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सुनो कहानी: आग - असगर वजाहत

'सुनो कहानी' इस स्तम्भ के अंतर्गत हम आपको सुनवा रहे हैं प्रसिद्ध कहानियाँ। पिछले सप्ताह आपने अनुराग शर्मा की आवाज़ में गोपाल प्रसाद व्यास का व्यंग्य " झूठ बराबर तप नहीं " का पॉडकास्ट सुना था। आज हम आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं असगर वजाहत की एक कहानी " आग ", जिसको स्वर दिया है अनुराग शर्मा ने। कहानी "आग" का कुल प्रसारण समय 4 मिनट 14 सेकंड है। सुनें और बतायें कि हम अपने इस प्रयास में कितना सफल हुए हैं। इस कथा का टेक्स्ट गद्य कोश पर उपलब्ध है। यदि आप भी अपनी मनपसंद कहानियों, उपन्यासों, नाटकों, धारावाहिको, प्रहसनों, झलकियों, एकांकियों, लघुकथाओं को अपनी आवाज़ देना चाहते हैं हमसे संपर्क करें। अधिक जानकारी के लिए कृपया यहाँ देखें। रात के वक्त़ रूहें अपने बाल-बच्चों से मिलने आती हैं। ~ असगर वजाहत हर शनिवार को आवाज़ पर सुनें एक नयी कहानी आग प्रचंड थी। बुझने का नाम न लेती थी। ( असगर वजाहत की "आग" से एक अंश ) नीचे के प्लेयर से सुनें. (प्लेयर पर एक बार क्लिक करें, कंट्रोल सक्रिय करें फ़िर 'प्ले' पर क्लिक करें।) यदि आप इस पॉडकास्ट क

तू मेरा चाँद मैं तेरी चाँदनी...ये गीत समर्पित है हमारे श्रोताओं को जिनकी बदौलत ओल्ड इस गोल्ड ने पूरा किया एक वर्ष का सफर

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 350/2010/50 'प्यो र गोल्ड' की अंतिम कड़ी के साथ हम हाज़िर हैं। १९४० से शुरु कर साल दर साल आगे बढ़ते हुए आज हम आ पहुँचे हैं इस दशक के अंतिम साल १९४९ पर। फ़िल्म संगीत के सुनहरे दौर की अगर हम बात करें तो सही मायने में इस दौर की शुरुआत १९४८-४९ के आसपास से मानी जानी चाहिए। यही वह समय था जब फ़िल्म संगीत ने एक बार फिर से नयी करवट ली और नए नए प्रयोग इसमें हुए, नई नई आवाज़ों ने क़दम रखा जिनसे यह सुनहरा दौर चमक उठा। 'बरसात', 'अंदाज़', 'महल', 'शायर', 'जीत', 'लाहौर', 'एक थी लड़की', 'लाडली', 'दिल्लगी', 'दुलारी', 'पतंगा', और 'बड़ी बहन' जैसी सुपर हिट म्युज़िकल फ़िल्मों ने एक साथ एक ऐसी सुरीली बारिश की कि जिसकी बूंदें आज तक हमें भीगो रही है। दोस्तों, हम चाहते तो इन फ़िल्मों से चुनकर लता मंगेशकर या मुकेश या मोहम्मद रफ़ी या फिर शमशाद बेग़म या गीता रॊय का गाया कोई गीत आज सुनवा सकते थे। लेकिन इस शृंखला में हमने कोशिश यही की है कि उन कलाकारों को ज़्यादा बढ़ावा दिया जाए जो सही अर्

मोरे राजा हो ले चल नदिया के पार...गुजरे ज़माने के एक मस्त मस्त गीत

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 349/2010/49 सा ल १९४८ की शुरुआत भी अच्छी नहीं रही। ३० जनवरी १९४८ की सुबह महात्मा गांधी की हत्या कर दी गई, जिसके बाद साम्प्रदायिक दंगे एक बार फिर से छिड़ गए और देश की अवस्था और भी नाज़ुक हो गई। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को श्रद्धांजली स्वरूप गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने उन पर एक गीत लिखा जिसे हुस्नलाल भगतराम के संगीत में मोहम्मद रफ़ी साहब ने गाया। "सुनो सुनो ऐ दुनियावालों बापु की यह अमर कहानी" एक बेहद लोकप्रिय गीत साबित हुआ। ब्रिटिश राज के समाप्त हो जाने के बाद देश भक्ति फ़िल्मों के निर्माण पर से सारे नियंत्रण हट गए। ऐसे में फ़िल्मिस्तान लेकर आए 'शहीद', जो हिंदी सिनेमा के सर्वश्रेष्ठ देशभक्ति फ़िल्मों में गिनी जाती है। जहाँ एक तरफ़ दिलीप कुमार की अदाकारी, वहीं दूसरी तरफ़ मास्टर ग़ुलाम हैदर के संगीत में "वतन की राह में वतन के नौजवान शहीद हों" गीत ने तो पूरे देश को जैसे देश प्रेम के जज़्बे से सम्मोहित कर लिया। उधर हैदर साहब ने ही फ़िल्म 'मजबूर' में लता को अपना पहला हिट गीत दिया "दिल मेरा तोड़ा"। संगीत की दृष्टि से १९४८ की