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चैन मोरा लूटा मोरे राजा सुन....एस जानकी के स्वरों में सजा एक दुर्लभ मुजरा

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 414/2010/114 कु छ दुर्लभ गीतों से इन दिनों हम सजा रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल को। आज इसमें प्रस्तुत है दक्षिण की सुप्रसिद्ध पार्श्व गायिका एस. जानकी की आवाज़ में एक भूला बिसरा गीत फ़िल्म 'दुर्गा माता' से। यह एक मुजरा गीत है जिसके बोल हैं "चैन मेरा लूटा मोरे राजा सुन ज़रा, है कितना बेवफ़ा तू सैंया साजना"। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है, 'दुर्गा माता' एक धार्मिक फ़िल्म थी जिसका निर्माण सन् १९५९ में किया गया था। यह दक्षिण की ही फ़िल्म थी जिसमें संगीत था जी. के. वेंकटेश का और गीत लिखे एस. आर. साज़ ने। भले ही वेंकटेश साहब दक्षिण से ताल्लुख़ रखते हों, उन्होने इस मुजरे को बहुत ही कमाल का अंजाम दिया है। यहाँ तक कि सारंगी का भी इस्तेमाल किया है कहीं कहीं जो हक़ीक़त में कोठों पर बजा करती थी। इस फ़िल्म में एस. जानकी ने और भी कुछ गीत गाए, तथा एक युगल गीत मन्ना डे और गीता दत्त की आवाज़ों में भी है जिसके बोल हैं "तुम मेरे मन में"। इसे भी बहुत कम ही लोगों ने सुना होगा। आइए आज थोड़ी चर्चा की जाए गायिका एस. जानकी की। २३ अप्र

जीवन एक बुलबुला है, मानते हैं बालमुरली बालू, ह्रिचा मुखर्जी और सजीव सारथी

Season 3 of new Music, Song # 09 तीसरे सत्र के नौवें गीत के साथ हम हाज़िर हैं एक बार फिर. सजीव सारथी की कलम का एक नया रंग है इसमें, तो इसी गीत के माध्यम से आज युग्म परिवार से जुड रहे हैं दो नए फनकार. अमेरिका में बसे संगीतकार बालामुरली बालू और अपने गायन से दुनिया भर में नाम कमा चुकी ह्रिचा हैं ये दो मेहमान. वैश्विक इंटरनेटिया जुगलबंदी से बने इस गीत में जीवन के प्रति एक सकारात्मक रुख रखने की बात की गयी है, लेकिन एक अलग अंदाज़ में. गीत के बोल - रोको न दिल को, उड़ने दो खुल के तुम, जी लो इस पल को, खुश होके आज तुम, कोशिश है तेरे हाथों में मेरे यार, हंसके अपना ले हो जीत या हार, बुलबुला है बुलबुला / दो पल का है ये सिलसिला/ तू मुस्कुरा गम को भुला अब यार, सिम सिम खुला / हर दर मिला, होता कहाँ ऐसा भला / तो क्यों करे कोई गिला मेरे यार, सपनें जो देखते हों तो, सच होंगें ये यकीं रखो, just keep on going on and on, एक दिन जो था बुरा तो क्या, आएगा कल भी दिन नया, don't think that u r all alone, कोई रहबर की तुझको है क्यों तलाश, जब वो खुदा है हर पल को तेरे पास, कुछ तो है तुझमें बात ख़ास, बुलबुला है बुल

