल में लिखी हुई आप ही की यादें। और आज है इस सिलसिले की आठवीं कड़ी। दोस्तों, आज हम जिस ईमेल को शामिल करने जा रहे हैं, उसे हमें किसने भेजा है यह तो हम भी नहीं जानते। दरअसल ना तो उन्होंने अपना नाम लिखा है और ना ही उनके ईमेल आइ.डी से उनके नाम का पता चल पाया है। लेकिन ज़रूरी बात यह कि जिन्होंने भी यह ईमेल भेजा है, बड़ा ही कमाल का और दुर्लभ तोहफ़ा हमें दिया है जिसके लिए "धन्यवाद" शब्द भी फीका पड़ जाए। दोस्तों, इन दिनों 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमित कड़ियों में आप लता मंगेशकर पर केन्द्रित शृंखला का आनंद ले रहे हैं। शायद इसी को ध्यान में रखते हुए इस शख़्स ने हमें यह ईमेल भेजा जिसमें 'स्क्रीन' पत्रिका के एक बहुत ही पुराने अंक से खोज कर लता जी का एक लेख है भेजा है जिसमें लता जी ने मल्लिका-ए-तरन्नुम नूरजहाँ जी को बड़े शिद्दत के साथ याद करते हुए उन्हें जन्मदिन की शुभकामनाएँ दी थीं। आज १८ सितंबर है और २१ सितंबर को नूरजहाँ जी का जन्मदिवस है। ऐसे

गुलेलबाज़ लड़का - भीष्म साहनी

सुनो कहानी: भीष्म साहनी की "गुलेलबाज़ लड़का" 'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में रामचन्द्र भावे की कन्नड कहानी छिपकली आदमी का पॉडकास्ट सुना था। आवाज़ की ओर से आज हम लेकर आये हैं प्रसिद्ध लेखक, नाट्यकर्मी और अभिनेता श्री भीष्म साहनी की एक प्रसिद्ध कहानी "गुलेलबाज़ लड़का" जिसको स्वर दिया है अर्चना चावजी  ने। आशा है आपको पसंद आयेगी। कहानी का कुल प्रसारण समय 12 मिनट 23 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। भीष्म साहनी (1915-2003) हर शनिवार को आवाज़ पर सुनिए एक नयी कहानी पद्म भूषण भीष्म साहनी का जन्म आठ अगस्त 1915 को रावलपिंडी में हुआ था। "चलो बाहर निकल चलो।" ( "गुलेलबाज़ लड़का" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल