ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 361/2010/61 हो ली का रंगीन त्योहार आप सभी ने ख़ूब धूम धाम से और आत्मीयता के साथ मनाया होगा, ऐसी हम उम्मीद करते हैं। दोस्तों, भले ही होली गुज़र चुकी है, लेकिन वातावरण में, प्रकृति में जो रंग घुले हुए हैं, वो बरक़रार है। फागुन का महीना चल रहा है, बसंत ऋतु ने चारों तरफ़ रंग ही रंग बिखेर रखी है। चारों ओर रंग बिरंगे फूल खिले हैं, जो मंद मंद हवाओं पे सवार होकर जैसे झूला झूल रहे हैं। उन पर मंडराती हुईं तितलियाँ और भँवरे, ठंडी ठंडी हवाओं के झोंके, कुल मिलाकर मौसम इतना सुहावना बन पड़ा है इस मौसम में कि इसके असर से कोई भी बच नहीं सकता। इन सब का मानव मन पर असर होना लाज़मी है। इसी रंगीन वातावरण को और भी ज़्यादा रंगीन, ख़ुशनुमा और सुरीला बनाने के लिए आज से हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' पर शुरु कर रहे हैं दस रंगीन गीतों की एक लघु शृंखला 'गीत रंगीले'। इनमें से कुछ गानें होली गीत हैं, तो कुछ बसंत ऋतु को समर्पित है, किसी में फागुन का ज़िक्र है, तो किसी में है इस मौसम की मस्ती और धूम। दोस्तों, मुझे श्याम 'साहिल' की लिखी हुई एक कविता याद आ रही है, जो कुछ इस तरह से ह