ओल्ड इस गोल्ड में एक बार फिर भोजपुरी रंग, सुमन कल्यानपुर के गाये इस दुर्लभ गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 413/2010/113 'दु र्लभ दस' शृंखला की आज है तीसरी कड़ी। आज इसमें पेश है सुमन कल्याणपुर की आवाज़ में एक बड़ा ही दर्द भरा लेकिन बेहद सुरीला नग़मा जिसे रचा गया था फ़िल्म 'लोहा सिंह' के लिए। गीत कुछ इस तरह से है "बैरन रतिया रे, निंदिया नाही आवे रामा"। आप में से बहुत लोगों ने इस फ़िल्म का नाम ही नहीं सुना होगा शायद। इसलिए आपको बता दें कि यह फ़िल्म आई थी सन्‍ १९६६ में जिसमें मुख्य भूमिकाओं में थे सुजीत कुमार और विजया चौधरी। कुंदन कुमार निर्देशित इस भोजपुरी फ़िल्म में मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, आशा भोसले, उषा मंगेशकर, सुमन कल्याणपुर जैसे गायकों ने फ़िल्म के गीत गाए थे। संगीत था एस. एन. त्रिपाठी का और फ़िल्म के सभी गीत लिखे गीतकार आर. एस. कश्यप ने। आज के प्रस्तुत गीत के अलावा सुमन जी ने इस फ़िल्म में एक युगल गीत भी गाया था "झूला धीरे से झुलावे" महेन्द्र कपूर के साथ। फ़िल्म के सभी गानें भोजपुरी लोकशैली के थे, और त्रिपाठी जी ने अपने संगीत सफ़र में बहुत सी भोजपुरी फ़िल्मों में संगीत दिया है। जहाँ तक भोजपुरी फ़िल्मों का सवाल है, बहुत सी ऐसी भ

ग़ज़ल का साज़ उठाओ बड़ी उदास है रात.. फ़िराक़ के ग़मों को दूर करने के लिए बुलाए गए हैं गज़लजीत जगजीत सिंह

महफ़िल-ए-ग़ज़ल #८७ आ ज हम जिस शायर की ग़ज़ल से रूबरू होने जा रहे हैं, उन्हें समझना न सिर्फ़ औरों को लिए बल्कि खुद उनके लिए मुश्किल का काम है/था। कहते हैं ना "पल में तोला पल में माशा"... तो यहाँ भी माज़रा कुछ-कुछ वैसा हीं है। एक-पल में हँसी-मज़ाक से लबरेज रहने वाला कोई इंसान ज्वालामुखी की तरह भभकने और फटने लगे तो आप इसे क्या कहिएगा? मुझे "अली सरदार जाफ़री" की "कहकशां" से एक वाक्या याद आ रहा है। "फ़िराक़" साहब को उनके जन्मदिन की बधाई देने उनके हीं कॉलेज से कुछ विद्यार्थी आए थे। अब चूँकि फ़िराक़ साहब अंग्रेजी के शिक्षक(प्रोफेसर शैलेश जैदी के अनुसार वो शिक्षक हीं थे , प्राध्यापक नहीं) थे, तो विद्यार्थियों ने उन्हें उनकी हीं पसंद की एक अंग्रेजी कविता सुनाई और फिर उनसे उनकी गज़लों की फरमाईश करने लगे। सब कुछ सही चल रहा था, फ़िराक़ दिल से हिस्सा भी ले रहे थे कि तभी उनके घर से किसी ने (शायद उनकी बीवी ने) आवाज़ लगाई और फ़िराक़ भड़क उठे। उन्होंने जी भरके गालियाँ दीं। इतना हीं काफ़ी नहीं था कि उन्होंने अपने जन्मदिन के लिए लाया हुआ केक उठाकर एक विद्यार्थी के

"जय दुर्गा महारानी की" - क्या आपने पहले कभी सुनी है संगीतकार चित्रगुप्त की गाती हुई आवाज़?

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 412/2010/112 'ओ ल्ड इज़ गोल्ड' की कल की कड़ी मे हमने सुनी थी सबिता बनर्जी की गाई हुई एक दुर्लभ फ़िल्मी भजन। आज के गीत का रंग भी भक्ति रस पर ही आधारित है। भारतीय फ़िल्म जगत में सामाजिक फ़िल्मों के साथ साथ धार्मिक और पौराणिक विषयों पर आधारित फ़िल्मों का भी एक जौनर रहा है फ़िल्म निर्माण के शुरुआती दौर से ही। यह परम्परा ९० के दशक में गुल्शन कुमार के निधन के बाद धीरे धीरे विलुप्त हो गई, और आज दो चार धार्मिक गीतों के ऐल्बम के अलावा इस जौनर की कोई कृति ना सुनाई देती है और ना ही परदे पर दिखाई देती है। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर में बनने वाली धार्मिक फ़िल्मों में कुछ गिने चुने फ़िल्मों को छोड़ कर ज़्यादातर फ़िल्में बॊक्स ऒफ़िस पर असफल हुआ करती थी। दरसल धार्मिक फ़िल्मों के निर्माता इन फ़िल्मों का निर्माण ख़ास दर्शक वर्ग के लिए किया करते थे जैसे कि ग्रामीण जनता के लिए, वृद्ध वर्ग के लिए। ऐसे में आम जनता इन फ़िल्मों से कुछ दूर दूर ही रहती आई है। ज़्यादा व्यावसाय ना होने की वजह से ये कम बजट की फ़िल्में होती थीं। ना इन्हे ज़्यादा बढ़ावा मिलता और ना ही इनका ज़्यादा प्र

रब्बा लक़ बरसा.... अपनी फ़िल्म "कजरारे" के लिए इसी किस्मत की माँग कर रहे हैं हिमेश भाई

ताज़ा सुर ताल २१/२०१० सुजॊय - 'ताज़ा सुर ताल' की एक और ताज़े अंक के साथ हम हाज़िर हैं। विश्व दीपक जी, इस शुक्रवार को 'राजनीति' प्रदर्शित हो चुकी हैं, और फ़िल्म की ओपनिंग अच्छी रही है ऐसा सुनने में आया है, हालाँकि मैंने यह फ़िल्म अभी तक देखी नहीं है। 'काइट्स' को आशानुरूप सफलता ना मिलने के बाद अब देखना है कि 'राजनीति' को दर्शक किस तरह से ग्रहण करते हैं। ख़ैर, यह बताइए आज हम किस फ़िल्म के संगीत की चर्चा करने जा रहे हैं। विश्व दीपक - आज हम सुनेंगे आने वाली फ़िल्म 'कजरारे' के गानें। सुजॊय - यानी कि हिमेश इज़ बैक! विश्व दीपक - बिल्कुल! पिछले साल 'रेडियो - लव ऑन एयर' के बाद इस साल का उनका यह पहला क़दम है। 'रेडियो' के गानें भले ही पसंद किए गए हों, लेकिन फ़िल्म को कुछ ख़ास सफलता नहीं मिली थी। देखते हैं कि क्या हिमेश फिर एक बार कमर कस कर मैदान में उतरे हैं! सुजॊय - 'कजरारे' को पूजा भट्ट ने निर्देशित किया है, जिसके निर्माता हैं भूषण कुमार और जॉनी बक्शी। फ़िल्म के नायक हैं, जी हाँ, हिमेश रेशम्मिया, और उनके साथ हैं मोना लायज़ा, अमृ

"ज़रा मुरली बजा दे मेरे श्याम रे" - सबिता बनर्जी की आवाज़ में एक भूला बिसरा भजन

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 411/2010/111 न मस्कार दोस्तों! बेहद ख़ुशी और जोश के साथ हम फिर एक बार आप सभी का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में हार्दिक स्वागत करते हैं। पिछले डेढ़ महीने से आप हर शाम 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' का आनंद ले रहे थे, और हमें पूरी उम्मीद है और आप के टिप्पणियों से भी साफ़ ज़ाहिर है कि आपने इस विशेष प्रस्तुति को भी हाथों हाथ ग्रहण किया है। चलिए आज से हम वापस लौट रहे हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के अपने उसी पुराने स्वरूप में और फिर से एक बार गुज़रे ज़माने के अनमोल नग़मों के उसी कारवाँ को आगे बढ़ाते हैं। अब तक 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कुल ४१० कड़ियाँ प्रस्तुत हो चुकी हैं, आज ४११-वीं कड़ी से यह सिलसिला हम आगे बढ़ा रहे हैं। तो दोस्तों, इस नई पारी की शुरुआत कुछ ख़ास अंदाज़ से होनी चाहिए, क्यों है न! इसीलिए हमने सोचा कि क्यों ना दस ऐसे गानों से इस पारी की शुरुआत की जाए जो बेहद दुर्लभ हों! ये वो गानें हों जिन्हे आप में से बहुतों ने कभी सुनी ही नहीं होगी और अगर सुनी भी हैं तो उनकी यादें अब तक बहुत ही धुंधली हो गई होंगी। पिछले डेढ़ महीने में हमने यहाँ वहाँ से, ज